Wednesday 26 December 2018

गेंद अब राहुल गांधी के पाले में है



हाल ऐसे हैं कि रोयें कि हंसे, सूझ नहीं रहा है ! होने को यह 5 राज्यों में हुअा विधान सभा का चुनाव भर ही था। लेकिन 2014 में, दिल्ली पहुंचने की नरेंद्र मोदी की जिद अौर जल्दी  की सफलता के बाद अालम ऐसा बनाया गया मानो नरेंद्र मोदी सारे तार्किक विश्लेषणों से ऊपर हैं।  कुछ ऐसा मानो नरेंद्र मोदी किसी राजनीतिक दल के अवसरवादी नेता नहीं, कोई अवतार हैं। यह बात इस तरह फैलाई गई कि दूसरे तो दूसरे, खुद नरेंद्र मोदी भी इसे सही मान कर चलने लगे। कांग्रेस अौर उसका नेतृत्व कर रहे नेहरू-परिवार पर उनकी बचकानी व क्षुद्र छींटाकशी पर वे खुद मुदित होते रहे लेकिन वे अौर उनके दरबारी यह पहचान नहीं पाये कि इन सब कारणों से देश का अाम अादमी उनसे विमुख होता गया। इसलिए नहीं कि वह नेहरू या कि उनके परिवार का भक्त है। नेहरू अौर उनके परिवार के राज की अच्छाइयों अौर बुराइयों से वह परिचित ही नहीं है, वही है जिसको वह फला है, जिसे उसने भुगता है। इसलिए वह अापसे वह अाख्यान नहीं, यह सच्चाई सुनना चाहता था कि अाप क्या हैं, क्या करते हैं अौर क्या कर सकते हैं। २०१४ से अब तक इसका जवाब नहीं मिला। अापका सीना ५६ इंच का है कि नहीं, यह अापका निजी मामला है, उस सीने में क्या है यह सबका मामला है। अाम अादमी वही देखना व महसूस करना चाहता था। वहां उसे हवा अौर केवल हवा मिली।

कांग्रेस अौर राहुल गांधी ने उस हवा को पकड़ने की कोशिश की। उन्हें इस बात का श्रेय देना ही पड़ेगा कि २०१४ की चुनावी लड़ाई में बुरी तरह पिटने के बाद भी वे मैदान से हटे नहीं अौर मुट्ठी भर सांसदों अौर धेला भर कार्यकर्ता ने कांग्रेस को जिंदा रखा। ‘पप्पू’ ने ‘गप्पू’ को सांस लेने का मौका नहीं दिया ! धीरे-धीरे देश में एक नया राजनीतिक विमर्श खड़ा होता गया जो चकाचौंध करने की तमाम चालों के बावजूद जड़ पकड़ता गया। नरेंद्र मोदी अौर उनकी सरकार की फूहड़ काररवाइयों ने लगातार इस विमर्श को मजबूत किया। इसका विस्तार होता गया। विपक्ष की तमाम ताकतें, जो नवसिखुए राहुल को कमान देने या उनके साथ काम करने से हिचकते रही थीं, धीरे-धीरे पर्दे के पीछे चली गईं। वे मतदाताअों को साथ लेने की कोशिश के बिना ही वोटों की राजनीित करते रहे, इधर राहुल ने लड़ाई को जनता के बीच पहुंचाया। अाज हम देखते हैं कि राहुल ही विपक्ष का चेहरा बन गये हैं - कहें तो एकमात्र विश्वसनीय, टिकाऊ चेहरा ! अब कोई ‘पप्पू’ की बात नही करता है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में बनी कांग्रेस की सरकारें दरअसल राहुल की निजी जीत हैं; ठीक वैसे ही जैसे २०१४ की जीत  एकमात्र नरेंद्र मोदी की जीत करार दी गई थी। 

लेकिन राहुल गांधी ने देश में जो विमर्श खड़ा किया अौर उसे चुनावी जीत तक पहुंचाया, सर्वोच्च न्यायालय ने तुरंत ही उन दोनों की हवा निकाल दी। उसने यह तब किया जब गुब्बारे में हवा सबसे ज्यादा थी। ‘चौकीदार चोर है’ कहते हुए सारे देश में माहौल खड़ा करने वाले राहुल गांधी को अाज अदालत ने चौराहे पर बने कठघरे में खड़ा कर दिया है अौर देश उनसे पूछ रहा है कि चोर कौन है अौर कैसे है, यह तो बताइए ! राहुल गांधी के पास अब कोई विकल्प नहीं है। अभी ही अौर यही वक्त है कि राहुल गांधी के पास चौकीदार को चोर बताने वाला जो भी प्रमाण है, उसे देश के सामने रख दें। उन्होंने जिस तरह देश को बताया कि चौकीदार ने कैसे चोरी की,  अौर यह भी कि चोरी का पैसा अनिल अंबानी की जेब में  गया, वैसा विवरण बिना साक्ष्य के दिया ही नहीं जा सकता है। वह छिपा हुअा साक्ष्य देश के सामने रखने का यही, अौर यही वक्त है। अदालती फैसले के बाद हवा यह बनी है कि यह सब हवा भर था ! यह हवा यदि गाढ़ी हो गई, जिसकी पूरी संभावना है, तो कांग्रेस व राहुल गांधी के लिए २०१९ में खड़े होने की जगह नहीं बचेगी।

लोग अदालती पेंचीदगियों में नहीं जाते हैं। कपिल सिब्बल कह सकते हैं कि अदालत के सामने क्या नुक्ता था अौर अदालत ने किस नुक्ते की पड़ताल नहीं की। अदालत कह सकती है कि वह संविधान की किस धारा के तहत, किस मामले का कौन सा हिस्सा ही जांच सकती थी, अौर कौन-सा पहलू ऐसा है कि जिसे उसे जांचना नहीं था। कानून का यह जंगल उनके काम का हो सकता है जो उस जंगल का व्यापार करते हैं। लेकिन मामला तो उनका है न जो इतना ही जानते हैं, अौर जान सकते हैं कि अदालत में अाप एक चोर को ले कर गये थे अौर अदालत ने कहा - यह चोर नहीं है ! २०१९ का चुनाव इसी के इर्द-गिर्द लड़ा जाएगा। राहुल ने ही अपने चुनाव की यह कुंडली लिखी है, अौर राहुल को ही इस ग्रह के निवारण का रास्ता खोजना है। एक सवाल अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा अौर प्रशांत भूषण से भी पूछा जाना चाहिए कि जिस मामले का पूरा तथ्यात्मक विवरण ले कर अाप सारे देश में घूम रह थे, वह कैसा था कि जिसे अदालत ने विचार योग्य भी नहीं माना ?

एक अौर सवाल अदालत से पूछना चाहिए। वह जिस भी मामले की सुनवाई करती है उसे अधूरा सुन कैसे सकती है, अौर अधूरा फैसला कैसे दे सकती है ? अगर चोरी का एक मुकदमा अापके पास लाया गया है तो उसे सुनना या न सुनना, यह फैसला जरूर अापके अधिकार क्षेत्र में अाता है, लेकिन यह अाप कैसे कह सकते हैं कि अाप सिर्फ इतना जांचेंगे कि चोर दाहिने कमरे से अाया था या नहीं ? मुकदमा तो चोरी का है - मुझे लगता है कि चोर दाहिने कमरे से अाया तो मैंने वह कहा; अाप सारी संभावनाएं जांच कर बताएं कि चोर दाहिने कमरे से अाया या नहीं; दाहिने से नहीं अाया तो बताएं कि वह किधर से अाया; याकि यह बताएं कि वह अाया ही नहीं, कि चोरी हुई ही नहीं। हमने अब तक यह समझा है कि राफेल सौदे में रक्षा सौदों की मान्य प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया; उसमें सहयोगी संस्थान का चयन सरकारी दवाब से हुअा; उसकी कीमत का निर्धारण इस तरह हुअा कि अधिक कीमत दे कर हमें कम जहाज मिले तथा इस बीच में अरबों रुपयों की हेराफेरी हुई। यह पूरा मामला है कि िजसकी जांच अदालत को करनी थी। कौन, कौन-से मुद्दे को उसके पास अाया है, यह नहीं,  अदालत के लिए सबसे अहम यह है कि सच्चाई तक कैसे पहुंचा जाए, जो सच्चाई उसकी पकड़ में अाई वह देश को कैसे बताई जाए। सच्चाई तक पहुंचना ही उसका धर्म है, उसका पेशा है अौर उसके होने का मतलब है। राफेल सौदे को शक के धुंधलके में छोड़ देना इसलिए भी गलत है कि हमारा सार्वजनिक जीवन जिस कदर जहरीला हुअा है उसमें यह कुशंका लगातार फैलती रहेगी अौर सडांध फैलती रहेगी । 

अदालत ने अपना काम पूरा नहीं किया। सरकार तो चाहती ही नहीं है िक सच खोजा जाए। बचते हैं सिर्फ राहुल गांधी। वे अब न अदालत का इंतजार करें, न जेपीसी का। अबतक वे जिस जानकारी के अाधार पर राफेल की बातें कर रहे थे, वह सारा कुछ खोल कर देश के सामने रख दें अन्यथा २०१९  की खुली लड़ाई वे अभी ही हार जाएंगे। ( 17.12.2018 ) 


                          

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