Sunday 22 January 2017

मुट्ठियां लहराता अमरीका


० कुमार प्रशांत 

एक रात में कितना कुछ बदल सकता है : ४६ वर्षीय बराक अोबामा का अमरीका, ७० वर्षीय डोनाल्ड ट्रंप का अमरीका बन सकता है ! अमरीकी इतिहास का यह सबसे मंहगा शपथ-ग्रहण समारोह था जो सबसे दरिद्र बन कर सामने अाया. राष्ट्रपति बनते ही ट्रंप ने अमरीका को सिर्फ इतना बताया कि उसके पास दुनिया को दिखाने के लिए अब एक मुक्का है ! ट्रंप ने वह मुक्का बार-बार कसा अौर बारंबार दिखाया लेकिन हमें मुक्का नहीं, मुक्का दिखाने वाला अादमी ही दिखाई देता रहा अौर यह सवाल मन में घुमड़ता रहा कि अमरीकियों ने क्या सोच कर अपने लिए एक यह मुक्का चुना होगा
बराक अोबामा पिछले कुछ दशकों में हुए अमरीकी राष्ट्रपतियों में सबसे शालीन, भद्र अौर साहसी राष्ट्रपति थे हालांकि हम जानते हैं कि वे वैसा कुछ कर नहीं सके जैसा उन्हें करना था अौर जैसा वे कर सकते थे. लेकिन अमरीका का हालिया इतिहास यह भी कभी भुला नहीं पाएगा कि अोबामा के रूप में अमरीका को पहली बार वैसी जगह से, वैसा राष्ट्रपति मिला था जैसी जगहों से, जैसे लोग अमरीकी राजनीति के शिखर तक पहुंच नहीं पाते हैं. अोबामा वहां पहुंचे यह उनकी अौर जिस अमरीकी समाज ने उन्हें वहां पहुंचाया, उसकी यह उपलब्धि रही. शपथ ग्रहण समारोह में वही अोबामा सामने बैठे थे अौर ट्रंप कह रहे थे कि अब बात बनाने वालों का वक्त बीत गया, काम करने वालों का वक्त अाया है. उस अवसर पर ऐसा कहने में वैसी ही अशालीनता थी जैस अशालीनता ट्रंप की, अौर अब अागे अाने वाले दिनों में अमरीका की पहचान बनने जा रही है.
राष्ट्रपति पद का शपथ लेते ही, वहीं-के-वहीं राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्र को संबोधित करने की यह अमरीकी परंपरा बहुत शानदार है. व्हाइट हाउस की ऐतिहासिक सीढ़ियों पर खड़े हो कर, लाखों-लाख अमरीकियों अौर अनगिनत दुनियावालों को संबोधित करने वाला राष्ट्रपति अपने पहले ही संबोधन से सबको बता देता है कि वह क्या है; अौर उसके साथ अमरीका सीढ़ियां चढ़ेगा कि उतरेगा !  चढ़ने की बात तो कोई, कहीं कर ही नहीं रहा है, दुनिया को देखना तो इतना ही भर है कि क्या ट्रंप अमरीका को उन सीढ़ियों पर खड़ा भी रख पाते हैं कि जिन सीढ़ियों तक अोबामा ने उसे पहुंचाया था ? कई बार ऐसा होता है कि अाप जहां होते हैं वहां बने रहने के लिए भी अापको बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है. अमरीका अाज वैसी ही जगह पर खड़ा है. तो क्या ट्रंप जानते हैं कि वे अमरीका को कहां ले जाना चाहते हैं; अौर क्या अमरीका जानता है कि उसे इस अादमी के साथ कहां जाना है
सवाल ट्रंप के विरोध या समर्थन का नहीं है. सवाल है कि क्या अाज दुनिया वैसी रह गई है कि जिसे कभी अमरीका अपने इशारों पर नचाता था ? अब न धन का वह खेल बचा है, न धमकी से झुकने वाली वह दुनिया बची है. डॉलर का रुतबा है जरूर लेकिन बहुत तेजी से विश्व-व्यापार दूसरी मुद्राअों को भी अपनाने में लगा है. भारत अौर चीन का बाजार उस अमरीका के लिए सबसे खास बन चुका है जिसे ट्रंप यह समझा रहे हैं कि सूरज-चांद-सितारे सब हमारे लिए ही हैं अौर मैं वह ले कर ही रहूंगा. यह अाधुनिक दुनिया की नजर से देखें तो किसी निरक्षर का प्रलाप भर लगता है. अमरीका अपनी नौकरियां वापस लाना चाहता है तो उसे इसके लिए तैयार रहना होगा कि बाकी के देश अपना बाजार वापस मांगेंगे. दुनिया भर के संसाधनों का दोहन अौर दुनिया भर के बाजारों में अपने माल की खपत से ही अमरीका वह बना है जो वह अाज है. कोरिया, जापान के साथ-साथ एशिया के सारे ही विकाशसील देश अमरीका को इसी तरह पालते-पोसते रहे हैं. अगर यूरोप को संवारने के लिए मार्शल प्लान में अमरीका ने धन उड़ेला है तो वहां से ही तो उसने अपना खजाना भी भरा है ! सोवियत सत्ता के खिलाफ सारी दुनिया में घेराबंदी करने की योजना का यदि अमरीका ने नेतृत्व किया तो उससे सबसे अधिक कमाई भी उसने ही की. खुले बाजार का नारा अौर उसकी पीछे की सारी हलचल रची गई तो उसके पीछे अमरीका की सावधान योजना तो यही थी न कि अमरीकी कंपनियां दुनिया भर के बाजारों में अपने पांव जमा सकें. अमरीका में नौकरियां गई हैं तो अमरीकी कंपनियों को धेले के भाव से वह श्रमशक्ति मिली है जो उसके अपने यहां बहुत मंहगी होती है. कमाई किसकी हुई ? ट्रंप खुद भी इसी लूट में से तो अरबपति बने हैं. 
ट्रंप ने नारा दिया : अमरीका अमरीका के लिए; अमरीका अौर दूसरा कुछ नहीं; अौर राष्ट्रपति के रूप में पहला काम यह किया कि अोबामाकेयरका बजट कम कर दिया. अमरीका की स्वास्थ्य सेवाएं इस कदर मंहगी हैं कि वहां के समर्थ लोग भारत समेत दुनिया के दूसरे मुल्कों में इलाज के लिए जाते हैं. जो समर्थ नहीं हैं - गरीब अमरीका - उनके लिए अोबामा ने यह योजना बनाई थी जिसमें राज्य निवेश करता है. यहां जिनका इलाज होता है, वे अमरीकी हैं या नहीं ? ट्रंप यदि उन्हें अमरीकी नहीं मानते हैं तो उन्हें यह भी कह देना चाहिए या फिर उन्हें बताना चाहिए कि  उनके स्वास्थ्य की देखभाल कैसे होगी अौर कौन करेगा यह वह अमरीका नहीं है जो सारी दुनिया को उबरमें दौड़ाना चाहता है अौर एमेजॉनसे ही खरीदारी के लिए उकसाता है; जिसने धन-बल से प्रचार का घटाटोप रच कर सारी दुनिया में वह खाना अौर वह पेय फैलाया है जो संसार भर में बुरे स्वास्थ्य की खास वजह है. 
अमरीका उसी तरह अार्थिक संकट में है जिस तरह सारी दुनिया है. लेकिन अमरीका को जवाब देना होगा कि यह अर्थतंत्र किसका गढ़ा अौर फैलाया हुअा है ? जिस वैश्विक मंदी का कहर सब अोर टूटा पड़ा है उसका जनक कौन है ? अोबामा ने यह समझा था अौर इसलिए उन्होंने अमरीका का भीतर-बाहर चेहरा बदलने की शुरुअात की थी. उसकी गति बहुत धीमी रही अौर अोबामा का अात्मविश्वास भी उतना पक्का नहीं था. लेकिन ट्रंप जिस अनाड़ीपने से अपने देश अौर हमारी दुनिया को ले रहे हैं, उसकी पहली चोट अमरीका पर ही पड़ेगी.

हमें अमरीका से सहानुभूति है. 
( 23.01.2017) 

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