Saturday 30 May 2020

साहस के साथ जीना ही जीना है !

वे स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री ही नहींहमारे स्वतंत्रता अांदोलन के प्रमुख शिल्पकार थे. वे पंडित जवाहरलाल नेहरू थे. वे जानते थे कि शरीर की गुलामी से भी ज्यादा खतरनाक होती है मन की गुलामीअौर इसलिए भारतीय मन के अंधेरे कोनों को झाड़-पोंछ करउन्हें नया बनाने में उन्होंने अपना अस्तित्व झोंक दिया था. उन्हें गुलाम देश अौर भयग्रस्त अादमीदोनों ही नापसंद थे. इस दोहरे जाल को काटने के लिए उन्होंने एक अाह्वान भरा सूत्र ही बनाया था : लीव डेंजरसलीथिंक डेंजरसली एंड एक्ट डेंजरसली : दु:साहस के साथ जिअोदु:स्साहस के साथ सोचो अौर दु:स्साहस के साथ करो ! 

            खतरों से जो खेलते हैं उनका जीना तो ऐसे ही होता हैफिर जो बाकी रह जाता है वह मरने के ही भिन्न-भिन्न प्रकार हैं. 
      अाप लॉकडाउन में घर के भीतर मरते हैं कि कौरंटीन में मरते हैं या सड़क पर खतरों को रौंदते हुए मरते हैंसबकी मौत डाली तो मौत के खाते में ही जाती है. लेकिन हमें मरते-मरते भी यह देखना चाहिए कि हमारी मौत तो एक अांकड़ा भर होती हैलेकिन वह जो सड़क पर उतर कर चला तो चलता गया तब तक जब तक घर नहीं पहुंचा या जब तक मरा नहींतो उसकी मौत अांकड़ा नहीं बनीअंकित हो गई. वह जिंदगी से भी दो-दो हाथ करता रहा अौर मौत से भी उसने सीधी टक्कर ली. 

      साहस की इस खिड़की से कोरोना को देखिए. पहले लॉकडाउन से इस चौथे लॉकडाउन तक देखिए तो एक ही चीज समान पाएंगे - भय ! हर तरफहर अादमी डरा हुअा है. क्या डर कोरोना के इलाज की दवा है वैज्ञानिक बताते हैं कि यह वायरस किसी प्राणी से निकला है अौर मनुष्य तक पहुंचा है. मनुष्य में पहुंच कर यह वायरस हमारे स्नायु-तंत्र पर हमला करता है अौर फिर धीरे-धीरे हमारी सांस बंद हो जाती है. यह छोटी-सी कहानी है कोरोना अौर अादमी के बीच के रिश्ते की. अब अाप भी देखिए अौर हम भी देखते हैं कि इस कहानी में डर कहां अपनी जगह बनाता है बस वहींजहां सांस बंद होने की बात अाती है. लेकिन क्या अाप कभी भूले हैं कि सांस बंद होने का वह क्षण तो अाना ही है जीवन में. क्या उससे हम जीना छोड़ देते हैं क्या जीवन अपना अस्तित्व समेट लेता है कि उसे एक दिन तो खत्म होना है नहींसच तो यह है कि जीवन वही सही व सच्चा होता है जो अंत की हर कहानी से अपनी कहानी शुरू करता है.

     कोरोना की कहानी डर से शुरू नहीं होती है. चीन के उस वुहान मेंजहां संसार का पहला कोरानावायरस देखा-पहचाना अौर पकड़ा गयावहां एक डॉक्टर था ली वेनलियांग ! वह वायरस विज्ञान का शोधकर्मी था अौर उसने ही अपनी प्रयोगशाला में देखी थीं कुछ रहस्यमय वायरसों की रहस्यमय गतिविधियां ! उसके कान खड़े हुए. उसने देखा कि शहर के कुछ मरीजों में सांस की रहस्यमय बीमारी दिखाई दे रही है. रहस्यमय यानी जिसे पहले कभी देखा-जाना नहीं था. उसने वह देखा जो तब तक किसी ने देखा नहीं था. लेकिन ली डरा नहींउसने चुप्पी लगाना ठीक नहीं समझा. उसने सारे अस्पतालों को तक्षण सावधान किया कि यह रहस्यमय बीमारी खतरा बन कर फूट पड़े इससे पहले इसका मुकाबला करने का रास्ता खोजो. जगह थी वुहान सेंट्रल हॉस्पिटल अौर तारीख थी 30 दिसंबर 2019. वुहान के उसी सेंट्रल हॉस्पिटल में 7 फरवरी 2020 को ली का देहांत हो गया. वह मरा कि विज्ञानविरोधी ताकतों के हाथ मारा गयायह विवाद अाज भी जारी है. लेकिन वह किस्सा फिर कभी. अगर मैं कहूं कि ली की जिंदगी मात्र 40 दिनों की थी तो बात बहुत गलत नहीं होगी - लेकिन बात बहुत गलत भी हो जाएगीक्योंकि अागे संसार में जहां भीजब भी कोई कोरोना पर शोध करेगाली का जिक्र अाएगा.  फिर वह मरेगा कैसे ?  खतरों से खेलने का साहस जिनमें होता है वे ऐसे ही मर कर भी मरते नहीं हैं. 

     कोरोना डराता है तो हम घरों में बंद हो जाते हैं. लेकिन लॉकडाउन से कोरोना का कैसा रिश्ता है क्या घरों में हमारे बंद होने से वह वायरस भूखा मर जाता है ?  वह तो जिंदा रहता है अौर हमारे ही दरवाजे पर बैठा लॉकडाउन से हमारे  निकलने का इंतजार करता होता है. ऐसा नहीं होता तो कहिए भलासंक्रमण के अांकड़ों में इतनी वृद्धि कैसे हो रही है हर दिन हमारे भारत में 6 हजार नये मामलों का पता चलता है जब कि हम दुनिया के उन देशों में हैं कि जहां सबसे कम परीक्षण हो पा रहा है. हम उन देशों में हैं जहां दो गज की सुरक्षित दूरी बनाए रखना असंभव की हद तक कठिन है. अापने देखा क्या कि सड़कों पर खाना लेते अौर खाते लोगपैदल-ट्रकों-बसों-रेलों से अपने घरों की तरफ जाते लोग किस हाल में हैं वहां कोई सुरक्षा-व्यवस्था अाप बना नहीं सकते हैं. वहां एक ही सुरक्षा-व्यवस्था काम कर रही है -सावधानी ! 

      हम जानते हैं कि हम ऐसे दुश्मन से लड़ रहे हैं जिसे हम जानते ही नहीं हैं. हमारे पास अब तक इससे लड़ने का कोई हथियार भी नहीं है. तो अपनी पुराण-गाथाअों में खोजेंगे तो अापको ऐसे युद्ध-कौशल की जानकारी मिलेगी जो हथियारों के बगैर लड़ी जाती थी. वह अज्ञान की लड़ाई नहीं थीसमस्त ज्ञान को एकत्रित कर लड़ी जाने वाली लड़ाई थी. डरना नहींसाहसी बनना ! सावधानी के साथ बाहर निकलनासारी हिदायतों का पालन करते हुए अपना काम करनासावधानी के साथ दूसरों की मदद करनाईमानदार व उदार बनना कोरोना से लड़ने वाले सिपाही की पहचान है.

     कोरोना का एक सिपाही वह है जो अस्पतालों में रात-दिन बीमारी से जूझ रहा है - सिर्फ डॉक्टर अौर नर्स नहींवार्ड में हमारी मदद करने वाला हर एक-एक स्टाफ ! वह ईमानदारी से अपना काम करता है तो सिपाही हैईमानदारी से नहीं करता है तो यही है कि जिसके कारण हम यह लड़ाई हार जाएंगे. दूसरा सिपाही वह है जो हमारी नजरों अौर हमारे कैमरों अौर हमारी कलमों से बहुत दूर खेतों-खलिहानों मेंफूल-फलों के बगीचों मेंछोटे-बड़े उद्योगों में लगातार मेहनत कर उत्पादन की श्रृंखला को टूटने नहीं दे रहा है. तीसरा सिपाही वह है जो सिपाही के कपड़ों में हर सड़क-चौराहे पर खड़ा मिलता है. वह हमें रोकता हैनिषेध करता हैकभी मुंह से तो कभी डंडे से बात करता है. जब वह डंडे से बात करता है तब वह हारा हुअाअकुशल सिपाही होता है लेकिन उसे देख कर हम उन अनगिनत सिपाहियों को नजरंदाज कैसे कर सकते हैं जो हर लॉकडाउन में न लॉक’ होताे हैंन डाउन’ होते हैं चौथा सिपाही वह है जो अपनी प्रेरणा सेअपनी छोटी मुट्ठी में बड़ा संकल्प बांध कर खाना-पानी-मास्क-ग्लब्स ले कर कभी यहां तो कभी वहां भागता दिखाई देता है. यह किसी के अादेश से नहींअपनी मानवीय प्रेरणा से काम करता है अौर उससे ही बल पाता है. इसके सामने सिर्फ अाकाश होता हैदीवारें नहीं होती हैं - न धर्म कीन जाति कीन रंग की,न लिंग की. यह प्रेम व विश्वास के अलावा दूसरी कोई भाषा न सुनता हैन बोलता है. इनकी गिनती नहीं है क्योंकि अाप अादमी को तो गिन भी लेंअादमियत को कैसे गिन सकते हैं ! पांचवां सिपाही वह है जो सहानुभूतिपूर्वक हर किसी की तकलीफ सुन रहा है अौर सद्भावपूर्वक उसे रास्ता बता रहा है. यही है जो हमारे घरों-सड़कों-पेड़ों पर रहने वाले बेजुबानों के लिए कहीं पानी धर देता हैकहीं रोटी डाल देता है. यह है जो हमारे उस प्राचीन गणित को सही साबित करता चलता है जिसमें 1 अौर 1,  2 नहीं11 होते हैं. यह गलत गणित नहीं हैहमारे गलत गणित को सही करने वाला शाश्वत गणित है. 

     अाप लॉकडाउन में घरों के भीतर ही नहींघरों के बाहर क्या कर रहे हैं अौर किस नजर से कर रहे हैं यही बताएगा कि अाप स्वंय ही कोरोना हैं कि कोरोना के खिलाफ छेड़ी गई लड़ाई के सिपाही हैं. ऐसा हर बार होता है अौर बार-बार होता है कि सही मोर्चे पर गलत सिपाही पहुंच जाता है. लेकिन लड़ाई तो तभी जीती जाती है न जब असली मोर्चे पर असली सिपाही पहुंचता है. तो यह खतरे में साहस अौर सावधानी का हथियार ले कर उतरने का समय हैबैठने का नहींलड़ने का समय हैहारने का नहीं जीतने का समय है. ( 29.05.2020)  

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