Saturday 25 May 2019

कांग्रेस का अंत : कांग्रेस का प्रारंभ

       एक राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस का यह अंत है अौर राहुल गांधी को इस अकल्पनीय हार की जिम्मेवारी लेते हुए त्यागपत्र दे देना चाहिए. यह सबसे स्वाभाविक व अासान प्रतिक्रिया है. इसे ही थोड़ा अागे बढ़ाएं तो चुनाव अायोग को इस्तीफा दे देना चाहिए, क्योंकि 7 चरणों में चला यह चुनाव उसकी अयोग्यता अौर अकर्मण्यता का नमूना था. अपने कैलेंडर के कारण यह देश का अब तक का सबसे लंबा, महंगा, सबसे हिंसक, सबसे अस्त-व्यस्त अौर सबसे दिशाहीन चुनाव-अायोजन था. यह अायोग गूंगा भी था, बहरा भी; अनिर्णय से ग्रस्त भी था अौर एकदम बिखरा हुअा भी. इसके फैसले लगता था कि कहीं अौर ही लिए जा रहे हैं. जैसे अपराध के लिए मायावती, अाजम खान, मेनका गांधी, प्रज्ञा ठाकुर अादि को कई घंटों तक चुप रहने की सजा अायोग ने दी, उसी अाधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी अौर अमित शाह को चुनाव लड़ने के  अयोग्य ठहराने की जरूरत थी जैसे कभी महाराष्ट्र में बाल ठाकरे के साथ हुअा था.  

यह चुनाव हमसे यह भी कहता है कि हमें इवीएम मशीनों के बारे में कोई अंतिम फैसला करना चाहिए याकि फिर इनका भी इस्तीफा ले लेना चाहिए. अब वीवीपैट पर्चियों के बारे में जैसी मांग विपक्ष ने उठा रखी है, अौर उसे सर्वोच्च न्यायालय ने जैसी स्वीकृति दे दी है उससे तो लगता है कि अागे हमें फैसला यह लेना होगा कि मशीन गिनें कि पर्चियां ? अौर अगर हमारा इतना सारा कागज बर्बाद होना ही है तो कम-से-कम मशीनों पर हो रहा अरबों का खर्च तो हम बचाएं ! तो कई इस्तीफे होने हैं लेकिन बात तो अभी राहुल गांधी के कांग्रेस की हो रही थी.    

कांग्रेस को खत्म करने की पहली गंभीर अौर अकाट्य पेशकश इसे संजीवनी पिलाने वाले महात्मा गांधी ने की थी. मोदीजी अौर अमित शाहजी ने इतिहास के प्रति अपनी गजब की प्रतिबद्धता दिखाते हुए गांधीजी के इस सपने को पूरा करने का बीड़ा ही उठा लिया अौर कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की दिशा में बढ़ चले. ऐसा करते हुए वे भूल गये कि महात्मा गांधी एक राजनीतिक दर्शन के रूप में भी अौर एक संगठन के रूप में भी उस सावरकर-दर्शन को खत्म करने की लड़ाई ही लड़ते रहे थे मोदी-शाह जिसकी नई पौध हैं, अौर यह लड़ाई ही गांधीजी की कायर हत्या की वजह भी थी. 30 जनवरी 1948 की शाम 5.17 मिनट पर जिन 3 गाोलियों ने उनकी जान ली, वह हिंदुत्व के उसी दर्शन की तरफ से दागी गई थी जिसकी अाज मोदी-शाह पैरवी करते हैं, अौर संघ परिवार का हर ऐरा-गैरा जिसकी हुअां-हुअां करता रहता है. 

यह बिल्कुल सच है कि महात्मा गांधी ने 29 जनवरी 1948 की देर रात में देश के लिए जो अंतिम दस्तावेज लिख कर समाप्त किया था, उसमें एक राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस को खत्म करने की सलाह दी गई है. उन्होंने लिखा था कि कांग्रेस के मलबे में से वे लोक सेवक संघ नाम का एक ऐसा नया संगठन खड़ा करेंगे जो चुनावी राजनीति से अलग रह कर, चुनावी राजनीति पर अंकुश रखेगा. उन्होंने यह भी कहा था कि कांग्रेस के जो सदस्य चुनावी राजनीति में रहना चाहते हैं उन्हें नया राजनीतिक दल बनाना चाहिए ताकि स्वतंत्र भारत में संसदीय राजनीति के सारे खिलाड़ी एक ही प्रारंभ-रेखा से अपनी दौड़ शुरू करें. 

गांधीजी के लिए कांग्रेस दो थी : एक उसका संगठन अौर दूसरा उसका दर्शन ! वे कांग्रेस का संगठन समाप्त करना चाहते थे ताकि अाजादी की लड़ाई की ऐतिहासिक विरासत का बेजा हक दिखा कर, कांग्रेसी दूसरे दलों से अागे न निकल जाएं. यह उस नवजात संसदीय लोकतंत्र के प्रति उनका दायित्व-निर्वाह था जिसे वे कभी पसंद नहीं करते थे अौर जिसके अमंगलकारी होने के बारे में उन्हें कोई भ्रम नहीं था. इस संसदीय लोकतंत्र को  बांझ व वैश्या जैसा कुरूप विशेषण  दिया था उन्होंने. लेकिन वे जानते थे कि इस अमंलकारी व्यवस्था से उनके देश को भी गुजरना तो होगा, सो उसका रास्ता इस तरह निकाला था उन्होंने. लेकिन एक राजनीतिक दर्शन के रूप में वे कांग्रेस की समाप्ति कभी भी नहीं चाहते थे अौर इसलिए चाहते थे कि वैसे लोग अपना नया राजनीतिक दल बना लें. लेकिन संघ परिवार की यह जन्मजात परेशानी है कि उसे इतिहास पढ़ना अौर इतिहास समझना कभी अाया ही नहीं ! वह अपना इतिहास खुद ही लिखता है, खुद ही पढ़ता है; अौर इतिहास के संदर्भ में अपनी-सी ही निरक्षर पीढ़ी तैयार करने में जुटा रहता है.   

गांधी के साथ जब तक कांग्रेस थी, वह एक अांदोलन थी - अाजादी की लड़ाई का अांदोलन, भारतीय मन व समाज को अालोड़ित कर, नया बनाने का अांदोलन ! जवाहरलाल नेहरू के हाथ अा कर कांग्रेस सत्ता की ताकत से देश के निर्माण का संगठन बन गई. वह बौनी भी हो गई अौर सीमित भी. अौर फिर यह चुनावी मशीन में बदल कर रह गई. अब तक दूसरी कंपनियों की चुनावी मशीनें भी राजनीति के बाजार में अा गई थीं. सो सभी अपनी-अपनी लड़ाई में लग गईं. कांग्रेस की मशीन सबसे पुरानी थी, इसलिए यह सबसे पहले टूटी, सबसे अधिक परेशानी पैदा करने लगी. अपनी मां की कांग्रेस को बेटे राजीव गांधी ने ‘सत्ता के दलालों’ के बीच फंसा पाया था, तो उनके बेटे राहुल गांधी ने इसे हताश, हतप्रभ अौर जर्जर अवस्था में पाया. कांग्रेस नेहरू-परिवार से बाहर निकल पाती तो इसे नये डॉक्टर मिल सकते थे लेकिन पुराने डॉक्टरों को इसमें खतरा लगा अौर इसकी किस्मत नेहरू-परिवार से जोड़ कर ही रखी गई. राज-परिवारों में ऐसा संकट होता ही था, कांग्रेस में भी हुअा. अब डॉक्टर राहुल गांधी के इलाज में कांग्रेस है. यह नौजवान पढ़ाई पढ़ कर डॉक्टर नहीं बना है, डॉक्टर बन कर पढ़ाई पढ़ रहा है. इसकी विशेषता इसकी मेहनत अौर इसका अात्मविश्वास है. मरीज अगर संभलेगा तो इसी डॉक्टर से संभलेगा.  

   अब इस चुनाव पर अाते हैं अौर यह देखते हैं कि कांग्रेस विफल कहां हुई. दो कारणों से यह विफल रही : एक, वह विपक्ष की नहीं, पार्टी की अावाज बन कर रह गई. दो, वह कांग्रेस नहीं, नकली भाजपा बनने में लग गई. जब असली मौजूद है तब लोग नकली माल क्यों लें ? कांग्रेस का संगठन तो पहले ही बिखरा हुअा था, नकल से उसका अात्मविश्वास भी जाता रहा. मोदी-विरोधी विपक्ष को कांग्रेस में अपनी प्रतिध्वनि नहीं मिली; देश को उसमें नई दिशा का अात्मविश्वास नहीं मिला. राहुल गांधी ने छलांग तो बहुत लंबी लगाई लेकिन वे कहां पहुंचना चाहते थे, यह उन्हें ही पता नहीं चला. 

नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस विरोधी व्यक्तियों व संगठनों को अपनी छतरी के नीचे जमा कर लिया अौर पांच साल में सत्ता का लाभ दे कर उन्हें खोखला भी बना दिया. अाज एनडीए खेमे की सारी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी के मेमने भर रह गये हैं. वे मोदी से भी अधिक मोदीमय हैं. इसकी जवाबी रणनीति यह थी कि भाजपा विरोधी ताकतें भी एक हों. यह कांग्रेस के लिए भी जरूरी था अौर विपक्ष के लिए भी. लेकिन इसके लिए जरूरी था कि राहुल गांधी खुद को घोषणापूर्वक पीछे कर लेते, अौर विपक्ष के सारे क्षत्रपों को अापसी मार-काट के बाद इस नतीजे पर पहुंचने देते कि कांग्रेस ही विपक्षी एका की धुरी बन सकती है. शायद ऐसा होता कि ऐसा अहसास होने तक 2019 का चुनाव निकल जाता. तो अाज भी तो वही हुअा ! लेकिन जो नहीं हुअा वह यह कि कांग्रेस के पीछे खड़ा होने का विपक्ष का वह एजेंडा अभी पूरा नहीं हुअा. इसलिए बिखरा विपक्ष अौर बिखरता गया, कांग्रेस का अात्मविश्वास टूटता गया. अब राहुल-प्रियंका की कांग्रेस को ऐसी रणनीति बनानी होगी कि 2024 तक विपक्ष के भीतर यह प्रक्रिया पूरी हो जाए अौर कांग्रेस सशक्त राजनीतिक विपक्ष की तरह लोगों को दिखाई देने लगे. ऐसा नया राजनीतिक विमर्श वर्तमान की जरूरत है.  राहुल-प्रियंका की कांग्रेस यदि इस चुनौती को स्वीकार करती है तो उसे खुद को भी अौर अपनी राज्य सरकारों को इस काम में पूरी तरह झोंक देना होगा. यदि वे इस चुनौती को स्वीकार नहीं करते हैं तो कांग्रेस को विसर्जित कर देना होगा. इसके अलावा तीसरा कोई रास्ता नहीं है. 

2019 से देश में दो स्तरों पर राजनीतिक प्रयोग शुरू होगा - एक तरफ सरकारी स्तर पर एनडीए का नया सबल स्वरूप खड़ा हो, तो दूसरी तरफ यूपीए का नया स्वरूप खड़ा हो. इसमें से वह राजनीतिक विमर्श खड़ा होगा जो भारतीय लोकतंत्र को अागे ले जाएगा. इससे हमारा लोकतंत्र स्वस्थ भी बनेगा अौर मजबूत भी. ( 24.05.2019)

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