Wednesday 17 February 2021

दो बातें लालबुझक्कड़ साहब से

 लालबुझक्कड़ साहब का किस्सा पता नहीं अब चलता है या नहीं लेकिन हमारे बीच तो खूब चलता था, अौर हर कथा के अंत में लालबुझक्कड़ साहब यही कहते थे :  लालबुझक्कड़ बूझ गया अौर न बूझा कोय ! 

लालबुझक्कड़ साहब अाज भी हैं अौर हर विषय में उनके ज्ञान से हम दंग होते रहते हैं. उनका किस्सा सरेआम दिखाया जा रहा है अौर सारी लोकसभा लोटपोट हो रही है. मुझे याद अायाकिसी ने क्या बात कही है कि सबसे बड़ा ज्ञान यह जानने में है कि हमें बहुत सारी बातों का ज्ञान नहीं है. लालबुझक्कड़ साहब को इसी का ज्ञान नहीं है. वे वह सब कहे जा रहे हैं जो उनकी व उनके दरबारियों की समझ से परे है. कुर्सी हमेशा ऐसे लालबुझक्कड़ों को जन्म देती है जिन्हें इसका ज्ञान नहीं होता है कि ज्ञान कुर्सी में नहीं होता है. इसलिए राष्ट्रपति के दिशाहीन संबोधन के धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए लालबुझक्कड़ साहब ने बहुत कुछ ऐसा कहा जो हमेशा की तरह उनकी पहुंच से बाहर की बात थी. अांदोलनजीवीपरजीवीदेशद्रोहीअातंकवादीनक्सली अादि का सवाल इतनी फूहड़ता से उठाया उन्होंने कि इतिहास चारो खाने चित्त गिरा !  

 

      कोई जानना ही चाहे अौर कोई बताने को तैयार हो तो यह पूछा जाना चाहिए कि जिस अांदोलन को उन्होंने पवित्र कहाउस अांदोलन की पवित्र गंगा में डुबकी लगाने क्यों नहीं उतरे पवित्र अांदोलन से दूरी बनाने अौर उसे हर अपवित्र साधन से कलंकित करने की कोशिश क्यों की जा रही है इसका जवाब भी उन्हें नहीं मालूम हो शायदतो हम ही बता देते हैं कि हर पवित्र अांदोलन वह अग्निकुंड होता है जिसमें उतर कर ही अाप पवित्र हो सकते हैंअौर जो बौरा डूबन डरारहा किनारे बैठ !’ अौर यह भी कि लालबुझक्कड़ को यदि किसानों का अांदोलन पवित्र लगता है तो इस अांदोलन को करनेवाले खालिस्तानीनक्सलीदेशद्रोही अौर चीनपाकिस्तान के भाड़े के टट्टू कैसे हो गए अांदोलन पवित्र है तो इसमें शामिल लोग अपवित्र कैसे हो सकते हैं हर वह अांदोलन पवित्र होता है जो निजी स्वार्थ की लालसासत्ता की लोलुपता से दूरबहुजन के लिए न्याय व अधिकार मांगता है. जिसके साधन पवित्र हैंजो शांतिमय हैंजो धर्म-जाति-लिंग का भेद न करते हुए सर्व के हित की बात करता हैवह अांदोलन पवित्र है. कोई भी पवित्र अांदोलन लोकतंत्र का अहित नहीं कर सकता हैवह उसे परिपूर्ण करता हैउसकी जड़ों को मजबूत करता है. हांउनकी बात अलग है जो अपनी कुर्सी को पवित्र अौर अपनी सत्ता को ही लोकतंत्र मानते हैं. 


      खतरा अांदोलनजीवियों से नहींसत्ताजीवियों से है. महात्मा गांधी से बड़ा अांदोलनजीवी तो संसार में दूसरा कोई है नहीं लेकिन यह सच्चाई भी हमें ह्रदयंगम कर लेनी चाहिए कि उन्होंने इस पूरे देश को जगा करअांदोलनजीवियों की एक बड़ी फौज ही तैयार कर दी जो ज्यादा नहीं तो कम-से-कम 1915 से 1947 तक लगातारमरते-खपते अांदोलन ही जीती रही. दुष्यंत कुमार की जिस गजल का बड़ा ही फूहड़ इस्तेमाल लालबुझक्कड़ साहब ने उस दिन लोकसभा में किया थाउसकी सही जगह यहां है. उन अमर अांदोलनजीवियों ने इस गजल को जी कर दिखाया : मैं जिसे अोढ़ता बिछाता हूं/ वह गजल ( अांदोलन !) अापको सुनाता हूं. गांधी ने उन्हें यह गजल न सिखाई होती अौर उन्होंने यह गजल उर पर अंकित न कर ली होती तो अाज हम अाजाद हवा में सांस नहीं ले रहे होते. 


      अांदोलन की पवित्रता की दूसरी कसौटी यह है कि वह खुली किताब हो. जिसे जहां सेजब देखना हो देख सके- सारी दुनिया देख सके. सत्ता का वह मन अपवित्र है जो इस बात पर डंडा उठाता है कि विदेशी इस अांदोलन का समर्थन क्यों करते हैं. हर पवित्र अांदोलन धर्म-जाति-लिंग का भेद पा कर सारी दुनिया की न्याय-भावना को अावाज देता है. इतिहास पढ़ा ही न होया आपको पढ़ने की इजाजत न हो तो हम क्या करें कि महात्मा गांधी ने5 अप्रैल 1930 को नमक अांदोलनजीवियों की तरफ से वह मार्मिकअमर अपील  की थी जिसे दुनिया भर के अांदोलनजीवियों ने अपना सूत्र ही बना लिया है - अाइ वांट वर्ल्ड सिंपैथी इन दिस बैटल अॉफ राइट अगेंस्ट माइट - मैं न्याय बनाम लाठी के इस युद्ध में दुनिया की सहानुभूति मांगता हूं.” लालबुझक्कड़ साहबयह गांधी नाम का अांदोलनजीवी तो सारी दुनिया को हाथ उठा कर बुला रहा है कि अपनी सहानुभूति जाहिर करोआ सको तो हमारे पवित्र अांदोलन में आ जाअो ! आप इतने से ही बौखला गए कि किसी ने दुनिया में यहां से तो किसी ने वहां से इतना ही कहा कि अपने किसानों की बात सुनिए तो ! यह अगर सत्ता के बहरेपन पर की गई निजी फब्ती न मान ली गई हो तो इससे मासूम बात भी कोई कह सकता है क्या ?  


      सुनना हर लोकतांत्रिक सरकार का संवैधानिक धर्म है. सुनना-सुनानामानना-मनाना,नागरिकों मेंमीडिया मेंविशेषज्ञों में विमर्श पैदा करनासंसद में खुली व लंबी चर्चा बनने देना अौर फिर उभरती आम सहमति को कानून का रूप देना - यही एकमात्र लोकतांत्रिक प्रक्रिया है. आपके लिए ही नहींआपसे पहले जो अाएआपके बाद जो अाएंगे सबकी यही लोकतांत्रिक कसौटी है. आपसे पहले जो अाए उन्होंने इसका पालन नहीं किया या बाद वाले नहीं करेंगेइससे अापकी कसौटी नहीं होगी. आपकी कसौटी तो अभी अौर अाज अाप जो कर रहे हैंउससे ही होगी. कसौटी की सबसे खास बात यह है कि आप चाहें तो खुद भी अपनी कसौटी कर सकते हैं. ( 14.02.2021)