Saturday 30 June 2018

जो थी नहीं वह सरकार गई



पहले जम्मू-कश्मीर का सरकारी युद्धविराम समाप्त कर दिया गया अौर फिर सरकार ही समाप्त कर दी गई ! लेकिन न युद्धविराम हुअा, न सरकार गई ! अब वहां सरकार भारतीय जनता पार्टी की है जो सीधे दिल्ली के निर्देश पर चल रही है: अौर अब वहां युद्ध तो नया ही छिड़ गया है - भारतीय जनता पार्टी बनाम महबूबा का युद्ध ! युद्ध की घोषणा अार.एस.एस. के राम माधव ने दिल्ली में की, उस पर मुहर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने कश्मीर पहुंच कर लगाई. रणनीति साफ थी - राम माधव अपने अौकात की बात करेंगे; अमित शाह ने वह सारा जहर उगलेंगे जिससे हिंदुत्व के अागे की राह बनती है. अब देखना है कि तीसरा मुख क्या कहता है. कांग्रेस अौर नेशनल कांफ्रेंस ने भी अपनी-अपनी बात कह कर, कश्मीर से अपना पल्ला झाड़ लिया. अब कश्मीर में एक होगा जो खुद को अधिकाधिक हिंदुत्ववादी दिखाएगा; दूसरा चाहे, न चाहे, अधिकाधिक कट्टरपंथियों के पास या साथ जाएगा.

कश्मीर का दुर्दैव यह है िक उसके बारे में हमारे पास कोई दूरगामी नीति नहीं है - कश्मीर की त्रासदी से जूझते हुए अौर कांग्रेस व जनसंघ की शुतुरमुर्गी चालबाजियों के वार झेल-झेल कर घायल हुए जयप्रकाश नारायण ने सालों पहले यह बात कही थी. १९ जून २०१८ को यही इबारत फिर से लिखी गई अौर भारत के प्रधानमंत्री अौर कश्मीर की मुख्यमंत्री जोकरों की तरह दिखाई दिए. कभी दोनों का दावा रहा था कि कश्मीर के ताले की चाबी हमारे पास है. अाज हम देख रहे हैं कि चाबी भी किसी दूसरे के पास है अौर ताला भी किसी दूसरे का लगा है. 

  जैसे छुछुंदर के सिर में चमेली का तेल या फिर बंदर के हाथ में मोतियों की माला कुछ वैसा ही है हमारे हाथ में कश्मीर ! इतिहास बताता है कि अाजादी के तुरंत बाद जिस जवाहरलाल को कश्मीर चाहिए ही था उनके हाथ से वह करीब-करीब फिसल चुका था; जिस सरदार का भाव यह था कि कश्मीर नहीं तो नहीं सही, उसे ही हाथ से फिसलते कश्मीर को  मुट्ठी में करने की भूमिका निभानी पड़ी थी. कश्मीर के बारे में इतना भिन्न नजरिया था दोनों का. अाजादी के बाद मिले रक्तरंजित, विकलांग देश को संभालने वाले दोनों पुरोधाअों को यह पता नहीं था कि कश्मीर उन्हें क्यों चाहिए. एक गांधी ही थे जो कश्मीर के बारे में स्पष्ट थे. वे अपने भावी भारत का चेहरा कश्मीर के अाईने में भी देखते थे अौर इसलिए अाजादी से कुछ पहले ही, पहली व अंतिम बार कश्मीर जा कर कह अाए थे कि उनका हिंदुस्तान राजशाही का विरोध करता है अौर लोकतांत्रिक कश्मीर की लड़ाई लड़ रहे शेख अब्दुल्ला का समर्थन करता है. सांप्रदायिक उन्माद जगा कर जब सभी अपनी-अपनी ताकत तौल रहे थे, बूढ़े गांधी ने कहा था कि उन्हें कश्मीर के सांप्रदायिक सद्भाव में भारतीय समाज के लिए अाशा की किरण दिखाई देती है. लेकिन हमें अाशा की किरण नहीं, कुर्सी की चमक दिखाई देती रही अौर हमने कश्मीर का कबाड़ा कर दिया. 

शेख अब्दुल्ला, फारूख अब्दुल्ला, अोमर अब्दुल्ला तथा अब्दुल्ला-खानदान के दूसरे चिरागों ने, मुफ्ती परिवार ने, दिल्ली में बनी हर सरकार ने अौर शयामाप्रसाद मुखर्जी से ले कर नरेंद्र मोदी तक ने कितना कश्मीर को संभालने का काम किया अौर कितना अपना सिक्का जमाने का, अाज का कश्मीर इसका ही जवाब बन कर खड़ा है. अाज का कश्मीर हमारी राजनीतिक ईमानदारी अौर प्रशासकीय कुशलता तथा सामाजिक नेतृत्व के दिवालियेपन का दस्तावेज है. 

अब मोदी सरकार ने कह दिया है िक उसे कश्मीर से फौजी जबान में बात करनी है. लालकिले से गाली-गोली नहीं गले लगाने वाली प्रधानमंत्री की जुमलेबाजी कितनी नकली थी, उनकी ही सरकार अाज इसे प्रमाणित कर रही है.  लेकिन इसके साथ ही यह भी तो प्रमाणित हो रहा है कि गलेबाजी अौर जुमलेबाजी से अाप सरकार बना सकते हैं, देश चला नहीं सकते हैं. इन चार सालों में दूसरा कुछ हुअा हो कि न हुअा हो, यह तो साबित हो ही गया है कि यह सरकार देश चलाना नहीं जानती है. प्रधानमंत्री की विश्वसनीयता अौर सरकार का इकबाल अाज निम्नतम स्तर पर है अौर 2019 अगर इसी का बटन दबा दे तो किसी को हैरान नहीं होनी चाहिए. अाखिर गठबंधन की इस सरकार की हर पहल, हर घोषणा, हर जुमला अाज अौंधे मुंह गिरा नजर अा रहा है तो क्यों ? कुछ जवाब अाप देंगे, कुछ महबूबा अौर बहुत सारा 2019 में मतदाता देगा.

महबूबा-मोदी के तीन साल से ज्यादा चले गठबंधन में वे एक-दूसरे से शह अौर मात का खेल खेलने में लगे रहे अौर एक-दूसरे को इस्तेमाल करते रहे. इसलिए हमने देखा कि जितनी भी प्रधानमंत्री महबूब के कश्मीर गये, उनके हुजूर में कसीदे पढ़ के अाए अौर महबूबा ने तो कह दिया कि मोदीजी ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो कश्मीर की समस्या हल कर सकते हैं. न कभी राम माधव ने कहा अौर न कभी अमित शाह ने कहा कि महबूबा-सरकार मुस्लिम अाबादी का पोषण कर रही है अौर गैर-मुस्लिम अाबादी की उपेक्षा ! महबूबा ने भी कभी देश को यह नहीं बताया कि गठबंधन में उन पर जोर डाला जा रहा है कि वे दमन की काररवाई तेज करें अौर न यही कि भारतीय जनता पार्टी गठबंधन धर्म का पालन नहीं कर रही है. फिर रातोरात सारा कुछ बदल कैसे गया ? शायद इसलिए कि दोनों ने यह समझ लिया कि अब इस रिश्ते को बहुत निचोड़ कर भी कुछ पाया नहीं जा सकता है. 

अब वह भी होगा कि जिसकी तरफ महात्मा गांधी ने सांप्रदायिक दंगों के दौरा, 1948 में कहा था : "  कानाफूसी सुनी है कि कश्मीर को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है. इनमें से जम्मू हिंदुअों के हिस्से अाएगा अौर कश्मीर मुसलमानों के हिस्से. मैं ऐसी बंटी हुई वफादारी की अौर हिंदुस्तान की रियासतों के कई हिस्सों में बंटने की कल्पना भी नहीं कर सकता. मुझे उम्मीद है कि सारा हिंु्तान समझदारी से काम लेगा अौर कम-से-कम उन लाखों हिंदुस्तानियों के लिए, जो लाचार शरणार्थी बनने के लिए बाध्य हुए हैं, तुरंत ही इस गंदी हालत को टाला जाएगा. 

( दिल्ली डायरी, पृ 169) 

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