Saturday 30 June 2018

घर खाली करो



सभी कह रहे हैं कि देश की हवा बदलती-सी लगती है। जरा देखें हम कि कौन-कौन सी हवा, कहां-कहां बदल रही है। 
उत्तरप्रदेश में घर खाली करने की हवा बहती लग रही है।  जिनको लगता था कि जब तक ऊपर वाला ही न बुला ले तब तक वे अपने घर से नहीं जाएंगे, न्यायालय ने उन सबको घर खाली करने का निर्देश दिया है। अौर अाप देखिए कि घर भी वह कि जो कभी घर था ही नहीं, संविधान से मिला डेरा था; मुंबइया जिसे खोली कहता है! खोली ११ महीनों के लिए मिलती है, यह घर बहुत हुअा तो पांच सालों के लिये मिलता है। लेकिन भाईलोगों ने कभी नहीं माना कि संविधान कभी अपने पर भी लागू करने के लिए होता है। तो इन सबने दिल्ली से ले कर इंफाल तक अौर तिरुअनंतपुरम् से ले कर कश्मीर तक एक ही हवा बहाई कि न कुर्सी छोड़ेंगे, न घर; न भत्ता छोड़ेंगे, न पेंशन; अौर जब चाहेंगे खुद ही अपनी वेतनवृद्धि कर लेंगे। अाखिर तो संसद अौर विधानसभा सार्वभौम है, कौन हमें रोक लेगा !! लेकिन संविधान ने ऐसी अपरिवर्तनीय स्थिति किसी को नहीं दी है। वह तो हमेशा नये को अौर नयों को अाजमाने का दस्तावेज है। 

कहां लिखा है संविधान में कि एक बार सांसद या विधायक बनने की तिकड़म सफल हो गई तो बस पेंशन-भत्ता-जमीन अौर हवा का टिकट अौर लेटरहेड पर ‘पूर्व सांसद या विधायक’ लिखने की अाजादी मिल जाती है? कहां कहता है संविधान की जनता के पैसों से सांसद-विधायक निधि बनाअो अौर फिर सड़क बनाअो कि नाला कि मेनहोल का ढक्कन, सब पर अपने नाम का एक भद्दा-सा बोर्ड टांग दो कि फलां ने फलां निधि से यह बनवाया है। बिड़ला मंदिर देखा है न ! उसकी हर दीवार या ईंट पर लिखा मिलता है कि फलां सेठजी ने अपनी फलां धर्मपत्नी की याद में इतने रुपयों का दान दे कर इसे बनवाया है। भगवान के मंदिर को ऐसा बाजार बना दिया हमने अौर लोकतंत्र के मंदिर को सांसदों-विधायकों के मॉल में बदल दिया । यहां सबकी दूकानें हैं अौर जिससे जहां भी संभव हुअा है, उसने वहां अपना नाम लिखवा लिया। कोई पूछे की बंधु, न पैसा अापका, न कुर्सी अापकी, न यह जगह अापकी तो फिर यहां नाम अापका कैसे ? किसी ने कभी यह सोचा क्या कि अपने लेटरहेड पर जब अाप ‘पूर्व’ लिखते  हैं तब अाप संसार को क्या बतला रहे होते हैं ? ‘पूर्व या भूतपूर्व’ लिखने का मतलब यह है कि अाप दुनिया को बतला रहे हैं कि मैं हारा हुअा, पराजित, रिजेक्टेड माल हूं। इसमें क्या गौरव ? लेकिन पराजित सांसदों के लेटरहेड की तो छोड़िए, घर की नामपट्टी पर भी लिखा देखा है मैंने - भूतपूर्व सांसद ! राजनीति में इन पूर्वों की दलाली चलती है। न्यायालय की नजर इनकी तरफ गई अौर उसने सब पूर्वों को छोड़ कर, पूर्व मुख्यमंत्रियों से बात शुरू की : घर खाली करो! िजस अधिकार के कारण घर मिला था वह अधिकार ही जब जनता ने छीन लिया तो अाप घर कैसे रख सकते हैं ? सवाल छोटा-सा पूछा अौर लखनऊ में कितनी ही जानें सांसत में पड़ी हैं। यादव खानदान, मायावती, भारतीय जनता पार्टी के कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह सबके धरों पर ग्रहण लग गये हैं ! अौर अाप राजनीतिक नैतिकता का स्तर देखिए कि मायावती ने अपने घर को रातोरात कांशीराम स्मारक में बदल दिया तो पिता मुलायम सिंह अौर पुत्र अखिलेश सिंह ने अपनी हैसियत अौर अपनी सुरक्षा के अनुकूल व्यवस्था करने के लिए अदालत से मात्र दो साल की मोहलत मांगी है। कोई पूछे कि जब से अाप पद से हटे तब से अाज तक का समय अापको दी गई मोहलत ही तो थी, तब क्या जवाब होगा इनका? न्यायालय को कहना चाहिए कि अाप अगर अब भी उसी घर में रहना चाहते हैं तो राज्य सरकार से अनुमति प्राप्त कर लें अौर बाजार भाव से उसका किराया, सभी किस्म के कर अादि भरें अौर किरायेदार की तरह रहें। मायावतीजी को किसने बताया कि सार्वजनिक भवनों को अाप जब चाहें तब निजी स्मारकों में बदल सकती हैं ? स्मारक कांशीरामजी का हो कि महात्मा गांधी का, सबकी एक कानूनसम्मत व्यवस्था बनी हुई है जिसका पालन जरूरी है। अब तक उसका पालन नहीं हो रहा था तो इसका मतलब यह नहीं कि अागे भी न हो। अब मायावतीजी चाहें तो वे भी राज्य सरकार से अनुमति ले कर एक वैध किरायेदार की तरह उस घर में रहें अौर जब तक यह घर उनके पास किराये से है, वे उस पर कांशीराम स्मृति संस्थान का बोर्ड भी लगाये रख सकती हैं। 


लेकिन एक सवाल ऐसा भी है कि जिसका जवाब अदालत को भी देना बाकी है। यह गाज केवल उत्तरप्रदेश के ही पूर्वों पर क्यों गिरी है ? सारे देश का एक ही अालम है। भले अदालत के सामने यह याचिका उत्तरप्रदेश के मामले से अाई हो, सर्वोच्च न्यायालय किसी राज्यविशेष तक  सीमित क्यों रहे ? उसे सारे देश के लिए एक ही संहिता घोषित करनी चाहिए। ऐसी अभागी स्थिति बनी है देश के लोकतंत्र की कि यहां राजभवन से ले कर सड़क की सफाई तक में अदालत को दखलंदाजी करनी पड़ रही है। हमारे सारे ही राजनीतिक दल लोकतंत्र के संदर्भ में सिरे से अप्रासांगिक हो चुके हैं। उनका लोकतंत्र येनकेणप्रकारेण सत्ता पाने अौर फिर उस सत्ता पर अपना काबू बनाये रखने की तिकड़म करने से अधिक अौर अलग कुछ नहीं रह गया है। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका लोकतंत्र के संरक्षक की बन जाती है अौर यह भूमिका उसे संविधान ने ही सौंपी है। इसलिए उत्तरप्रदेश का ‘घर खाली करो’ अभियान सारे देश पर लागू होना चाहिए अौर कहीं, किसी भूतपूर्व को घर या कार्यालय या भवन या स्मृति संस्थान पर कब्जा करने का अधिकार नहीं है, यह बात हमेशा-हमेशा के लिए स्थापित की जानी चाहिए अौर उसे लागू भी कराया जाना चाहिए। ( 31.05.2018) 

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