Saturday 25 August 2018

अभी तो यहीं थी,जाने अब कहां है …. अाजादी !



            हमारी परंपरा में त्रिमूर्ति की बड़ी महिमा है. अाजादी की लड़ाई में भी तीन स्वर गूंजे थे : एक, जब तिलक महाराज ने कहा था : स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है अौर हम उसे लेकर रहेंगे ! स्वराज्य की ऐसी निष्कंप घोषणा अौर उसे ले कर ही रहने का ऐसा संकल्प देश की अात्मा को निहाल कर गया था. हमारी अाजाद की लड़ाई के हवन-कुंड में इसने नई समिधा डाल दी!… लेकिन गुलामी है ही वह विष जो हमारा मन तोड़ डालती है; लंबी गुलामी उसे छिन-भिन्न कर डालती है. इसलिए तिलक के बाद गांधी की दूसरी अावाज गूंजी : मेरा कार्यक्रम अौर मेरा रास्ता कबूल करोगे तो साल भर में अाजादी ला कर देता हूं ! स्फटिक की तरह निर्मल मन से बोला गया यह वचन किसी हीरे की तरह अकाट्य था. मेरा रास्ता अौर मेरा कार्यक्रम कह कर गांधी ने तिलक महाराज के अमूर्त स्वराज्य को रूप भी दे दिया अौर अात्मा भी ! किसी गहरी घाटी में पैदा हुए निनाद-सा यह कथन भारतीय समाज के मन में गूंजता रहा अौर गांधी की अाजादी का कैलेंडर बदलता गया. देर से अाती हुई इस अाजादी की प्रतीक्षा सह्य नहीं हो रही थी, सो सुभाष बाबू ने तड़प कर तीसरी पुकार लगाई : तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें अाजादी दूंगा !

तिलक महाराज संकल्प मांग रहे थे, महात्मा गांधी वचन मांग रहे थे अौर सुभाष बाबू बलिदान मांग रहे थे; अौर तीनों मिल कर एक ही चीज मांग रहे थे  : गुलाम भारत की अाजादी !! अाजादी, जो अविभाज्य होती है, असीम होती है अौर सर्वस्पर्शी होती है. सुभाष इस अाजादी की खोज में देश से बाहर निकले. जापान-जर्मनी तक गये. गांधी को छोड़ा, गांधी का रास्ता छोड़ा अौर बंदूक उठाई. फौजी बाना पहना, जंग लड़ी, किसी हद तक जंग जीती भी, अौर फिर जंग भी हारी अौर जीवन भी. गांधी विचलित हुए, देश रोया लेकिन अाजादी दूर ही रही. फिर कितने सालों के बाद वह अाजादी मिली - 15 अगस्त 1947 में ! बहुत जश्न हुअा. अाधी रात को, जब सारी दुनिया नींद में बेसुध पड़ी थी, हमने अाजादी की तरफ अांखें खोलीं. संसार को सोता छोड़ हम उठ बैठे. हमारे नेता व पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सारे देश की तरफ से नियति से एक वादा किया : अाजादी को अर्थपूर्ण बनाने का वादा !  
  
अब तिलक, गांधी अौर सुभाष तीनों ही नहीं हैं. जवाहरलाल भी नहीं हैं. अौर हम खोज रहे हैं कि वह अाजादी गई कहां जो हमें 72 साल पहले मिली थी ? वह हमें कहीं पड़ी, गिरी नहीं मिली थी. बहुत त्याग-बलिदान अौर संघर्षों के बाद हमने उसे हासिल किया था. लेकिन अाज हम खोज रहे हैं कि वह अाजादी किधर रख दी गई है कि जिसके लिए हमने संविधान बनाया, न्यायतंत्र खड़ा किया अौर संसद रची ? इतनी विधानसभाएं अौर इतने विधायक; एक चमकीली संसद अौर इतने सांसद सब अाजादी के गर्भ से ही तो पैदा हुए हैं लेकिन अाजादी गई किधर किसी को पता है क्या ? विधायक हों कि सांसद, न्यायमूर्ति हों कि नौकरशाह, हर कोई यही पूछता मिलता है कि वह अाजादी कहां गई जिसका सपना हमने देखा अौर दिखाया था ? कभी कहा करते थे गांधी-विचार मर्मज्ञ स्व. धीरेन मजूमदार कि तिलक-गोखले-गांधी की त्रिमूर्ति ने देश के असंख्य लोगों के त्याग-बलिदान की ताकत जोड़ी तब कहीं जा कर हमारी अाजादी की गाड़ी लंदन से निकल सकी अौर दिल्ली पहुंची. लेकिन दिल्ली में ही उसका इंजन फेल हो गया ! वह तबसे वहीं अंटकी पड़ी है अौर हम देश के लाखों गांवों-कस्बों-शहरों में उसकी खोज कर रहे हैं. जो वहां है ही नहीं, वह वहां मिले कैसे ? उनकी बात मार्मिक थी लेकिन मुट्ठी में अाती नहीं थी. जो मुट्ठी में नहीं अाए वह अाजादी कैसी ? लगता है मानो अाजादी भी किसी अच्छे दिन की तरह हो गई है कि जिसके अाने का शोर बहुत हुअा लेकिन जो अाए नहीं. अब तो अालम यह है कि शोर भी बंद हो गया है अौर अच्छे दिन को चुनावी जुमला करार दिया गया है.

अाजादी का संघर्ष बड़ा दुर्धर्ष होता है लेकिन इंसान उसे लड़ता अौर जीतता ही अाया है. लोगों ने राजशाही से उसे छीना; साम्राज्यवाद के जहरीले दांतों से उसे अाजाद कराया. पूंजीवाद अौर साम्यवाद की पकड़ से उसे बाहर निकाल लिया. लेकिन वह किसके हाथ अाई ? पूंजीवादी समाज में वह अभी भी पूंजी के हाथों बंधक है; तानाशाहों ने उसे फौजी लिबास पहना दी है; साम्यवादियों के यहां उसे सरकारी बैसाखी पर खड़ा किया गया लेकिन वह टूटी तो ऐसी भहराई की जैसे अाजादी न हो, भारत सरकार द्वारा निर्मित बांध हो कि जो हर साल बाढ़ का पानी रोकने के लिए बनाया जाता है अौर हर साल बाढ़ का पानी उसे तोड़ डालता है. अब दुनिया में जहां जैसा साम्यवाद बचा है उसमें अाजादी कोई मुद्दा नहीं है. एक गांधी ही थे कि जिन्होंने अाजादी पाने का संघर्ष जितना तीव्र किया उतनी ही गहराई व प्रखरता से हमें अाजादी की पहचान भी कराई. 

15 अगस्त 1947 को, जब देश अाजादी का जश्न मना रहा था, गांधी जश्न में डूबी दिल्ली से कहीं दूर कोलकाता में बैठ, सांप्रदायिकता की लपटों में घिरे अग्नि-स्नान कर रहे थे. वे बार-बार एक ही बात कह रहे थे कि समाज में सहिष्णुता नहीं हो, तो अाजादी अर्थहीन भी होगी अौर अस्थाई भी ! बीबीसी का संवाददाता पूछ रहा था कि भारत की इस चिर-प्रतीक्षित अाजादी के दिन  वे दुनिया को क्या संदेश देना चाहेंगे ? चरखा कातते-कातते वे ठिठके अौर फिर बोले : दुनिया से कह दो कि गांधी को अंग्रेजी  नहीं अाती है ! वे कह रहे थे कि अाजाद देश को अपनी भाषा अौर अपनी संस्कृति का भान भी हो अौर सम्मान भी, तभी अाजादी टिकाऊ भी होगी अौर विकासमान भी. जवाहरलाल ने कहा कि बापू, अभी हमसे जितना चर्खा चलवाना हो, चलवा लीजिए, अाजाद भारत में तो हम यह चर्खा खूंटी पर टांग कर, विकास की यांत्रिक व्यवस्था करेंगे. गांधी गंभीर हो गये- अगर तुम्हारे अाजाद हिंदुस्तान में चर्खा खूंटी पर टांगा जाएगा तो मेरी जगह तुम्हारी जेल में होगी ! वे कह रहे थे कि अाजादी तभी हाथ में अाती है अौर तभी टिकती है जब उत्पादन के साधन अाम लोगों के हाथ में अौर अधिकार में रहें. खादी-ग्रामोद्योग के रूप में वे एक ऐसा तंत्र खड़ा करना चाहते थे जो अाजादी को परिपूर्ण करे. इसलिए एक तबीज भी लिख कर दिया उन्होंने देश के भावी शासकों को : मैं तुम्हें एक जंतर देता हूं. जब भी तुम्हें संदेह हो या तुम्हारा अहम् तुम पर हावी होने लगे तो यह कसौटी अाजमाअो.. जो सबसे गरीब अौर कमजोर अादमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो अौर अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस अादमी के लिए कितना उपयोगी होगा ? क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा ? क्या वह उससे अपने ही जीवन अौर भाग्य पर कुछ काबू रख सकेगा ? यानी क्या उससे उन करोड़ों लोगों को स्वराज्य मिल सकेगा जिनके पेट भूखे हैं अौर अात्मा अतृप्त ? तब तुम देखोगे कि तुम्हारा संदेह मिट रहा है अौर अहम समाप्त होता जा रहा है. वे कहते हैं कि यह अंतिम अादमी ही तुम्हारी नीतियों का अाधार होगा, तुम्हारी कसौटी होगा अौर वही तुम्हारी सफलता का पैमाना भी होगा. 

अाजादी इसलिए मुश्किल से मिलती है अौर उससे भी मुश्किल से संभाली जा पाती है, क्योंकि वह अाखिरी अादमी से शुरू होती है अौर अाखिरी अादमी पर समाप्त होती है. यह यांत्रिक नहीं है कि अपना झंडा हो, अपनी सरकार हो, अपनी संसद अौर अपना अखबार हो; कि फौज हो कि पुलिस हो. यह सब हो लेकिन किसके लिए हो, यह कसौटी है अाजादी की. हमारी अाजादी इसलिए हमारे हाथ नहीं अाती कि हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है. नौजवानों के लिए देश बेरोजगारों की फौज है; बीमारों के लिए देश ऐसा अस्पताल है जिसमें उनके लिए जगह नहीं है; किसान के लिए देश एक ऐसा खेत है जिसमें न पानी है, न बीज, न बाजार ! वह कुछ भी बोता है लेकिन उगती है सिर्फ मौत; अौर सरकार ? वह हर इंसानी जान की कीमत पैसों में अदा कर फुर्सत पा जाती है. न तिलक ने, न गांधी ने अौर न सुभाष ने ऐसी अाजादी अौर अपने नागरिकों के ऐसे हाल की कल्पना की थी. फिर भी यह अाजादी अनमोल है क्योंकि इस अाजादी को बेहतर अौर असली बनाने की अाजादी इसमें है. ( 14.08.2018 )   

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