Wednesday 26 December 2018

दोस्ती का गलियारा

    
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को भी अंदाजा नहीं होगा कि वे जिस करतारपुर गलियारे को बनाने व खोलने की शुरुअात कर रहे हैं, उससे भारतीय राजनीति के गलियारों में ऐसे विस्फोट होने लगेंगे. क्रिकेट की भाषा में कहूं तो यह इमरान का वह बाउंसर है जिसे ‘डक’करने को भारतीय राजनीति मजबूर हो गई है. यह बेहद हास्यास्पद अौर बचकाना है. 

यह सोच भी हैरान करने वाला है कि हमने इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही पाकिस्तान के साथ राजनीतिक पहल की सारी बागडोर नवजोत सिंह सिद्धू के हाथ में सौंप दी है. सिद्धू ने राजनीति के पिच पर कभी गंभीर बल्लेबाजी नहीं की है. उनकी राजनीतिक समझ कपिल शर्मा शो में बनी अौर परवान चढ़ी है. वे दलों के दलदल में उतर कर कुर्सी पकड़ने वाले राजनीतिज्ञ हैं. उनको दल अौर अाका बदलते देर नहीं लगती है. अाज वे राहुल गांधी की कांग्रेस में हैं अौर पंजाब के सबसे नौसिखुअा मंत्री हैं .वे पाकिस्तान के साथ की हमारी राजनीति की डोर संभालें अौर केंद्र सरकार अपने बचाव में बयान जारी करे, उनके चैनल इमरान की लानत-मलानत करे, सिद्धू की देशभक्ति पर सवाल खड़े करें, क्या यह भी कपिल शर्मा शो का ही हिस्सा नहीं लगता ? यह बात यहां तक पहुंचi है कि केंद्र सरकार के दो मंत्री भी गलियारा कार्यक्रम में उपस्थित थे लेकिन वे बेजुबान बलि के बकरे से ज्यादा कुछ नहीं थे. इधर सिद्धू थे तो उधर इमरान ! यह रंग यहां तक जमा कि इमरान ने यह कह कर कूटनीतिक छक्का ही मार दिया कि भारत-पाक दोस्ती सिद्धू के प्रधानमंत्री बनने पर ही हो सकेगी, ऐसे हालात हम न बनाएं.

लेकिन इमरान खान ने गलियारा दिवस पर अौर फिर दूसरे दिन भारतीय पत्रकारों से बातचीत करते  हुए जो कुछ कहा, वह फब्तियां कसने या खिल्ली उड़ाने जैसी बात नहीं है.  ये बातें बहुत दूर तक जा सकती हैं यदि सीमा के दोनों तरफ की सरकारें मजबूत मन से चलें. इधर हाल के दिनों में दूसरे किसी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नेइतनी साफ बातें नहीं की हैं. यही मौका है कि हम पाकिस्तान को जांचने की तैयारी करें. हम न भूलें कि अाज इमरान उसी तरह अनुभवहीन हैं जिस तरह 2014 में दिल्ली पहुंचे नरेंद्र मोदी थे. अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में कितनी ही बचकानी हरकतें की थीं उनकी सरकार ने ! उन्हें लगा था कि गले लगाने, झूला झूलने, ड्रम बजाने, हर विदेशी दौरे में प्रायोजित भीड़ जुटा कर अपनी लोकप्रियता का दावा पेश करने से ले कर विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को उनके पहले नाम से पुकारने से राजनीति अलग धरातल पर ले जाई जा सकती है. धीरे-धीरे यह सब अर्थहीन होता गया. यह सारी चमक फीकी पड़ने लगी. अब न चमक बची नहीं है, न उसका भ्रम. 

इमरान के साथ भी ऐसा हो सकता है. पाकिस्तान की राजनीति की रीढ़ तो कभी बनी ही नहीं. वह जन्म से ही इस या उस कंधे पर सवार हो कर ही चली है. इसलिए पूरी संभावना है कि जल्दी ही इमरान कोई कंधा पकड़ेंगे. इसलिए हमारी कूटनीतिक प्रौढ़ता इसमें है कि इमरान वहां कमजोर पड़ें इससे पहले हम उन्हें मजबूत बनाने की पहल करें. मजबूत अौर निर्णायक इमरान हमारी भी अौर इस उपमहाद्वीप की भी जरूरत है. दूसरी तरफ इमरान के अपने अस्तित्व के लिए इस उपमहाद्वीप में भारत की प्रभावी उपस्थिति जरूरी है. यह किसी का किसी के प्रति अनुराग नहीं, ठोस राजनीतिक सच है. तो क्या अौर कैसी पहल होनी चाहिए ? पहली पहल तो यही होनी चाहिए कि हमारी सरकार उल्टे-सीधे लोगों से, उल्टी-सीधी बयानबाजी न करवाए. इमरान को उन सारी बातों के बोझ तले न दबाएं हम जो उनके पहले के लोगों ने किया है. उनसे वे सवाल भी न पूछे जाएं जिनका जवाब जिन्हें देना चाहिए था, वे अब पाकिस्तान से कहीं दूर, अपनी बेईमानी की कमाई से अाराम की जिंदगी जी रहे हैं. हम पाकिस्तान से अाज की अौर अभी की बात करें.  अगर इमरान कहते हैं कि वे, उनकी सरकार, उनकी फौज अौर उनका मुल्क जहां तक भारत के साथ रिश्ते सुधारने का सवाल है, एक राय हैं, तो हमें उन्हें उस राय का खुलासा करने का अवसर देना चाहिए. 

कश्मीर को इमरान दोनों देशों के बीच का जिंदा सवाल मानते हैं. वह है. हम भी मानते हैं लेकिन हम यह भी जानते हैं कि कश्मीर को बीच में रख कर अब तक पाकिस्तान ने बहुत खेल खेला है. इमरान ने भी उस दिन कबूल किया कि गलतियां दोनों तरफ से हुई हैं. तो हम उन्हें तुरंत मौका दें कि वे हमारी गलतियां बताएं अौर अपनी कबूलें. ट्रंप ने गणतंत्र दिवस का अतिथि बनने का हमारा अामंत्रण शायद इसी कारण स्वीकार नहीं किया तो हम यह मौका इमरान को दें. सार्क में मोदी न जाएं क्योंकि भारत सरकार ने इस मामले में एक भूमिका ले रखी है. तो पाकिस्तान उसका सम्मान करे अौर भारत अाने का हमारा निमंत्रण स्वीकार करे. वे हमारे मेहमान बन कर अाएं, हमारा गणतंत्र दिवस देखें अौर फिर भारत-पाक वार्ता में बैठें. इस प्रस्ताव से, अभी-के-अभी उनकी कसौटी हो जाएगी. बात तो एक कदम के सामने दो कदम चलने की हुई है न ! 

पाकिस्तान के साथ हमारे अनुभव इतने बुरे रहे हैं कि उधर से बहने वाली हर हवा पर दिल्ली की प्रतिक्रिया धीरे-धीरे अौर सावधानी से ही उभरेगी, यह बात पाकिस्तान को समझनी चाहिए. इसलिए सदाशयता के एक नहीं, कई प्रमाण इमरान को देने होंगे; देते रहने पड़ेंगे. हम ऐसे हम कदम को शक की नजर से नहीं, भरोसे से देखें. पाकिस्तान देखे कि गलियारे का काम तेजी से अौर ठीक से पूरा हो; जिस हाफिज सईद के अपराध की बात प्रकारांतर से उन्होंने  कबूल की है, पाकिस्तान में उनकी अाजादी को तुरंत प्रतिबंधित किया जाये; दाऊद इब्राहिम का पाकिस्तान में होना वे कबूल करें अौर पहले कदम के तौर पर पाकिस्तान में ही उस पर मुकदमा दायर करें; सीमा पर हो रही अातंकी घुसपैठ अौर फौज की बेजा हरकतों पर प्रभावी रोक लगाएं- ऐसी रोक जो हमें दिखाई भी दे अौर महसूस भी हो. ये कुछ प्रारंभिक कदम हैं जो भारत का भरोसा मजबूत कर सकते हैं. भारत का भरोसा मजबूत करना भारत के साथ पक्षपात करना या भारत के सामने झुकना नहीं है, जैसे इमरान को गणतंत्र दिवस पर अामंत्रित करना पाकिस्तान की चापलूसी नहीं है. अाप विश्वास का अाधार नहीं खड़ा करेंगे तो दोनों में से कोई भी पक्ष पहल नहीं कर सकेगा अौर पहल नहीं होगी तो यह जड़ता नहीं टूटेगी. 


इमरान का पाकिस्तान इसे समझे अौर मोदी का हिंदुस्तान सकारात्मक रवैया रखे तो यह गलियारा हमारी दोस्ती का राजमार्ग बन सकता है. ( 1.12.18)  

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