Friday 27 July 2018

इमरान का पहला अोवर



हाथ की रेखाएं पढ़ने वाला ज्योतिषी किसी टेढ़े हाथ को देख कर, जिसके बारे में कुछ भी बोलना ‘हक’ में नहीं होगा ऐसा उसे लगता है,  अक्सर ऐसा कहता मिलता है कि अभी रेखाएं पूरी बनी नहीं हैं, तो क्या पढूं ! ऐसा ही है पाकिस्तान की राजनीति का चेहरा भी। अभी इतना बना ही नहीं है कि उसे पढ़ा जा सके अौर कुछ कहा जा सके। इसलिए बात पाकिस्तान की राजनीति की नहीं, इस चुनाव से उभरे इमरान खान की करें गे हम जिन्हें पाकिस्तान के फौजी प्रतिष्ठान ने अपना अादमी मान कर सामने किया, उनका माहौल बनाया है अौर उनके लिए वोट बटोरे। इस तरह इमरान पाकिस्तान के वजीरे-अाजम बन गये हैं। पाकिस्तान के इतिहास में यह दूसरी घटना है जब एक चुनी हुई सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया है अौर वह दूसरी चुनी हुई सरकार को सत्ता सौंप रही है। इमरान पाकिस्तानी राजनीति की पिच पर बड़ी शिद्दत से अपना पहला अोवर फेंकने में जुटे हैं। वे अपनी भावी सरकार का नीति वक्तव्य भी दे रहे हैं जबकि उन्हें भी अौर दूसरे किसी को भी नहीं मालूम है कि एक मुल्क के नाते पाकिस्तान कहां खड़ा है अौर किधर जा रहा है। यह भी सवाल खड़ा है कि उनकी सरकार कौन चलाएगा।  
यह सब खासा दिलचस्प है- अौर खासा खतरनाक भी। भारतीय उप-महाद्वीप में इमरान की दो ही छवियां है - एक है अाला क्रिकेटर की अौर दूसरी है एक बिगड़ैल शोहदे की। ये दोनों छवियां राजनीति में उन्हें कोई मजबूत पहचान नहीं देती हैं। क्या इमरान की कोई राजनीतिक पहचान है भी ? वे एक अात्ममुग्ध इंसान रहे हैं जिसने जीवन को भी खिलंडरे  की तरह खेला है। उनके साथी खिलाड़ी भी उनके खिलाड़ी रूप के अलावा दूसरी कोई बात करते नहीं हैं अौर उनकी अब तक जितनी बीवियां रही हैं उनमें से कोई भी उनकी एक अच्छी व गैरतमंद छवि की गवाही नहीं देती हैं। फिर पाकिस्तान ने उन्हें क्यों चुना ? इमरान को इस सवाल का जवाब खोजना है क्योंकि इस जवाब में ही वह चुनौती छिपी है जिसका सामना वजीरे-अाजम की कुर्सी पर बैठते ही उनको करना है। 
यह हर तरफ से घिरा-पिटा-घबराया तथा अपमानित पाकिस्तान  है जिसे एक खुली संास की जुस्तजू है। लगातार फौजी बूटों से कुचली जाती अात्मा का यह मुल्क हर तरह से बेहाल कर दिया गया है। अशिक्षा-कुशिक्षा, गरीबी-जहालत, धार्मिक-जातीय उन्माद, अांतरिक अशांति अौर भारत का भूत, बेहिसाब राजनीतिक भ्रष्टाचार अौर फौजी हुक्मरानों का स्वार्थी गंठजोड़ - पाकिस्तान इन्हीं तत्वों से बनाया गया था, इन्हीं के हाथों बर्बाद होता रहा। पश्चिमी ताकतों ने इसका राजनीतिक दोहन किया, तो पाकिस्तानी हुक्मरानों ने इसे व्यापार में बदल लिया। मुहम्मदअली जिन्ना ने भारत से अपना मुल्क कुछ इस तरह छीना कि छीना-झपटी इसकी कुंडली में ही लिख गया। सिया-सुन्नी, मुजाहिर, अफगानी, सिंधी, हाफिज सईद जैसे सब इस मुल्क से छीनते ही रहे। बाकी सारी कसर भारत से हुए एक-के-बाद-दूसरे युद्धों ने निकाल दी। तिकड़मों से मुल्क पर कैसे काबिज होते हैं, यह कला अापको सीखनी हो तो अापको पाकिस्तान जाना चाहिए।  पाकिस्तान के अवाम के अागे हमें सर झुकाना चाहिए कि उसने ऐसे  हालात में बसर करते हुए भी जब भी किसी ने जम्हूरियत का नारा लगाया, उसने अागे बढ़ कर उसका साथ दिया। वह हर बार छला गया है अौर हर बार वह धूल झाड़ कर उठ खड़ा हुअा। इस चुनाव में इमरान ने ‘नया पाकिस्तान’ का नारा बुलंद किया  था। लेकिन इमरान की अपनी झोली में क्या नया था ? पाकिस्तान के लिए क्रिकेट का विश्वकप जीतने के बाद इमरान ने अपना रास्ता बदला, क्योंकि क्रिकेट से जितना निजी गौरव निचोड़ा जा सकता था, उन्होंने निचोड़ लिया था। अपनी पहचान का नया पन्ना खोलने के लिए उन्होंने अपनी अम्मी की याद में अस्पताल बनवाने का अभियान चलाया अौर उसमें अपने सारे ताल्लुकात का इस्तेमाल किया। यह छवि बदलने का अभियान था जिसका अगला कदम राजनीति में पड़ना ही था जो १९९६ में पड़ा अौर पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी का जन्म हुअा। हर अात्ममुग्ध, अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति को राजनीतिक सत्ता अपनी पहचान स्थापित करने का सबसे अासान व निश्चित रास्ता दिखाई देता है - इमरान खान से नरेंद्र मोदी तक। पार्टी बनी तो अगला मुकाम चुनाव ही हो सकता था, सो गाजे-बाजे के साथ इमरान ने १९९७ का चुनाव लड़ा । नतीजा यह अाया कि इमरान ‘१९९७ के हाफिज सईद’ साबित हुए। फिर तो हर घिसे-पिटे राजनीतिज्ञ की तरह इमरान का भी यही काम बन गया - चुनाव लड़ना ! २००२ में बमुश्किल अपनी सीट निकल पाए थे इमरान। तब से अाज तक पाकिस्तान के असली सवालों से जैसे कोई नहीं हुअा वैसे ही इमरान अौर उनकी पार्टी भी रू-ब-रू हुई ही नहीं। बेनजीर भुट्टो, अासिफ जरदारी, परवेज मुशरर्फ, नवाज शरीफ - ये सब-के-सब पाकिस्तान के एनअारपी शासक रहे - जब तक गद्दी रही पाकिस्तान में रहे; गद्दी गई तो विदेश में धरी अपनी अकूत दौलत वाले अालीशान अारामगाहों में रहने लगे। इमरान पर अब तक ऐसी नौबत अाई ही नहीं है क्योंकि शिखर पर तो वे अभी ही पहुंचे हैं। लेकिन उनका एक पांव हमेशा ही विदेश में रहता रहा है।     
चुनाव में उनका नारा था - नया पाकिस्तान ! अब यही नारा उनके गले की फांस बन सकता है या फिर उन्हें अासमान में पहुंचा सकता है। कोई जानता नहीं है कि पाकिस्तान के नया बनाने की कोई परिकल्पना इमरान के पास है।  अपनी जीत के बाद वे जब लोगों से मुखातिब हुए तो कहा कि पाकिस्तान के मजलूमों के हालात कैसे सुधरेंगे यह जानने के लिए वे स्वंय चीन जाना अौर ‘अपने’ लोगों को चीन भेजना चाहेंगे ताकि समझ सकें कि चीन वालों ने किस तरह अपने करोड़ों गरीबों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया है। उनके पूर्ववर्तियों ने नये पाकिस्तान की खोज मुख्यत: अमरीका में की; कभी रूस में की; अभी चीन का नंबर है। इमरान भी पाकिस्तान की खोज चीन में करेंगे। पाकिस्तान की अपनी धरती में, अपने लोगों में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे नये पाकिस्तान के निर्माण में मदद मिल सके ? बाहरी ध्यान-ज्ञान तभी काम का होता है जब अपनी जमीन तैयार हो। चीन गये बिना ही चीन से यह सीखा जा सकता है। 
पाकिस्तान के सामाजिक जीवन में बहुत बड़े पैमाने पर राजनीतिक-सामाजिक हस्तक्षेप की जरूरत है। शिक्षा का पूरा ढांचा नया करना है,  वहां के लोक उद्योगों को प्रोत्साहित कर खड़ा करना है। फौज की पकड़ कमजोर करनी है, कठमुल्लों को उनकी जगह बतानी है, अापराधिक धंधों में लिप्त युवाअों को उससे विरत करना है। अवैध हथियार व नशे का व्यापार इसे खोखला किए जा रहा है। अातंकी कारोबार पाकिस्तान से जोंक की तरह चिपका हुअा है। उसका अॉपरेशन ही करना होगा जिसके रास्ते में फौज अाएगी। तो जिसके कंधे पर बैठ कर अाप इस कुर्सी तक पहुंचे हैं, उससे कैसे निबटेंगे ? 
फिर भारत का सवाल मुंह बाये खड़ा है। भारतविरोध वहां के हर राजनीतिज्ञ के लिए संजीवनी बूटी माना जाता है। इमरान भी उसका ही सेवन करते रहे हैं। इसलिए उन्होंने अपने पहले संबोधन में कश्मीर की बात की। अगर भारत से चीं बुलवाने की मंशा न हो तो कश्मीर अब कोई मुद्दा ही नहीं है। वक्त ने खुद ही उसे सुलझा दिया है। जरूरत है दोनों तरफ से राजनीतिक ईमानदारी व निर्णय लेने के साहस की। लेकिन अपने चुनावी प्रचार में इमरान ने जो भूमिका ली उसमें ऐसी कोई संभावना दिखाई नहीं देती है। इस मनोभूमिका में से नया पाकिस्तान नहीं निकलेगा। नया वजीर-ए-अाजम या नई सरकार से देश नया नहीं बनता है। नये सपनों से देश नया बनता है। इमरान ने ऐसे सपने देखे हैं कभी ? इमरान ने असल पाकिस्तान देखा है कभी ? 
( 27.07.2018)        

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