Tuesday 3 November 2020

यह फ्रांस का आंतरिक मामला है

    फ्रांस अभी लहूलुहान है. असीम शांति अौर प्यार के प्रतीक नोट्रडम चर्च के सामने की सड़क पर गिरा खून अभी भी ताजा है. वहां जिसकी गर्दन रेत दी गई अौर जिन मासूम लोगों की हत्या कर दी गईउन अपराधियों के गैंग को दबोचने में लगी फ्रांस की सरकार अौर प्रशासन को हमारा नैतिक समर्थन चाहिए. यह खुशी अौर संतोष की बात है कि भारत में भी अौर दुनिया भर में भी लोगों ने ऐसा समर्थन जाहिर किया है. कोई भी मुल्क जब अपने यहां की हिंसक वारदातों को संभालने व समेटने में लगा हो तब उसका मौन-मुखर समर्थन सभ्य राजनीतिक व्यवहार है. यह जरूर है कि इसे बारीकी से जांचने की जरूरत होती है कि कौन सा मामला अांतरिक हैसंकीर्ण राज्यवाद द्वारा बदला लेने की हिंसक काररवाई नहीं है अौर नागरिकों की न्यायपूर्ण अभिव्यक्ति का गला घोंटने की असभ्यता नहीं है. फ्रांस की अभी की काररवाई इसमें से किसी भी अारोप से जुड़ती नहीं है. 

          

        जिस फ्रांसीसी शिक्षक ने समाज विज्ञान की अपनी कक्षा में मुहम्मद साहब का वह कार्टून दिखला कर अपने विद्यार्थियों को अपना कोई मुद्दा समझाने की कोशिश की वह इतना अहमक तो नहीं ही रहा होगा कि जिसे यह भी नहीं मालूम होगा कि यह कार्टून फ्रांस में भी अौर दुनिया भर में कितने बबाल का कारण बन चुका है. फिर भी उसे जरूरी लगा कि अपना विषय पढ़ाने व स्पष्ट करने के लिए उसे इस कार्टून की जरूरत है तो इसका सीधा मतलब है कि फ्रांस में उस कार्टून पर कोई बंदिश नहीं लगी हुई है. मतलब उसने फ्रांस के किसी कानून का उल्लंघन नहीं किया. उसने जो किया वह विद्या की उस जरूरत को पूरा करने के लिए किया जो उसे जरूरी मालूम दे रही थी. उसका गलाउसके ही एक मुसलमान शरणार्थी विद्यार्थी ने खुलेअामबीच सड़क पर काट दिया अौर वहां मौजूद लोगों ने उसे अल्लाह-हो-अकबर’ का उद्घोष करते सुना. ऐसा ही नोट्रडम चर्च के सामने की वारदात के वक्त भी हुअा. फ्रांस का कानून इसे अपराध मानता है अौर वह उसे इसकी कानूनसम्मत सजा दे तो इस पर हमें या किसी दूसरे को कैसे अापत्ति हो सकती है इसलिए सवाल मुहम्मद साहब का कार्टून बनाने व दिखाने का दिखाने का नहीं है.


         फ्रांस में किसी भी देवी-देवतापैगंबर-नबीअवतार-गुरू का कार्टून बनाने पर प्रतिबंध नहीं है. वहां कार्टूनों की प्रतिष्ठित पत्रिकाएं चलती हैं जो सबकीसभी तरह की संकीर्णताअों को अाड़े हाथ लेती हैं. फ्रांसीसी समाज की अपनी कुरीतियों अौर मूढ़ताअों परईसाइयों के अहमकाना रवैये पर सबसे अधिक कार्टून बनते व छपते हैं. अब तक कभी भी उन पर यह अारोप नहीं लगा कि वे कार्टून किसी के पक्षधर हैं या किसी के खिलाफ ! यह परंपरा व यह कानूनी छूट कि अाप किसी का भी कार्टून बना सकते हैंफ्रांस का निजी मामला है. हम उससे असहमत हो सकते हैं अौर उस असहमति को जाहिर भी कर सकते हैं. लेकिन उसके खिलाफ जुलूस निकालनाफ्रांसीसी राजदूतों की हत्या के लिए उकसानाराष्ट्रपति मैंक्रों की तस्वीर को पांवों तले कुचलनाफ्रांसीसी सामानों के बहिष्कार का अाह्वान करना - अौर यह सब सिर्फ इसलिए करना कि अाप मुसलमान हैंदुनिया भर के धार्मिक अल्पसंख्यकों की जिंदगी को शक के दायरे में लाना अौर खतरे में डालना है. यह संकीर्ण सांप्रदायिकता का सबसे पतनशील उदाहरण है. यह फ्रांस के अांतरिक मामले में शर्मनाक दखलंदाजी है अौर अपने देश की संवैधानिक उदारता का सबसे बेजा इस्तेमाल है.                                                                            


        यह अौर भी शर्मनाक व कायरता भरा काम है कि कुछ लोगों नेजो मुसलमान हैंइस कत्ल के समर्थन में बयान जारी किए. वे सामाजिक कार्यकर्ता हैंसाहित्य-संस्कृति से जुड़े हैंराजनीतिज्ञ हैं यह सब भुला दिया गया. याद रखा गया तो सिर्फ इतना कि वे मुसलमान हैं. फ्रांस में मुसलमानों को उनकी गैर-कानूनी हरकतों की सजा मिले तो भारत का मुसलमान सड़कों पर उतर कर अल्लाह-हो-अकबर’ का घोष करेअौर खून को जायज ठहराए अौर दूसरों का खून करने का अाह्वान करेतो प्रशासन का क्या दायित्व है भारत के प्रशासन का ही नहींदुनिया भर के प्रशासन का दायित्व है कि पूरी सख्ती से इसे दबाया जाए. इसे जड़ से ही कुचलने की जरूरत है. यह फ्रांस के अांतरिक मामले का सम्मान भी होगा अौर अपने लोगों को यह संदेश भी कि सड़कों पर कैसी भी एनार्की सह्य नहीं होगी. 


         सड़कों पर उतरने अौर लोगों को उतारने का संवैधानिक दायित्व यह है कि वह किसी दूसरे के अांतरिक मामले में हस्तक्षेप न होकिसी दूसरे के प्रति हिंसा को उकसाता न होवह धार्मिक संकीर्णता को बढ़ावा न देता हो अौर धार्मिक ध्रुवीकरण को प्रेरित न करता हो. ऐसा न हो तो सड़कों को सबकी अावाजाही के लिए खुला रखनासड़कों से चलते हुए कहीं भी पहुंच सकने की अाजादी बरकरार रखना अौर सड़कों पर लोगों की अावाज को बेरोक-टोक उठने देना सरकार व प्रशासन का दायित्व है. इस पर हमारे यहां भी अौर दुनिया में सभी जगहों पर नाजायज बंदिशें लगी हैं. लेकिन इन नाजायज बंदिशों का विरोध नाजायज जुलूसों द्वारा किया जा सकता है क्या बल्कि नाजायज जुलूस इन नाजायज बंदिशों का अौचित्य ही प्रमाणित करते हैं. हमारी सड़कों पर या संसार की किसी भी सड़क पर फ्रांस के खिलाफ निकला हर जुलूस ऐसा ही नाजायज जुलूस है जिसका जायज प्रतिरोध सरकार व समाज की जिम्मेवारी है. ( 1.11.2020)     

No comments:

Post a Comment