Friday 27 July 2018

यह अादमी है कि जिसकी संभावना कभी खत्म नहीं होती


        मुझे अात्मकथाएं बहुत भाती हैं, क्योंकि मुझे अादमी बहुत भाते हैं. अगर कहीं, कोई ईश्वर है तो मैं उसकी इस कारगुजारी पर बहुत हैरान हुअा नहीं रहता हूं कि उसने इतने सारे इंसान बनाए बल्कि इस बात से हैरान हुअा रहता हूं कि उसने कैसे रची होगी इतनी भिन्नता ? हर अादमी अपनी सोच में, अपने व्यवहार में, अपनी अभिव्यक्ति में कितना अलग होता है ! अरबों-खरबों लोगों में से किसी दो अादमी के अंगूठे का निशान एक नहीं होता है, ऐसा कहते हैं लेकिन दो अादमी भी तो एक-से नहीं होते हैं ! 
कोशिश करें तो शायद अाप भी मेरी तरह हो जाएंगे. अादमी कौन है, इस पर नहीं, सारा ध्यान इस पर रहता है मेरा कि अादमी कैसा है, कैसे सोचता है, प्रतिकूलताअों से कैसे निबटता है अौर कैसे रचता है अपना वह संसार जिसमें वह राजा तो होता है लेकिन दूसरे सबके लिए भी अफरात जगह बनाता है. अादमी को देखने का यही कौतूहल मुझे अात्मकथाअों, संस्मरणों अौर ऐतिहासिक हस्तियों से ले कर अाम अादमियों तक ले जाता है अौर वे मुझे अपने साथ बहा ले जाते हैं. ऐसे ही मुझे हमेशा बहा ले जाते हैं नेल्सन मंडेला जिनकी शताब्दी का यह वर्ष है अौर दुनिया में यहां-वहां उनकी याद की जा रही है.
मुझे अक्सर, जीवन की संकरी-घुमावदार सड़कों से गुजरते हुए यह अादमी याद अाता है. जिंदगी अाखिर तो एक सफर ही है न जिसमें हम सब अकेले चलते हुए अनगिनत के साथ होते हैं. लेकिन जेल का एकाकी जीवन कभी भुगता है ? वहां कोई नहीं होता है साथ, अौर जो होते हैं साथ वे अपनी तमाम कुरुपताअों के साथ होते हैं. मंडेला से तब नया ही परिचय हुअा था. वह सब जान-पढ़ चुका था जो जानना-पढ़ना किसी बड़े अादमी के बारे में जरूरी होता है अौर फिर किसी दिन मैं बंदी मंडेला के संस्मरण पढ़ने बैठा था - २७ साल लंबी कैद के बाद की यादें ! पढ़ने से पहले भी मैंने याद किया था कि कभी गांधी नहीं रहे इतनी लंबी जेल में लेकिन यह अादमी रहा; अौर गांधी की तरह अहिंसा, सत्य, संयम ... कहूं कि अभिनव क्रांति की ऊष्मा से दीपित कोई कवच भी नहीं था उसके पास ! ... हिंसा अौर बदले की भावना से भरा, अातंकवादी रास्तों का राही था वह जब जेल पहुंचा था. इसलिए मैं उसकी किताब में कुछ दूसरा ही खोज रहा था कि मैंने पढ़ा - वे लिख रहे हैं -  रोबेन द्वीप की जेल की उस एकांत सेल में इतने साल बिताने के बाद भी, जहां मुझे पूरे साल में एक ही अादमी से मिल सकने की अौर छह माह में मात्र एक पत्र ही पाने की इजाजत थी, मनुष्य स्वभाव की अच्छाइयों पर से मेरा भरोसा कभी कमजोर नहीं पड़ा ! ... मैंने पढ़ा अौर मैं रुक गया - फिर से पढ़ा कि कहीं मैंने पढ़ने में या समझने में गलती तो नहीं की लेकिन जो लिखा था वह इतनी पवित्रता से लिखा था कि न लिखने में अौर न समझने में कोई चूक संभव ही थी. 
मैंने अपने भीतर इस वाक्य की सनसनाहट सुनी ! जिसके साथ कभी किसी ने अच्छा बर्ताव किया ही नहीं, जो अपनी चमड़ी के रंग के कारण ही छोटी उम्र से प्रताड़ित, अपमानित अौर दमित किया जाता रहा; गोरी चमड़ी की अहमन्यता से जूझने में जिसने कभी साधनों की पवित्रता अादि का विचार किया नहीं, उसका मनुष्य स्वभाव की अच्छाइयों पर विश्वास बना कैसे ? अौर २७ सालों तक टिका कैसे !! ... इस अादमी ने जैसे झकझोर कर जगाया था मुझे ! ... यह अादमी जब रोबेन द्वीप की जेल के भीतर पहुंचाया गया था तब उस पर वसंत उतरा हुअा था... लंबा कद, गठा हुअा कसरती बदन, मजबूत मुक्का अौर लंबी टांगों के बल पर तेज चलती काया ! इस अश्वेत नेता के नाम से डरते थे लोग !! अौर जब २७ सालों की लंबी, शारीरिक श्रम से टूटती एकाकी जेल काट कर यह अादमी बाहर अाया तब तक वसंत जा चुका था, लंबा कद कुछ झुक कर चलने लगा था, तुर्शी की जगह पूरे व्यक्तित्व में सनसनाहट भरी उत्कंठा दौड़ने लगी थी, अौर सुबह की चमकीली धूप-सी खेलती अपनत्व भरी मुस्कान जैसे उनका पूरा चेहरा चुनती थी. 
गांधी की बात छोड़ दें हम तो इस सदी में क्षमा की शक्ति का ऐसा अाराधक मंडेला के सिवा दूसरा कोई मिलेगा नहीं. कुल ९५ साल की जिंदगी में से २७ साल जेल में कटे अौर ५ साल सत्ता में ! बाकी के ६३ साल अविराम यात्रा के रहे; अौर यह यात्रा बहुत कुछ सिंदबाद की तरह रही. जिसे अंधेरे में चलना कहते हैं अौर खुद ही रोशनी तलाशते हुए, रोशनी बनना कहते हैं, मंडेला की यह यात्रा ऐसी ही रही. गांधी को भी मंडेला ने खोजा तो अपनी इसी अनुभव-यात्रा के क्रम में ! अौर ऐसी यात्रा में जो मिलता है वही पाथेय बन कर ताउम्र साथ निभाता है. अौर इस यात्रा की पूरी अवधि में कितना काम किया इस अादमी ने ! तूफानों के बीच, गिरती मस्तूलों को थामने से ले कर नई मस्तूलें बांधने से लेकर अपना कंपास स्थिर करने तक का काम ! …अथक काम !!  एक ऐसे मुल्क में, जहां रंगभेद को बनाए रखना ही एकमात्र नागरिक गतिवििध हो, किसी अश्वेत नाराज युवा का जीवन कैसा रहा होगा, इसकी कल्पना करनी हो तो हम मंडेला की जीवनी ‘अाजादी की अोर एक लंबा सफर’ पढ़ें. 
यह अादमी २७ साल लंबी जेल से निकल कर बाहर अाया था… होना तो यह चाहिए था कि अपनी उम्र अौर अपने स्वास्थ्य की फिक्र करते हुए इसे घर बैठ जाना चाहिए था. लेकिन राष्ट्रपति बन कर यह अादमी हर खाई-खंदक में पांव डाल रहा था - विष भी पी रहा था, खाइयों को पाट भी रहा था. अल्पसंख्यक गोरों के वर्चस्व में दक्षिण अफ्रीका के अश्वेत नागरिक लंबे समय से गुलामी, अपमान अौर जहालत की जिंदगी जी रहे थे. क्रोध, घृणा अौर बदला लेने की भावना गहरे पैठी हुई थी... सामने से श्वेत तेवर भी उतना ही हिंस्त्र था. इन सबको खुले खेलने देने का एक ही मतलब होता कि हिंसा के सागर में डूबता-उतराता यह मुल्क टूट जाता - बहुत कुछ वैसे ही जैसे हमने अपना हिंदुस्तान तोड़ा था !... उस शोकांतिका से बचना था. पता नहीं कैसी नजरों से देखा उसने इस सवाल को अौर सोचा कि क्या खेल के मैदान में एक ऐसा खेल नहीं खेला जा सकता है जो मुल्क में विष कम कर सके, इसे जोड़ने की ताकत बन सके ? ... १९९५ में रग्बी वर्ल्ड कप का फाइनल था दक्षिण अफ्रीका की पूर्ण गोरे खिलाड़ियों की स्प्रिंगबोक्स टीम अौर न्यूजीलैंड की विश्वविजेता टीम के बीच ! राष्ट्रीय स्वाभिमान का मुकाबला था अौर यह अादमी इसी उधेड़-बुन में था कि क्या करे कि अाज इस खाई को पाटने का प्रारंभ हो. 
दक्षिण अफ्रीका का गोरा कप्तान फ्रंकोइस भी गहरे तनाव में था- उसे राष्ट्रपति के, एक अश्वेत अादमी के सामने सर झुका कर ट्रॉफी लेनी होगी - चाहे जीत की ट्रॉफी हो या रनर-अप की ! उसे ऐसा लग रहा था कि उसके लिए दोनों तरफ पराजय ही है... अौर फिर वह अनपेक्षित घटा कि दक्षिण अफ्रीका ने विश्वकप जीत लिया ! …सारा उल्लास जैसे अासमान फाड़ कर बरस पड़ा...भावावेश में सनसनाता फ्रंकोइस टॉफी लेने पहुंचा अौर उसे प्यार अौर गर्व में डूबी अावाज सुनाई दी : थैंक्यू फ्रंकोइस ... अाज तुमने अपने इस देश की शान बढ़ा दी है !! ... अौर तब मैंने देखा कि मंडेला सामने खड़े थे - ट्रॉफी उनके हाथ में थी अौर किसी बच्चे की पुलक से वे उसे निहार रहे थे... अौर फिर अचानक मैंने देखा  - यह क्या, वे ६ नंबर की मेरी ही हरे रंग की जर्सी पहन कर खड़े थे ! मंडेला... राष्ट्रपति मंडेला मुझ गोरे खिलाड़ी की मामूली-सी हरी जर्सी पहने सामने खड़े थे अौर मुझे प्यार से वह ट्रॉफी सौंप रहे थे जिसे उनके हाथ से लेने को लेकर न मालूम िकतनी अाशंकाएं थीं मेरे मन में ! ... मेरे दिमाग में कितनी सारी बातें कौंध गईं - मेरा देश रक्तरंजित नहीं हुअा, तो इसी एक अश्वेत अादमी के कारण !… इसी एक अश्वेत अादमी के कारण मेरा देश एक बना रहा …अौर हम गोरों को उसने कितनी सहजता से अपने साथ कर लिया था... क्षमा करने की कोई हद होती ही नहीं है, यह मैं उनमें साकार देख पा रहा था ... इस अादमी ने अपनी इस एक पहल से उस सारे देश को मेरे पीछे खड़ा कर दिया जो पहले कभी एक था ही नहीं ! खेल से लोग जोड़े जा सकते हैं, खाइयां पाटी जा सकती हैं यह तो मैंने भी कभी सोचा नहीं था ! ... 
इसलिए ही तो मुझे अादमियों में इतनी गहरी दिलचस्पी है क्योंकि जो हमने कभी सोचा भी नहीं था वह वह कर गुजरता है.( 20.07.2018) 

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