Monday 9 November 2020

बाइडन के बाद

 सभी राहत की सांस ले रहे हैं - जो बाइडन भी, कमला हैरिस भी, सारा अमरीका भी; भारत में हम सब भी ! राहत इस बात की कि अमरीका में अब वह सब नहीं होगा जो पिछले चार सालों से हो रहा था - जिसने अमरीका को दुनिया भर में जोकर भी बना दिया था अौर किसी हद तक वितृष्णा का पात्र भी. अगर बाइडन इतना भी न कर सके कि अमरीका की धरती से वे सारे नक्श-निशान मिटा दें कि जो ट्रंप की याद दिलाते हैं तो वे अमरीका के लालू प्रसाद यादव ही कहलाएंगे जो असीम संभावनाअों के दरवाजे पर खड़े थे लेकिन असीम विफलता के प्रतीक बन गये. 

      77 साल की सबसे बड़ी उम्र में अमरीका के राष्ट्रपति का पद हासिल करने वाले बाइडन को यह भूलना नहीं चाहिए कि उनकी कुर्सी के नीचे  उन 2.30 लाख अमरीकों के शव दफन हैं जो ट्रंप के कोविड के शहीद हुए. यह संख्या बाइडन-काल में बढ़ेगी. इसलिए मास्कसुरक्षित दूरी अौर सस्ती-से-सस्ती स्वास्थ्य-सेवा बाइडन-काल की पहचान कैसे बनेयह पहली चुनौती है. इसके लिए जरूरी होगा कि बाइडन अमरीकी समाज का विश्वास जीतें. यह अासान नहीं है. अगर करीब-करीब अाधा अमरीका बाइडन के साथ है तो अाधा अमरीका वह भी तो है जो ट्रंप के साथ है. लेकिन यह भी सच हैअौर यह सच बाइडन को पता है कि ट्रंप के साथ अमरीका का भरोसा कमउन्माद अधिक था. उस उन्मादित जमात में यदि बाइडन भरोसा जगा सकेंगे तो सस्ती स्वास्थ्य-सेवा के साथ जुड़ कर अमरीका मास्कसुरक्षित दूरी भी व्यापक तौर पर अपना लेगाअौर तब तक कोविड का वैक्सीन भी परिस्थिति को संभालने के लिए मैदान में होगा. तो पहली चुनौती घर में ही है - खाई को पाटना ! 


      अोबामाकेयर की पुनर्जीवित करना लोगों तक सस्ती स्वास्थ्य-सेवा पहुंचाने का रास्ता है. अमरीका को यह भरोसा दिलाना कि अोबामाकेयर अश्वेतों का ही नहींसभी अल्पसाधनों वालों का मजबूत सहारा हैएक चुनौती है. बाइडन के लिए यह यह अपेक्षाकृत अासान होगा क्योंकि उनके साथ कमला हैरिस खड़ी होंगी. ट्रंप की तुलना में अपनी उदारवादी छवि बनाना अासान थाउदारवादी नीतियों का निर्धारण करना अौर उन पर मजबूती से अमल करना गहरी व व्यापक सहमति के बिना संभव नहीं होगा. महिलाअोंअल्पसंख्यकोंउम्रदराज व युवा अमरीकियोंट्रंप को ले कर असमंजस में पड़े मतदाताअों अौर अंतत: अपनी पार्टी का दामन छोड़ने वाले रिपब्लिकन मतदाताअों ने बाइडन को विजेता बनाया. हुअा तो यह भी कि चुनाव परिणाम को अस्वीकार करने की ट्रंप की निर्लज्ज बचकानी बयानबाजी का उनकी पार्टी के सांसद भी अालोचना करने लगे. यह वह अाधार है जिस पर बाइडन को भरोसे की नींव डालनी है. 


           लेकिन इतना काफी नहीं है. अमरीका को अब यह अंतिम तौर पर समझने की जरूरत है कि वह न तो दुनिया का चौकीदार हैन थानेदार ! संसार में कहीं भी बेबुनियाद तर्कों से युद्ध छेड़नेदूसरों के हर फटे में टांग डालने अौर दूसरों की स्वायत्तता का सम्मान न करने की अमरीकी नीति उसे कमजोर ही नहीं बना रही है बल्कि उसकी अंतरराष्ट्रीय किरकिरी भी करवा रही है. अोबामा के खाते में ही कम-से-कम छह युद्ध दर्ज हैं जबकि ट्रंप ने अपनी बतकही से अमरीका की जितनी भी किरकिरी करवाई होउन्होंने कहीं युद्ध नहीं बरपाया. अोबामा-काल के इन युद्धों से बाइडन खुद को अलग नहीं कर सकते. बाइडन को अपनी अौर अमरीका की इस छवि को तोड़ना पड़ेगा. 


            मैं उस अादर्श विश्व की बात नहीं कर रहा हूं कि जिसमें युद्ध होंगे ही नहीं बल्कि उस संसार की बात कर रहा हूं कि जिसने अापसी सहमति से युद्ध की अनुमति देने के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ नाम की एक संस्था बना रखी है. अमरीका अपनी सुविधा अौर शेखी के लिए उसका इस तरह इस्तेमाल करता अाया है कि दुनिया के दूसरे देश भी उसे पांवपोंछ की तरह बरतने लगे हैं. बाइडन को अमरीका की इस छवि को भी तोड़ना होगाअौर इसमें कोई शक ही नहीं है कि अमरीका जिस दिन से संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुशासन को अपनी मर्यादा के रूप में स्वीकार कर लेगादुनिया के दूसरे देशों के लिए उस लक्ष्मण-रेखा को पार करना मुश्किल हो जाएगा. 


            बाइडन को एक द्रविडप्रणायाम भारत के संदर्भ में भी करना होगा. वे अौर डेमोक्रेटिक पार्टी भारत से अच्छे रिश्तों की बात करती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई देते हुए रिश्तों को अौर मजबूत बनाने की बात की है. लेकिन बाइडन को दिक्कत यह अाएगी कि जब भी भारत सरकार भारतीय संविधान की मर्यादाअों को अपनी बेड़ियां समझेगी अौर उन्हें कुचल कर अागे जाएगी तब उनकी सरकार क्या करेगी भारत के अांतरिक मामलों में दखलंदाजी कोई भी भारतीय स्वीकार नहीं करेगा लेकिन अांतरिक मामलों का तर्क दे कर मानवीय अधिकारों व लोकतांत्रिक मर्यादाअों का हनन भी कैसे पचाया जा सकेगा अोबामा को बराक’ बना कर इस सरकार ने यही खेल करना चाहा था अौर अोबामा इस जाल में किसी हद तक फंसे भी थे. अाते-जाते मौकों पर उन्होंने कभी इस सरकार कर रवैये पर थोड़ी तेजाब डाली हो तो डाली होअधिकांशत: वे बच निकलने में ही लगे रहे. फिर तो हाउदी मोदी’ अौर जश्न-ए-ट्रंप’ का दौर अा गया अौर सब कुछ धूलधूसरित हो गया. बाइडन क्या करेंगे वे भारत के संदर्भ अाज से ही नट की तरह रस्सी पर चलना शुरू करेंगे तो कहीं कोई संतुलन साध सकेंगे. अपने संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई तो हमें ही लड़नी है. सवाल रह जाता है तो बस इतना कि इस लड़ाई की अनुगूंज विश्व बिरादरी में उठती है या नहींउठनी चाहिए या नहीं बाइडन को इसका जवाब देना है. वे ट्रंप नहीं बन सकते अौर अोबामा बनने का वक्त निकल गया है. 

                                                                        

यह तो अागाज भर है. रास्ता लंबा व कांटों से भरा है. ( 08.11.2020)

                                                                           

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