Saturday 30 June 2018

अामने-सामने



ऐसा पहले भी हुअा है लेकिन हाल के वर्षों में हुअा नहीं था. मैं यह भी कहूंगा कि हाल के वर्षों में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने ऐसी गलत बिसात बिछाई नहीं थी जैसी उसने पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को अपने वार्षिक समारोह में बुला कर बिछाई. चाल बहुत साफ थी. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रात-दिन एक कर जिस जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल पर कालिख पोतने की विफल कोशिश में लगे रहते हैं, उसी जवाहरलाल नेहरू के भारत-विमर्श को अंधेरे में ठेलने का यह अायोजन था. सालों-साल से संघ-परिवार इसी कोशिश में लगा रहा है. उसे यह भी पता है कि मोदी का शासन-काल उसका स्वर्ण-काल है. सत्तालोलुप राजनीति के पेशेवर खिलाड़ी व सत्ताभीरू लोगों की भीड़ को इसी दौर में अपनी तरफ खींचा जा सकता है. ऐसे ही कांग्रेसियों व दूसरे दलों के लोगों को अपनी तरफ खींच कर नरेंद्र मोदी ने अपनी भाजपा बना ली है, तो मोहन भागवत अपना संघ क्यों न बना लें. संघ को सत्ता में जाना नहीं है लेकिन मजबूत रिमोट से अपनी सरकार चलानी जरूर है. इसलिए संघ चेहरे बदल-बदल कर उन सबमें सेंध लगाने की रणनीति पर चल रहा है जिनमें कभी न उसकी पैठ थी, न उसके दर्शन में कभी उनकी जगह थी- गांधी से ले कर अांबेडकर तक हम यही देखते हैं. प्रणव मुखर्जी इसी रणनीति के तहत बुलाए गये थे. लेकिन प्रणव मुखर्जी ने इस जाल को काटा अौर ‘मोहन’ व ‘महात्मा’ को अामने-सामने कर दिया. 

महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में अपना सार्वजनिक जीवन शुरू किया था अौर तब से ही वे उस जातीय-श्रेष्ठता से अलग, अपना एक भारत-दर्शन तैयार करते मिलते हैं जिसे सावरकर-हेडगवार-गोलवलकर अादि ने अागे बढ़ाया था. 1909 में, अपनी कालजयी रचना ‘हिंद-स्वराज्य’ में गांधी ने पहली बार इस दर्शन को खुली चुनौती दी. तब से लेकर 30 जनवरी 1948 को उनकी गोली खा कर मरने तक गांधी अपनी जगह से इंच भर भी पीछे हटने को तैयार नहीं हुए. दोनों तरफ से तलवारें खिंची रहीं. गांधी वैचारिक वार करते ही रहे, संघ के पास विचार तो था नहीं, तो वह शारीरिक वार करता रहा, अौर पांच कोशिशों के बाद, अपनी छठी कोशिश में वह शरीर की हत्या करने में सफल हुअा. लेकिन शरीर की हत्या करने से विचारों की हत्या नहीं की जा सकती है, यह रहस्य जब तक उस पर खुला, महात्मा गांधी व्यक्ति के चोले से निकल कर, विचार का बाना पहन, अनंत हो चुके थे. विचारों की ऐसी लड़ाई की कोई पूंजी संघ-परिवार के पास कभी नहीं थी. जो उसके पास थी नहीं, वह वह अपने स्वंयसेवकों को अौर संघ-परिवार जनों को देता भी कैसे ! यह दरिद्रता उसे पामाल किए जाती है जिसे अनुशासन, अापदा में सेवा, धर्म, संस्कृति, भारतीयता अादि-अादि के उन्मादी नारों अौर हिंदुत्व खतरे में है के भय की चादर तले छिपाने की उसकी कोशिश चलती रहती है. उसका यह दृढ़ विश्वास है यथास्थितिवादी सुविधाप्राप्त वर्ग अौर अाम लोगों की भीड़ ऐसे नारों की गहराई में जाने की हिम्मत व क्षमता नहीं रखती है. इसलिए उसका काम धर्म व देशभक्ति के अधकचरा ज्ञान से चल जाएगा. इसलिए यह अकारण नहीं है कि गांधी को न मानने वाले व न जानने वाले संघ ने उन्हें अपने प्रात:स्मरणीय लोगों की सूची में दाखिल कर लिया अौर मोदी सरकार ने गांधी के हाथ में झाडू पकड़ा कर, गांधी के प्रति अपनी निष्ठा का अंत कर लिया. 

लेकिन अामना-सामना है कहां ? वह यहां है कि सावरकर कहते हैं कि एक देश में दो धर्म नहीं रह सकते, इसलिए मुसलमानों को उनकी जमीन दे कर अलग कर देना चाहिए; गांधी कहते हैं कि देश धर्मों से नहीं संस्कृतियों से बनते हैं, इसलिए एक देश में दो ही नहीं, अनेक धर्म रह सकते हैं. संघ के विचारक कहते हैं कि धर्म राजनीति करने का हथियार है; गांधी कहते हैं कि धर्म निजी अास्था का विषय है जिसका राजनीतिक व्यापार नहीं किया जाना चाहिए. संघ कहता है कि लक्ष्य ही है जो चाहे जिस रास्ते हो, प्राप्त किया जाना चाहिए; गांधी कहते हैं कि लक्ष्य शुभ है या  नहीं, इसकी कसौटी यह है कि वह मानवीय तरीकों से प्राप्त हो सकता है नहीं, इसे जांचा जाए, क्योंिक अशुद्ध साधनों से किसी शुद्ध लक्ष्य की प्राप्ति की अाशा वैसी ही असंगत है जैसी यह अाशा कि बबूल का पेड़ लगाएंगे अौर इसमें से अाम का फल खाएंगे. गांधी कहते हैं कि इस भारत-भूमि पर जिसने जन्म लिया अौर जिसने इसे अपना वतन माना, वे सब संविधानसम्मत सारे अधिकारों-अवसरों के समान रूप से अधिकारी हैं; संघ कहता है कि हिंदू सबसे अधिक संख्या में हैं इसलिए वे यहां की अाजादी, अवसर, अधिकार, संपदा अादि के पहले अधिकारी हैं, बाकी सबके बारे में फैसला हिंदू ही करेंगे. गांधी कहते हैं कि सत्ता अौर संपत्ति के उद्गम अौर संवर्धन को यथासंभव विकेंद्रित करना होगा तभी भ्रष्टाचार अौर शोषण पर अंकुश लगाया जा सकेगा; संघ कहता है कि हिंदू सत्ता अौर समाज पर हावी होंगे तो यह सब अाप-से-अाप रुक जाएगा. गांधी कहते हैं कि स्त्री किसी के अधिकार या भय के अधीन रहे, यह मुझे किसी हाल में कबूल नहीं; संघ कहता है कि स्त्री किसके अधीन है या किसके द्वारा जलील की जा रही है, इसे देखने के बाद ही यह फैसला हो सकता है कि यह अपराध है या  नहीं अौर इसके लिए कोई दंड विधान होना चाहिए या नहीं. गांधी कहते हैं कि जिस ग्रामाधारित स्वराज्य की मैं परिकल्पना करता हूं, उसमें गो-रक्षा जरूरी है लेकिन वह किसी भी इंसान की जान ले कर नहीं की जानी चाहिए. मतलब यह कि वे गाय को बचाने के लिए अपनी जान देने को तो तैयार हैं लेकिन वे दूसरे किसी की जान ले कर गाय बचाने को तैयार नहीं हैं; संघ कहता है कि गाय धर्म का प्रतीक है, इसलिए चाहे जहां, जितने गैर-हिंदू मारें जाएं, मारे जाएं लेकिन हमें गाय को बचाना है. गांधी कहते हैं कि हमें खेतिहर समाज की विभावना अौर दर्शन के लिए सारे देश में स्वीकृति बनानी है;संघ कहता है कि देश का विकास तेजी से अौद्योगिकीकरण के बिना संभव नहीं है. गांधी कहते हैं कि अतीतजीवी होना न तो सभ्यता है, न संस्कृति; संघ अपने काल्पनिक अतीत से न खुद को, न देश को मुक्त करना चाहता है. यह है अामना-सामना ! यह वह खिड़की है जिससे गांधी को देखा व समझा जा सकता है; यह वह खिड़की है कि जिसे संघ हमेशा-हमेशा के लिए बंद करना चाहता है. प्रणव मुखर्जी ने इस खिड़की की बात संघ के वार्षिक समारोह में की. अब सब गिन रहे हैं कि कितनी खिड़कियां खुलीं अौर कितनी बंद हुईँ. ( 08.06.2018) 


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