सरकार
ने बताया है अौर अखबारों ने छापा है तो क्या हमें इसे सच मान लेना चाहिए ? सच की सच्चाई तो यह
है कि यह मानने से बनता नहीं है, न मानने से मिटता नहीं है. अौर सरकार से
निकल कर, अखबारों के रास्ते जो हम तक पहुंचता है वह खबर होती है जिसके
बारे में सच, सच में कुछ कहता नहीं है. सुबह की चाय की अंतिम घूंट के साथ हम
जिस तरह अखबार एक तरफ धर देते हैं, वह भाव कुछ ऐसा ही होता है कि चलो,
खबरें
घर में छोड़ कर अब घर से बाहर निकलते हैं अौर सच का सामना करते हैं. यह सब जानते
अौर मानते हुए भी कश्मीर से लाई गई ताजा खबर को मैं सच मान लेने को तैयार हूं.
खबर
है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने लंबे समय तक सूत्रों को जोड़ते-जोड़ते वह धागा
पकड़ लिया है जिसका एक सिरा कश्मीर के कट्टरपंथी राजनेताअों ने थाम रखा है तो
दूसरा सिरा अातंकवादी वारदातों के लिए धन मुहैया कराने वालों ने. यह किसी से छिपा
नहीं है कि कश्मीर में भी अौर देश के दूसरे राज्यों में भी जितनी भी अातंकी
काररवाइयां हो रही हैं, जितने भी अातंकी या अलगाववादी ग्रुप काम
कर रहे हैं, उन्हें कोई तो नियमित अौर निश्चित धन मुहैया कराता है. किसी हद
तक यह अंदाजा है भी कि इसके पीछे पाकिस्तान समेत कुछ इस्लामी देशों का हाथ है.
लेकिन राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अभी जो खुलासा किया है वह यह है कि कश्मीरी
राजनीति में जितने भी वैसे लोग व संगठन या पार्टियां हैं जो भारतविरोधी गतिविधियों
में लिप्त रहती हैं, वे सभी बाहर से निश्चित पैसा पाते हैं
अौर अपने-अपने अातंकी संगठनों को उसी पैसे से पालते व सक्रिय रखते हैं.
खबर
फैली तो गिरफ्तार लोगों का नाम भी फैला : हुर्रियत के सैयद अली शाह गिलानी धड़े के
अल्ताफ अहमद शाह, जो गिलानी साहब के दामाद भी हैं,
गिलानी
समर्थक अयाज अकबर, पीर सैफुल्ला, फारूक अहमद डार,
नईम
खान, राजा
मेहराजुद्दीन कलवल, अाफताब हिलाली शाह, हुर्रियत के मीरवाइज
उमर फारूक धड़े के प्रवक्ता शाहिर उल इस्लाम. फारूक अहमद डार की गिरफ्तारी दिल्ली
में हुई जब कि दूसरे सभी श्रीनगर में गिरफ्तार किए गये. अब सब दिल्ली की मुट्ठी
में हैं अौर पूछताछ चल रही होगी. लेकिन क्या दिल्ली की मुट्ठी इतनी निरापद है ?
हमें
बखूबी जैन डायरी भी याद है, अब्दुल्ला-परिवार के भी अौर
मुफ्ती-परिवार के भी एक नहीं, अनेक बयान याद हैं अौर ‘म्यूजिकल चेयर’
का
खेल खेलते दिल्ली के राजनेताअों के कितने ही रंग-ढंग याद हैं. इसलिए हम नहीं चाहते
कि कश्मीर का यह जो धागा हमारे हाथ अाया है वह कुर्सी के खिलाड़ियों के हाथ का
खिलौना बन जाए !
बहुत
दिनों के बाद कश्मीर से कोई एक अच्छी खबर अाई है कि जिसमें बड़ी संभावनाएं छिपी
हैं. यह बहुत अच्छा हुअा है कि इतने सारे लोग, जो विदेशी व काले धन
की
ताकत से शेर बने जाते थे, पकड़े गए हैं अौर उनकी गिरफ्तारी
सार्वजनिक हो गई है. हम देखेंगे तो पाएंगे कि इस गिरफ्त में करीब-करीब उन सभी के
लोग अा गए हैं कि जो कश्मीर की राजनीति के अाका माने जाते हैं. कुछ गिरफ्त के बाहर
भी हैं. इसलिए जरूरी है कि इस धागे को मजबूती से पकड़ा जाए अौर यह सारी तहकीकात
सर्वोच्च न्यायालय की सीधी देखरेख में चले. सर्वोच्च न्यायालय चाहे जितने कामों
में डूबा हो, यह मामला इतना संगीन व देश के जीवन-मरण का है कि उसे दूसरा सब
कुछ बाजू में रख कर इसे हाथ में लेना चाहिए. अगर कोई लेख जनहित याचिका माना जा
सकता हो तो यह लेख उसी तरह लिया जाए.
देखें
तो यह सत्ताधीशों के बीच चल रहा क्रिकेट का खेल ही है. कौन, किसे, कैसे अौर कहां बोल्ड
कर रहा है; कौन किसका कैच ले रहा है अौर किसने, किसे अौर कहां
एलबीडब्ल्यू कर दिया है, यही तो देखना अौर खोजना है ! तो हमारे 41
वें
पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्रमल लोढ़ा साहब ने क्रिकेट का मामला जिस तरह रास्ता
पर लाया है, क्यों न हम उनसे ही कहें कि वे इस पूरी तहकीकात को अंजाम तक
पहुंचाएं ? न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल एक दूसरा नाम भी हो सकता है. सवाल
क्रिकेट का नहीं, दृढ़ता अौर तटस्थता से इस छोर को पकड़ने
अौर इसकी जड़ों तक पहुंचने का है. मुझे जरा भी शक नहीं है कि ये जितने गिरफ्तार
हुए हैं, ये सब छोटी मछलियां हैं; मगरमच्छ तो कहीं दुबके बैठें हैं - वे
सब घाटी में भी हैं अौर दिल्ली के गलियारों में भी ! सही मछुअारे के हाथ में पड़ें
तो ये छोटी मछलियां बड़े मगरमच्छों तक पहुंचा सकती हैं. हमें अपने कश्मीर का ऐसा
दर्दनाक हाल करने वालों का सही ठिकाना चाहिए अौर देश उन्हें पहचान ले, ऐसा उसका सार्वजनिक
स्वरूप चाहिए. इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के सीधे अादेश व निर्देश में इन सारे लोगों
की जांच होनी चाहिए अौर इस जांच प्रक्रिया को जिस स्तर पर, जिस हद तक सार्वजनिक
बनाया जा सकता हो, बनाया जाना चाहिए. हमें यह धागा पकड़ कर
उन लोगों तक पहुंचना है जिनके हाथ देश व कश्मीर के खून से सने हैं अौर पांव काले
धन की धरती में धंसे हैं. कोई लोढा या मुदग्ल इसे अपने हाथ में लें, इससे पहले अाप भी अौर
अाप भी अौर हम भी अपने-अपने हाथ-पांव देख लें ! ( 26.07.2017 )
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