प्रधानमंत्री
के १० सवाल
०
कुमार प्रशांत
खुशी
की बात है कि हम जिन्हें रात-दिन, यहां-वहां सुननते रहते हैं लेकिन जो
हमें कभी नहीं सुनते उन प्रधानमंत्री ने हमसे कुछ पूछा है. ट्विटर पर किसी एप का
इस्तमाल करते हुए उन्होंने १० सवाल हमारे सामने रखे हैं अौर मांग की है कि हम इनका
जवाब उन्हें दें. हम प्रधानमंत्री को निराश कैसे कर सकते हैं ! इसलिए प्रधानमंत्री
के निर्धारित क्रम से, प्रधानमंत्री के सवालों का, प्रधानमंत्री की
अपेक्षानुसार जवाब :
१. क्या अापको लगता है कि भारत में काला धन है ? हां, हमें लगता ही नहीं है
बल्कि हम उससे रोज ही मिलते हैं जिन्हें अाप काला धन कहते हैं. मतलब भारत में अकूत
काला धन है. लेकिन अापको एक राज की बात बताऊं प्रधानमंत्रीजी, हम-अाप जिसे काला धन
कहते हैं, उस धन का रंग भी सफेद ही होता है. जब वह हमारे हाथ में या फिर
हमारी जेब में या फिर हमारी मां के बक्से या अालमारी की साड़ी की तह में रखा होता
है तो सफेद होता है जैसे ही किसी धनपति, सत्तापति या डंडापति के हाथ लगता है,
काला
हो जाता है. इससे अाप समझ सकते हैं कि धन काला-सफेद नहीं होता, उसे रखने वाले
काले-सफेद होते हैं.
२. क्या अापको लगता है कि काले धन व भ्रष्टाचार से लड़ने की
जरूरत है ? बिल्कुल ! बड़ी जरूरत है अौर अविलंब
जरूरत है. लेकिन प्रधानमंत्रीजी, यह भी कहना चाहता हूं कि यह लड़ाई वे
नहीं लड़ सकते जिनकी जेबों में या कमरों में भ्रष्टाचार से कमाया या हड़पा काला धन
रखा हुअा है. इस लड़ाई का सिपाही वही बन सकता है जिसने न तो काला धन कमाया हो,
न
हड़पा हो. वही प्रभु यीशु की सदियों पहले कही बात कि पहला पत्थर वह मारे ….
३. भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी सरकार द्वारा अब तक किए गए प्रयास
पर अाप क्या कहेंगे ? पिछली कांग्रेसी सरकार ने भ्रष्टाचार को
सरकार चलाने का शिष्टाचार बना दिया था. उस सरकार का बनना ही अपने-अाप में एक
घोटाला था. उस नाते देश को एक पूरे बहुमत की सरकार मिली अौर उसने सरकारी प्रक्रिया
में चल रहे असीमित भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास किया, यह बड़े राहत की बात
है. मोदी सरकार को इस बात का पूरा श्रेय है कि उसने भ्रष्टाचार से लथपथ देश का
राजनीतिक वातावरण बदला. लेकिन हर किसान जानता है कि मौसम बदलने से खेती
नहीं होती. मौसम के अनुकूल बुवाई-निराई करो तो फसल अाती है. वह काम कौन कर रहा है
अौर कहां, यह हमें पता नहीं है.
४. भ्रष्टाचार के खिलाफ अब तक मोदी सरकार द्वारा की गई काररवाई
पर अाप क्या कहेंगे ? पहली बात तो यही कहूंगा कि कोई यह तो
बताए कि काररवाई क्या हुई अौर किनके खिलाफ हुई ? राजू, ललित मोदी, माल्या से ले कर बैं
कों के उन बड़े अफसरानों तक, जिन्होंने बैंकिंग के सारे नियमों को
ताक पर रख कर अनाप-शनाप कर्ज दिए अौर हमारे पैसे बट्टेखाते में डाल दिया, उनके खिलाफ कुछ हुअा
क्या ? कभी किसी भ्रष्ट अधिकारी को पकड़ लेना या किसी को निशानदेही
वाला नोट लेते हुए पकड़ लेना जैसी वारदातें पहले भी होती रही हैं, अाज भी होती हैं.
एमसीएक्स का गुब्बारा तो मनमोहन सरकार के दौर में ही फूटा था. शेयर बाजार के कितने
ही दलालों की धड़-पकड़ पहले भी होती रही है. अायकर विभाग अपने ‘अधिकारियों की अाय’
का
सबसे बड़ा अौर सुरक्षित स्थान पहले भी था, अाज भी है. पहले भी कर चोरों को ‘दान-दया’ के मौके दिए जाते थे
अौर उनसे मिली ‘चवन्नी’ को अपनी उपलब्धि के
तौर पर देश को बताया जाता था. यही अाज भी हो रहा है. रक्षा सौदों में दलाली का चलन
अाम रहा है जिसे पिछले रक्षामंत्री ने नियंत्रित करने की कोशिश की थी, अाज के रक्षामंत्री
भी कर रहे हैं. हमारी सरहदें पहले भी अशांत थीं, अाज कुछ ज्यादा ही
अशांत हैं. मुंहतोड़ जवाब देने की बात कह कर देश को पहले से ज्यादा उन्मादित किया
जा रहा है लेकिन सैनिकों को इस तरह जान गंवाना पड़ रहा है, यह किसी सरकार की
सफलता के खाते में तो नहीं रखा जा सकता है. कुछ छिटपुट काररवाइयों अौर हवा में
तैरती कहानियों से अलग मोदी सरकार ने कुछ किया हो तो हमें मालूम नहीं. देश को जो
मालूम ही नहीं है, उसके बारे में वह बताएगा भी तो क्या !
५ अौर ६ . ५००-१००० के नोटों की बंदी के मोदी सरकार के कदम के
बारे में अाप क्या कहेंगे ? क्या अापको लगता है कि नोटबंदी काले धन,
भ्रष्टाचार
अौर अातंकवाद पर लगाम लगाने में कारगर है ? अब हम कुछ भी क्यों
कहें ? जब अापको पूछना चाहिए था तब तो अापने किसी ने नहीं पूछा,
बस
फैसला सुना दिया ! अब जबकि जाल में फंस गए हैं अाप, तब पूछ रहे हैं. अौर
फिर हमारे मन में यह शंका भी बनी हुई है कि हम अापसे कहेंगे कुछ अौर अाप हमारे
हवाले से देश से कहेंगे कुछ !! फिर भी अापने पूछा है तो इतना कहना जरूरी है कि यह
नोटबंदी नहीं, देश की अार्थिक नसबंदी है. इसका असर न
तो कालेधन पर होगा, न जाली नोटों पर अौर न अातंकी नेटवर्क
पर. हो रहा भी नहीं है, क्योंकि अापने नोटों पर हमला किया,
कालेधन
के नेटवर्क पर नहीं ! अापने देखा कि नहीं अापका नया २००० कीमत का रंगीन नोट भी
काला हो चुका है ? अभी जो नोट ठीक से लोगों तक पहुंचा भी
नहीं है, वह काले धंधेबाजों तक पहुंच गया, इससे अापको उनके
शक्तिशाली नेटवर्क का अंदाजा होगा. वैसे अापको यह अंदाजा पहले से ही होगा, क्योंकि कालेधन का
यही तो नेटवर्क है जो अाजाद हिंदुस्तान के अब तक के सबसे महंगे चुनाव के दौरान
सबसे अधिक सक्रिय था अौर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
बनाने में जिसका सबसे भयंकर इस्तेमाल अापने ही किया था. राजसत्ता का यही तंत्र है
प्रधानमंत्रीजी जो सबसे ज्यादा काला धन बनाता है अौर सबसे अधिक कालेधन का इस्तेमाल
करता है. भाजपा समेत देश का एक ऐसा राजनीतिक दल बता दीजिए प्रधानमंत्रीजी जो
कालेधन का अकूत चुनावी फंड न रखता हो.
अापने कहा कि नोटबंदी
काले धन पर हमला है, अापके वित्तमंत्री कह रहे हैं कि यह
नायाब योजना कागजी मुद्रा की जगह प्लास्टिक मनी लाने की है. अाप दोनों अलग-अलग
लक्ष्यों के लिए एक ही हथियार का इस्तेमाल कर रहे हैं क्या ? ये दोनों ही बातें
एक-दूसरे को काटती हैं अौर दोनों ही जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं. न तो सभी
नागरिकों का बैंक खाता खोलना कोई स्वस्थ अार्थिक कदम है अौर न प्लास्टिक मुद्रा
चलाना किसी बीमारी का इलाज है. दुनिया में कहीं भी ऐसा नहीं है. समाज हमेशा इस तरह
की बातों में संतुलन के साथ चलना चाहता है. भारतीय समाज तो इस मामले में ज्यादा ही
अाग्रही है कि उसकी जेब में नोट होने चाहिए, उसके पास चिल्लर पैसे होने चाहिए. इसमें
पिछड़ेपन जैसी या काला धन रखने जैसी बात नहीं है. अांकड़े अापके ही हैं जो बता रहे
हैं कि जिन जनधन खातों में, पिछले कई महीनों से दो कौड़ी की रकम भी
जमा नहीं हुई थी, उनमें २१ लाख करोड़ रुपये जमा हो गये
हैं. यह अधिकांशत: काला धन है जिसे छुपाने का अापने एक अासान रास्ता दे दिया.
अार्थिक ढांचे में से सारा रुपया निकाल लेने के कारण अचानक ही जो शून्य पैदा हुअा,
लोगों
में जो घबराहट पैदा हुई, जालसाजिए जानते हैं कि यही नायाब मौका
है कि जाली नोटों से सारा शून्य भर दिया जाए. सीमा पर मारे गए अातंकवादियों की जेब
से अापके २००० का नोट निकला, तो इससे क्या समझना
चाहिए ?
७. नोटबंदी से रियल एस्टेट, उच्च शिक्षा अौर
स्वास्थ्य सेवाएं अाम जन की पहुंच में अा जाएंगी ? ऐसा कुछ भी नहीं होगा,
क्योंकि
रियल एस्टेट, उच्च शिक्षा अौर स्वास्थ्य सेवाअों को दुधारू गाय बना कर,
उन्हें
दूहने में लगे प्राय: हर संस्थान के पीछे कोई-न-कोई प्रभावी राजनीतिज्ञ खड़ा है.
हर राज्य में, हर पार्टी के कितने ही सांसद-विधायक-खास
लोग ऐसे हैं कि राजनीति जिनका ‘साइड बिजनेस’ है, मुख्य काम तो वे रियल
एस्टेट का या शिक्षा माफिया का या हॉस्पिटल बिजनेस का करते हैं. जब तक राजनीति एक ‘
अतिरिक्त
धंधे’ की
तरह की जाती रहेगी अौर पार्टियां उसे स्वीकार कर चलेंगी, तब तक अाम जन की बात
करना घड़ियाली अांसू बहाने वाले पेशेवर को भी हंस पड़ने पर मजबूर कर देगी.
८. भ्रष्टाचार, काले धन, अातंकवाद के खिलाफ की
गई इस काररवाई से क्या अापको असुविधा का सामना करना पड़ा ? जिस दिन अापने
नोटबंदी की घोषणा की, उस दिन से अाज तक के अखबार देख लीजिए कि
टीवी चैनल देख लीजिए कि खरामा-खरामा अपनी ही दिल्ली की सड़कों पर घूम लीजिए,
अापको
अपने सवाल का जवाब मिल जाएगा. अौर यह भी न करना हो तो अपनी ही घोषणा फिर से पढ़
लीजिए कि अापने देश में रामराज लाने अौर इसे सोने की तरह दमकीला बनाने के लिए ५०
दिन मांगे हैं. मतलब कि अापने यह माना ही है कि ५० दिनों की असुविधा के बाद देश को
जन्नत का अहसास अाप कराएंगे. तो वह असुविधा तो हुई ही है, हो ही रही है. जानें
तक गई हैं, मार-पीट हुई है अौर पुलिस ने बैंकों की लाइन में लगे
परेशान-हाल लोगों की ऐसी पिटाई भी की है मानो वे दंगाई हों. फिर भी लोगों ने
पर्याप्त धैर्य से इन सारी परेशानियों का सामना किया है. यह धैर्य अच्छा है या
बुरा ? असहायता या निरुपायता से जो सर पा अा पड़े, उसे सह लेना सामाजिक
बुराई है. लेकिन परिस्थिति को समझते हुए धीरज से चलना सयानापन है. लोगों ने दोनों
का परिचय दिया है. इसमें कहीं बदला लेने का वह सुख-भाव भी शामिल है जिसे अापने ‘गरीब चैन से सो रहा
है अौर अमीर नींद की गोलियां खोज रहा है’ जैसे भाव से प्रकट किया है. लेकिन वह
अमीर कहीं किसी कतार में खड़ा नजर नहीं अाया, अाप या अापका कोई मंत्री, कोई राज्यपाल कि कोई
सांसद-विधायक किसी कतार में नहीं दिखाई दिया. अापने जिन नोटों की बंदी की वे ही
नोट तो अापके-उनके पास भी होंगे न ! फिर कैसे चला अापका या उनका घर ? कैसे चल रहा है ?
सवाल
तो कई हैं लेकिन अब एक बड़ा सवाल जो सबके मन में है वह यह है कि अच्छे दिन के अाने
का जैसा अंतहीन इंतजार हमें करना पड़ रहा है वैसा ही इंतजार इन ५० दिनों के पूरा
होने का भी करना पड़ेगा क्या ? इसका जवाब सिर्फ अापके पास है.
९. क्या अापको लगता है कि भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले अब
काले धन, भ्रष्टाचार अौर अातंकवाद के समर्थन में
लड़ाई लड़ रहे हैं ? अगर असहमति
राष्ट्रद्रोह है, तो अापकी बात सही है. अगर अापको ऐसा
मानने अौर देश को कहने में गर्व की अनुभूति होती है कि राजनीतिक बिरादरी के अापके
सारे साथी काला बाजारियों की दलाली करते हैं, भ्रष्ट्राचारियों की जेब में रहते हैं
अौर उनकी अातंकवादियों से सांठगांठ है, तो हमारे कहने के लिए बच क्या जाता है ?
अपनी
बिरादरी के लिए इतना हीन भाव अगर अापके मन में है तो अापके हाथों में लोकतंत्र
कितने दिन सुरक्षित रहता है, यह देखना होगा. येनकेनप्रकारेण सत्ता
में बने रहना अाज की राजनीति का मूलमंत्र है जिसका जाप अाप भी अौर वे भी करते हैं.
फिर
इतना अहंकार क्यों ?
१०. क्या अाप कोई सुझाव देना चाहेंगे ? सत्ता जब कभी विनीत
भाव से हमसे राय-मश्विरा करने की मुद्रा धारती है तो डर लगता है. असहमति
राष्ट्रद्रोह हो अौर सवाल पूछना असहिष्णुता हो तो कुछ भी कहना खतरे को अामंत्रित
करना होता है. फिर भी अापने अच्छे भाव से ही पूछा है, यह मान कर बस इतना ही
: ठोकरें खा कर भी न संभले तो मुसाफिर का नसीब / वरना पत्थरों ने तो अपना फर्ज
निभा ही दिया !
( 25.11.2016)
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