Saturday 25 August 2018

अगर मैं गृहमंत्री होता ...



अाप सब जान लें कि मैं भारतीय जनता पार्टी के दो रत्न - कर्नाटक के विधायक वसनगौडा पाटील यतनाल अौर उत्तरप्रदेश के अांबेडकर नगर के सांसद हरिअोम पांडे से प्रेरित हो कर यह लेख लिख रहा हूं. मैं इतनी गहराई से प्रेरित हुअा हूं कि यह मेरा अंतिम लेख हो, तो भी मैं इसे लिखने से पीछे नहीं हटूंगा. 

वसनगौडा पाटील यतनाल को इस बात का अफसोस है कि वे कर्नाटक के गृहमंत्री नहीं हैं. अगर होते तो ‘पाकिस्तान से भी ज्यादा खतरनाक दुश्मन, बुद्धिजीवियों अौर धर्मनिरपेक्ष लोगों से’ कर्नाटक को मुक्त करवा देते. नहीं, उन्होंने सिर्फ जुमलेबाजी नहीं की. उन्होंने बाजाप्ता बताया कि वे ऐसा कैसे करते. वे इन दोनों पर सर्जिकल स्ट्राइक करवाते - दोनों को गोलियों से उड़ा देने का अादेश देते. वे ऐसा क्यों करते ? इसलिए कि ये बुद्धिजीवी अौर धर्मनिरपेक्ष लोग खाते हैं हमारे देश का, हमारी हवा का अॉक्सीजन खींच कर जिंदा रहते हैं, हमारा पानी पीते हैं अौर हमारी सरकार द्वारा किए विकास का मजा लेते हैं लेकिन हमारी फौज के खिलाफ नारे लगाते हैं. मैं वसनगौड़ा जी के चिंतन की इस गहराई की थाह ले पाता कि मुझे हरिअोम पांडे के चिंतन से रू-ब-रू होना पड़ा. उन्होंने कहा कि देश में अपराध अौर बलात्कार की वारदातें बढ़ती जा रही हैं क्योंकि मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ती जा रही है. मुसलमान ३-४ शादियां करते हैं अौर ९-१० बच्चे पैदा करते हैं. इतने बच्चों को वे सड़कों पर अावारा भटकने को छोड़ देते हैं जिससे अराजकता फैलती है. मैं इस तर्क को समझ पाता कि मेरे सामने भारतीय जनता पार्टी के कई विचारशील लोगों की टिप्पणियां अा गई जिसमें मुसलमानों से कहा गया था कि वे गौ-मांस खाना अौर गाय की तस्करी करना छोड़ दें तो ‘मॉब लिंचिंग’ स्वत: बंद हो जाएगी. भाजपा के सांसद अनंतकुमार हेगडे ने भी  बहुत परेशान हो कर कहा कि कुछ लोग अपने को बुद्धिजीवी, कवि, कलाकार अादि इसलिए कहते हैं ताकि उन्हें सरकारी सहूलियतें मिल सकें.

इतना कुछ पढ़ते-जानते-समझते मैं घबरा गया. मैं इस देश का सीधा-सादा नागरिक हूं अौर बुद्धि से जीता हूं, तो बुद्धिजीवी हूं. भाजपा के इन महान चिंतकों की मैं नहीं जानता लेकिन वैसे मुझे लगता है कि हर अादमी बुद्धि से ही जीता है, तो हर अादमी बुद्धिजीवी है. मैं इस देश की हवा के अॉक्सीजन से जीता हूं, इस देश का पानी पीता हूं, इसी धरती से पैदा अनाज खाता हूं अौर इस देश में ७० सालों में जो विकास नहीं हुअा, उसका मजा लेता हूं. हां, मैं अपनी फौज के खिलाफ नारे नहीं लगाता हूं लेकिन मैं अपनी फौज को ईश्वरीय दूत भी नहीं मानता हूं. मैं मानता हूं कि फौजी भी मनुष्य ही होते हैं अौर मनुष्यगत कमजोरियों से उसी तरह घिरे होते हैं कि जिस तरह हम या अाप ! ( वसनगौडा सर कहेंगे तो मैं अपने इस ‘अाप’ में से भाजपा को बाहर करने को तैयार हूं !). तो वासनगौडा सर गृहमंत्री होंगे तो हम सब मारे जाएंगे. वे गृहमंत्री बनें अौर अपनी मनोकामना पूरी करें, इससे पहले मैंने भी उनकी ही तरह सोचा कि अगर मैं गृहमंत्री बन जाऊं ( राजनाथ सिंहजी, अाप घबराएं नहीं, यह एकदम मोदी-जुमला है !) तो मैं क्या करूंगा; क्या-क्या करूंगा. फांसी देने से पहले अंतिम इच्छा पूछते हैं न, तो कुछ इसी भाव से अाप अागे पढ़िए. 
मैं गृहमंत्री बनते ही पहला काम यह करूंगा कि देश में कानून-व्यवस्था के जिम्मेवार हर अधिकारी की जिम्मेवारी तय कर दूंगा - अपनी समझ अौर अपनी युक्ति से, अपने सारे संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए अपनी जिम्मेवारी निभाअो ! विफल हुए या चूक हुई तो नौकरी से जाअोगे - तबादला नहीं, बर्खास्त. किसी पार्टी, किसी दादा, किसी अंडरवर्ल्ड गैंग की सुनी तो तुम्हारी सुनने वाला कोई नहीं होगा. मॉब लिंचिंग हो, सांप्रदायिक दंगा हो, बलात्कार या गैंगवार हो, उस इलाके के दारोगा से ले कर जिलाधिकारी तक की बर्खास्तगी निश्चित व अंतिम समझिएगा. कानून-व्यवस्था से संबंधित हर अदालती अादेश का शब्दश: पालन करना होगा अौर किसी भी अापराधिक मामले में पूरा व पर्याप्त सबूत न जमा करने की अदालती टिप्पणी पर, सख्त काररवाई होगी. किसी भी वर्ग, समुदाय, जाति, धर्म के बीच दूरी बढ़ाने वाला, घृणा फैलाने वाला या असुरक्षा का भाव पैदा करने वाला कोई भी बयान, कोई भी टिप्पणी अापराधिक मानी जाएगी अौर अपराध की सजा मिलेगी ही. 

अदालतें अपना काम करेंगी, प्रशासन अपना काम करेगा. देश में बहुत सारी सामाजिक रीतियां-परंपराएं-रिवाज घिस-पिट कर कालवाह्य हो गये हैं. उन्हें ढोना या चलाये रखना अमानवीय व अलोकतांत्रिक है. धर्म-जाति-क्षेत्र अादि का भेद किए बिना गृह मंत्रालय इन्हें प्रतिबंधित कर देगा अौर उनका सख्ती से निषेध करेगा. लेकिन गृह मंत्रालय के खिलाफ जाने के लिए अदालत के दरवाजे खुले रहेंगे. हर अदालती अादेश का जैसे नागरिक पालन करता है वैसे ही गृह मंत्रालय भी करेगा. देश चलाना सरकार चलाने से बड़ा काम है; देश की सुनना पार्टी की सुनने से ज्यादा जरूरी है.  

बौद्धिकों, कलाकारों, पत्रकारों से लेकर मजदूर यूनियनों, विपक्षी दलों तथा सभी किस्म के संगठनों को पूरी अाजादी होगी कि वे जहां चाहें, जैसे चाहें अपनी बात कहें, गृह मंत्रालय की तीखी अालोचना करें, मेरा मुर्दाबाद करें, मेरा इस्तीफा मांगें. यह सब खुले अाम करें. बस, एक ही रोक होगी कि कोई, कभी, किसी भी जगह से हिंसा करने, हिंसा के लिए ललकारने या अशांति फैलाने के लिए उकसाने का काम न करे- न संकेत में,  न शब्द में, न मुद्रा में. 
मुझे पक्का भरोसा है कि यदि ऐसा गृहमंत्री बनना हो तो वसनगौडा सर तैयार नहीं होंगे.  ( 29.07.2018)  

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