Saturday 11 May 2019

बम से मजाक



परमाणु बम दोनों के पास हैं, इसलिए दोनों शक्ति-ध्रुवों के बीच शांति बनी रहेगी- 60 के दशक से जारी अमरीका अौर सोवियत रूस के बीच का शीतयुद्ध तथा परमाणु-स्पर्धा का अौचित्य हमें इस तरह समझाया जाता था. कहा जाता रहा कि युद्ध से बचने का या युद्ध टालने का एक रास्ता विनाश का भय पैदा करना भी है. भारतीय संस्कृति के तथाकथित ज्ञाताअों ने रामायण को अपने समर्थन में ला खड़ा किया : भय बिनु होहिं ना प्रीति ! 
फिर वह बम दो मुल्कों की मुट्ठी से निकल कर पांच की मुट्ठी में पहुंच गया. ये सभी अपने वक्त के सबसे जंगखोर मुल्क थे; अौपनिवेशिक शोषण का खून जिनके मुंह लगा था. इस बार फिर हमें समझाया गया: चोरों को दरबान की नौकरी पर रख लेना चोरी से छुटकारा पाने का एक गारंटीशुदा उपाय है. हमने यह सीख भी पचा ली. फिर पांचों चोर दरबानों ने यह साजिश रची कि दुनिया में दूसरा कोई मुल्क बम न रखे ! इसलिए एक संधि-पत्र बनाया गया - अाण्विक विस्तार निरोधक संधि -  अौर दुनिया के दूसरे सभी मुल्कों से कहा गया कि इस पर दस्तखत कर दो ! दस्तखत करने वालों को कुछ लाभ अादि का लालच भी दिया गया, न करने वालों को प्रत्यक्ष या प्रछन्न धमकी भी दी गई। हमारे देश ने इस संधि-पत्र पर दस्तखत नहीं किया अौर कहा कि शांति के पैरोकारों में हमारा नाम सबसे ऊपर है. हमें उसका गर्व भी है. हम बम बनाने भी नहीं जा रहे हैं लेकिन निर्णय करने की अपनी स्वतंत्रता हम किसी दूसरे के पास बंधक रखने को तैयार नहीं हैं. हमने इसका समर्थन किया हालांकि हमें अाशंका थी कि इस नैतिक टेक के पीछे कोई बेईमानी भी छिपी हो सकती है. वही हुअा. अटलबिहारी वाजपेयी के हिंदुस्तान ने अौर नवाज शरीफ के पाकिस्तान ने भी, नहले पर दहला मारते हुए बम फोड़ दिया। यह उन पांचों मुल्कों को नागवार गुजरा जो दूसरों को शांति का रास्ता दिखाते हुए, अपनी दादागिरी बनाए रखना चाहते थे. 

  तब प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने हमें समझाया - यह काम तो इंदिरा गांधी भी करना चाहती थीं, नरसिंह रावजी भी इसी कोशिश में थे लेकिन अमरीकी दवाब के कारण बात टल गई. मैंने वह कर दिया - मैंने वह कर दिया जो कांग्रेस करना चाह रही थी लेकिन कर नहीं पाई ! अौर फिर उन्होंने यह भी कहा कि हम बम का शांतिमय इस्तेमाल करेंगे, कि पहला अाणविक अाक्रमण हम कभी नहीं करेंगे. ऐसी कोई संधि भी पाकिस्तान के साथ हुई शायद ! इसके बाद जब भी हमारे दो मुल्कों के बीच तनातनी बनी, कभी इधर से तो कभी उधर से याद दिलाया जाता रहा कि हम दोनों के हाथ में परमाणु बम है, यह भूलने जैसी बात नहीं है. बम का डर मन की शांति भले न रच सके, लाचारी की शांति तो बना ही सकता है, ऐसा लगा. पाकिस्तान की तमाम मूर्खताअों व कुटिलताअों अौर संसद पर अाक्रमण के बावजूद हमने बम का धमका तो नहीं ही किया, बम की धमकी भी नहीं दी. 

उत्तेजना के पल में ऐसी धीरता कायरता या अनिर्णय की नहीं, दायित्व-बोध से पैदा विवेक का परिचय देती है. क्यूबा के संकट के वक्त, 19 —— में, जब सारी मानवता का विनाश बस दो पल की दूरी पर खड़ा था अौर अमरीकी सैन्य अधिकारी राष्ट्रपति केनेडी पर दवाब डाल रहा था कि यही सबसे मुफीद पल है कि हम क्यूबा की रूसी मिसाइलों पर हमला बोल दें, केनेडी ने बम की तरफ नहीं, फोन की तरफ कदम बढ़ाया अौर रूसी प्रधानमंत्री ख्रुश्चेव से कहा : सारे संसार की भावी पीढ़ी को सामने रख कर हमें पीछे हटना चाहिए ! अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का यह सबसे सौंदर्यवान पल था. अमरीका क्यूबा से पीछे हटा, रूस क्यूबा से ही निकल गया. किसी ने यह शेखी नहीं बघारी कि हमारे पास बम है अौर मानवता की किस्मत मेरी मुट्ठी में बंद है. 

हमारा प्रधानमंत्री अाज महज एक चुनाव जीतने के जुनून में भीड़ के उन्माद को उकसाता है कि हमने बम दीवाली के लिए रखे हैं क्या ? जवाब में कोई महबूबा मुफ्ती कश्मीर से जवाब देती है कि पाकिस्तान ने भी ईद के लिए तो बम नहीं ही रखे हैं ! मतलब बम न हुअा दीवाली या ईद की मिठाई हो गई जिसके बंटवारे का मालिकाना हक किसी नरेंद्र मोदी या इमरान खान का है. क्या वक्ती तौर पर जिन्हें देश चलाने की जिम्मेवारी मिलती है उन्हें यह अधिकार भी मिल जाता है कि चाहें तो सारे देश का विनाश कर दें ! यह लोकतंत्र की गलत समझ का ही नहीं, नेतृत्व कर सकने की अापकी अक्षमता का भी प्रमाण है. जो कूटनीति में फिसड्डी साबित होते हैं, जो पड़ोसियों के बीच अकेले पड़ जाते हैं, जो किसी खास पड़ोसी की खास बदनीयत की काट नहीं खोज पाते हैं अौर जो भीतर से बेहद असुरक्षित व कायरता से भरे होते हैं वे ही बम के विनाश की धमकी को खिलौना बनाने की भद्दी कोशिश करते हैं. चुनावों का ऐसा इस्तेमाल लोकतंत्र को कमजोर ही नहीं करता है, उसे खोखला बनाता है. इसलिए नासमझों के ऐसे बयानों का जवाब देने की जरूरत नहीं है, उसे वहीं-के-वहीं दफना देने की जरूरत है. मोदी अौर महबूबा में कभी गहरी छनती थी क्योंकि दोनों की राजनीति नकली तेवरों पर अाधारित थी. लेकिन देश नकली नहीं होते. उसे असली नेताअों की जरूरत होती है. 

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