Thursday 30 August 2018

क्या यह देश डरा कर रखा जा सकता है


२८ अगस्त की सुबह मुंबई, ठाणे, हैदराबाद, रांची, दिल्ली अौर फरीदाबाद में एक साथ दबिश पड़ी। लगा कि नीरव मोदी या माल्या की गर्दन पकड़ने की दबिश है। लेकिन ऐसा नहीं था। दबिश में ऐसे ५ लोगों को गिरफ्तार किया गया जिन्हें इस २६ जनवरी को देश का नागरिक सम्मान दिया जाता तो ज्यादा मुफीद होता। सर्वोच्च न्यायालय में इन गिरफ्तारियों के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायाधीश की खंडपीठ ने कई ऐसी टिप्पणियां कीं कि जिसके बाद सरकार को इन गिरफ्तारियों को निरस्त कर देना चाहिए था अौर अदालत द्वारा मुकरर्र ६ सितंबर की सुनवाई में अपने सारे प्रमाणों के साथ अदालत को भी अौर देश को भी दो टूक जवाब देना चाहिए था। ऐसा होता तो सरकार का चेहरा साफ होता अौर उन सबको कठघरे में खड़ा होना पड़ता जो नागरिक अधिकार व पिछड़े वर्गों की अाड़ में हिंसा का घटाटोप रचने के अारोपी हैं। लेकिन सरकारें इतनी सयानी नहीं होती हैं, वे चाबुक को अक्ल की जगह इस्तेमाल करती हैं। इसलिए हमें भी अौर हम सबको भी ६ सितंबर का धैर्य से इंतजार करना चाहिए।
हम यह न भूलें कि २०१४ से भारतीय समाज का एक नया ही ध्रुवीकरण किया जा रहा है। यह वह ध्रुवीकरण नहीं है जो राजनीतिक सत्ता पाने के लिए किया जाता रहा है। हम न इसकी कोई मर्यादा बना सके अौर न इसकी कोई कानूनी काट खोज सके। सत्ता सदा ही स्वार्थी होती है लेकिन अपने वक्ती स्वार्थ से अागे जाने का खतरा वह नहीं लेती है। अाज खेल दूसरा खेला जा रहा है जिसमें सत्ता एक पक्ष के साथ जुड़ गई है। अब लोकतंत्र का चरित्र ही बदल देने की तैयारी चल रही है। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने यह सख्त टिप्पणी की कि असहमति को कुचलने का सरकार का यह रवैया बड़े खतरे का संकेत देता है।उन्होंने प्रश्न खड़ा किया कि लोकतंत्र का प्रेशरकूकर फट पड़े, सरकार ऐसी योजना बना रही है ? गिरफ्तार पांचों व्यक्ति अाज के नहीं, वर्षों के अाजमाये हुए सामाजिक कार्यकर्ता हैं जिन्होंने हमेशा उन लोगों की अावाज उठायी है जिनकी अावाज उठाना हमेशा अपराध-सा मान लिया जाता है। अावाज लोकतंत्र का अविभाज्य अंग है। अगर वह अपराध है तो सारा लोकतंत्र धोखे की टट्टी में बदल जाएगा। इसलिए हम बहुत सहमत हों या न हों, असहमति की अावाज को कहीं भी दबाया जाए तो देश की सामूहिक चेतना को अावाज उठानी चाहिए। हमें अाभारी होना चाहिए कि 28 की सुबह की गिरफ्तारी के खिलाफ सारे देश में अावाज उठी अौर अदालत ने देश मेें सांस लेने का माहौल बनाया। 

लेकिन बात इससे अागे जाती है। राज्यसत्ता को संविधानसम्मत हिंसा का लाइसेंस हमने ही दे रखा है। इस सांप के पास विष है, यह हम जानते हैं लेकिन हमें यह भी जानना चाहिए कि  संविधान ने इस विष का मुकाबला करने के दो हथियार भी हमें दिये हैं। पहला यह कि समाज अपने कार्यकलापों में हिंसा का सहारा न ले तो सरकारी हिंसा निरुपाय हो जाती है। यही वह रणनीति है जिसके सहारे महात्मा गांधी ने संसार के सबसे बड़े साम्राज्य को अप्रभावी बना दिया था। सामाजिक कार्यकर्ता यदि हिंसा की रणनीति नहीं बनाते हैं, सामाजिक हिंसा को उकसाते नहीं हैं तो वे राज्य की हिंसा को अप्रभावी ही नहीं बनाते हैं बल्कि राज्य को अनुशासित करने वाली दूसरी संवैधानिक ताकत न्यायपालिका को भी समर्थ बनाते हैं। हमें यह बात गांठ बांध लेनी चाहिए कि किसी भी स्तर पर, कैसी भी हिंसा राज्य को वैसी गर्हित हिंसा करने का अवसर देती है जिसकी ताक में वह रहती है। अाप सामाजिक हिंसा की रणनीति बनाएंगे तो राज्य की सौ गुना बलशाली अमर्यादित हिंसा से नागरिकों को बचा नहीं सकेंगे। अभी निशाने पर अाए हमारे इन पांच सामाजिक कार्यकर्ताअों ने इस पहलू पर पर्याप्त सफाई नहीं रखी है अौर इनके समर्थन में सामने अाए हम लोगों ने भी इस कमजोरी को रेखांकित नहीं किया है। हमें अदालत का अाभारी होना चाहिए कि उसने हमें फिर यह मौका दिया है कि हम अपनी भूमिका साफ करें।

अाज केंद्र की अौर राज्य की सरकारों को भी कई जवाब देने हैं। इन गिरफ्तारियों से पहले सनातन संस्था का बड़ा मामला फूटा था अौर कई वे चेहरे सामने अाए थे जो हिंसा के षड्यंत्रकारी सिपाही रहे हैं। स्वामी असीमानंद का चेहरा भी उरभरा था। वह सारा मामला किसी की नींद हराम नहीं कर सका। अाज कहीं से यह बात चलाई गई है कि देश में यहां-वहां प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश हो रही है। जब प्रधानमंत्री गुजरात के मुख्यमंत्री हुअा करते थे तब भी ऐसा ही अालम रचा जाता था। प्रधानमंत्री की रक्षा में कोई चूक न हो इससे कौन इंकार करेगा लेकिन देश के बौद्धिक जगत के कई लोगों की हत्या के प्रति सरकारें उदासीन रहें अौर कई मजबूत प्रमाणों के बावजूद कोई प्रभावी काररवाई न हो, इसे कौन स्वीकार करेगा ? सनातन संस्था को भारतीय जनता पार्टी की महाराष्ट्र सरकार की एजेंसी ने बेनकाब किया है। उसके पास से ऐसी सूची बरामद हुई है कि जिसमें जिनकी हत्या करनी है, उनके नाम दर्ज हैं। गौरी लंकेश की हत्या के मामले में अब तक जितनी गिरफ्तारियां हुई हैं वे बता रही हैं कि ऐसी सारी हत्याअों के पीछे एक ही संगठन, एक ही दिमाग, एक ही समर्थक ताकत अौर एक ही थैली का इस्तेमाल हुअा है। इसे अाप पर्दे में रखें अौर अावाज उठाने वालों को कुचल कर, देश को डरा कर मुट्ठी में रखने की रणनीति बनाएंगे तो देश भी हारेगा अौर अाप भी। ( 29.08.2018)        

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