Saturday 11 May 2019

अपने-अपने मसूद अजहर

 दोनों खबरें एक साथ ही, देश के प्राय: हर छोटे-बड़े अखबार में बड़े हर्फों में छपी हैं. हमने एक पढ़ी; दूसरी या तो पढ़ी नहीं या फिर दोनों खबरों का अंतर्संबंध जोड़ नहीं सके. न पढ़ी तो यह खतरनाक बात है, दोनों को जोड़ कर देख नहीं सके तो यह उससे भी खतरनाक बात है. काली स्याही में, मोटे अच्छरों में छपा हर शीर्षक खबर नहीं होता है; अाज के दौर में तो अौर भी नहीं, क्योंकि खबरों अौर विज्ञापनों अौर सरकारी विज्ञप्तियों के बीच का फसला ही अखबारों ने मिटा दिया है. अब खबर तो वहां छिपी या दबी होती है जहां से चीखते शीर्षक खत्म हो जाते हैं, अौर हम दो-चार शीर्षकों को मिला कर एक खबर देख भी पाते हैं अौर समझ भी पाते हैं.

एक खबर मसूद अजहर को वैश्विक अातंकवादी करार देने की है जो संभव इसलिए हो सकी कि चीन ने अपनी बार-बार की अापत्ति वापस ले ली है. मसूद अजहर भी वही है, उसके इरादे भी वही हैं; पाकिस्तान भी वही है अौर मसूद अजहर जैसे अातंकियों को ले कर उसके इरादे भी वही हैं. अगर कुछ बदला है तो वह है चीन का रवैया ! दूसरी खबर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की है जहां नक्सलियों ने भूमिगत विस्फोटक लगा कर उस बस को उड़ा दिया जिसमें कमांडो सफर कर रहे थे. ड्राइवर समेत 15 कमांडो के चीथड़े उड़ गये. इससे कुछ घंटों पहले ही, इसी इलाके में  नक्सलियों ने सड़क बनानेवाली एक कंपनी के 36 वाहनों को जला कर राख कर दिया था. दरअसल यह कमांडो टुकड़ी नक्सलियों की अागजनी का जवाब देने के लिए ही बुलाई गई थी. जवाब कमांडो टोली को देना था, जवाब दिया नक्सलियों ने अौर यह छोटा पुलवामा घटा ! जब बड़ा पुलवामा घटा था तब वहां के राज्यपाल ने खुलेअाम कबूल किया था कि यह हमारी खुफिया एजेंसी की विफलता का परिणाम है. सरकार ने अपने राज्यपाल की नहीं सुनी अौर कहा िक यह पाकिस्तान का किया-धरा है. अब गढ़चिरौली के मामले में पुलवामा जैसी ही मूढ़ता पर कोई क्यों कुछ नहीं कह रहा है ? तब पाकिस्तान था, तो अब हम स्वंय हैं ! तो क्या यह हमारा ही किया-धरा है ? 

लगातार जारी नक्सली गतिविधियों अौर उन्हें लगातार मिल रहे अाधुनिक हथियारों के पीछे कौन है ? हम कब यह समझेंगे कि दोनों तरफ हमारे ही अपने जवान हैं - एक वर्दी में मारा जा रहा है, दूसरा बिना वर्दी के; अौर पर्दे के पीछे कोई है जो दोनों मौतों के साथ खेल रहा है.   

यह सच समझने की, अौर गांठ बांध लेने की जरूरत है कि सबके अपने-अपने  मसूद अजहर हैं. क्या हमें यह मान लेना चाहिए कि अातंकवाद के संदर्भ में चीन का दिल साफ हो गया है, अौर वह किसी दूसरे मसूद अजहर को पालने-पोसने का काम अब नहीं करेगा ? अौर यह मसूद अजहर तो पाकिस्तान का प्यादा था न जिसे चीन अंतरराष्ट्रीय शतरंज में, पाकिस्तान की तरफ से चलता रहता था. हर प्यादे की उम्र होती है, अौर फिर वह निकम्मा हो जाता है. मसूद अजहर चीन व पाकिस्तान दोनों के लिए निकम्मा हो चला था. उसे ठिकाने लगाने का ‘गंदा काम’ करने की चाल में चीन ने वाशिंग्टन, पेरिस, लंदन अौर दिल्ली को नाक रगड़ने पर मजबूर किया. हमें देखना ही चाहिए कि बीजिंग अौर इस्लामाबाद ने अपने स्तर पर, हर संभव पक्ष से हर संभव रियायतें हासिल कर ली हैं, हमारे अांतरिक मामलों में ‘मध्यस्थ की हैसियत’ बना ली है अौर फिर उस मसूद अजहर को ‘अातंकवादी’ कह दिया है जिसे अब कुछ भी कह लें हम, कोई फर्क नहीं पड़ता है. यह खेल है जो गढ़चिरौली अौर वाशिंग्टन को जोड़ता है.  

हमें याद करना चाहिए कि यह मसूद अजहर हमारी ही कैद से, एक राजनीतिक सौदे के तहत अटलबिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा छोड़ा गया था. तब कंधार विमान अपहरण की घटना हुई थी. तब भारत सरकार ने अपनी राजनीतिक जान बचाने के लिए, मसूद अजहर को प्यादे की तरह इस्तेमाल किया था. उस रिहाई के बाद मसूद अजहर ने जितनी जानें लीं, जितनी अातंकी काररवाइयां कीं क्या उन सबकी नैतिक जिम्मेवारी वाजपेयी सरकार की नहीं है ? हम यह भी याद करें कि मनमोहन सिंह की सरकार ने हाफिज सईद को अातंकवादी घोषित करवाया था. क्या उससे अातंकी काररवाइयां रुक गईं ? क्या पाकिस्तान ने हाफिज सईद पर कोई प्रभावी रोक लगाई ? अौर यह भी क्या मनमोहन सिंह के दौर में अातंकी काररवाइयों की बाढ़ ही नहीं अा गई थी ? अब तो मनमोहन सिंह ने भी सामने अा कर कह दिया है न कि सर्जिकल स्ट्राइक उन्होंने भी करवाई थी. तो इस सरकार का यह तोप भी फुस्स हो गया ! हर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद अातंकी काररवाइयां बढ़ती हैं, क्योंकि सर्जिकल स्ट्राइक न तो युद्ध है, न युद्ध का निषेध !  आप देश का भोला मन भटका सकते हैं, अातंकी को दहशत में नहीं डाल सकते. दरअसल किसी को भी अातंकियों अौर अातंकी काररवाइयों से परहेज नहीं है. कसौटी है तो इतनी ही कि उसका फायदा हमें मिलता है या नहीं ? 

हमें देखना ही चाहिए कि 2014 से अब तक देश में अातंक की जैसी जरखेज फसल उगी है, वैसी तो कभी नहीं उगी थी. घास-फूस पहले भी उगते थे लेकिन उनकी ही खेती नहीं होती थी. अब अातंक की खेती हो रही है अौर सभी की शह से हो रही है. मसूद अजहर हर चौक-चौराहे पर खड़ा लोगों को प्रताड़ित कर रहा है.  राजनीतिक अातंक, सामाजिक व सांप्रदायिक अातंक के साथ-साथ नौकरशाही का अातंक बनता भी गया है अौर बढ़ता भी गया है. हमें बताया जा रहा है कि इसे राष्ट्रवाद कहते हैं. हम समझ नहीं पाते हैं कि डरा हुअा राष्ट्र मजबूत कैसे हो सकता है ! जिस राष्ट्र के पास सभ्य भाषा नहीं है वह संवाद करेगा कैसे ? मसूद अजहर के पास नहीं, इसका जवाब उनके पास होना चाहिए जो मसूद अजहरों को पैदा करते हैं, पालते हैं अौर वक्त की मांग देख कर उनकी बली चढ़ा देते हैं. खामोश सरकारें अौर उनके सफरमैना अधिकारी वही कर रहे हैं जो रूस, अमरीका, पाकिस्तान, चीन जैसे अाका कर रहे हैं. ( 03.05.2019 ) 

No comments:

Post a Comment