Tuesday 17 December 2019

यह गलती बहुत बड़ी होगी

         अॉल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अयोध्या मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर रिव्यू पिटिशन या पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का फैसला क्यों किया यह तो पता नहीं लेकिन मुझेयह खूब पता है कि उनका यह फैसला उन्हें भी शर्मशार करेगा अौर देश को भी ! जीत का रहस्य यह है कि वह संयम में शोभा पाता हैहार का खोखलापन यह है कि वह बेवजह जख्म को हरा करता रहता है. 

 अयोध्या विवाद का जो फैसला सर्वोच्च न्यायालय ने दिया हैउसके बाद हिंदूमुसलमान तथा देश के दूसरे सभी धर्मावलंबियों ने खासी समझदारी अौर प्रौड़ता का परिचय दिया है. ऐसा नहीं है कियह फैसला सबको संतोषजनक लगा है. शिकायतें हैं लेकिन संयम का अहसास भी है. सबको संतोषजनक लगेऐसा कोई रास्ता अगर होता तो इस मामले को न्यायालय तक अाने की जरूरत ही क्योंहोती ! ऐसा कोई रास्ता था नहीं - न हिंदुअों के पासन मुसलमानों के पासन सरकारों के पासन समाज के पास ! इसलिए हमने अदालत को इसमें शरीक किया अौर सबने यह सार्वजनिक घोषणा कीकि अदालत का फैसला हमें मंजूर होगा. तो अदालत का फैसला अा गयाफिर उसे नामंजूर कैसे किया जा सकता है ?तब तो पहले ही कहना था कि हमारे मनमाफिक फैसला अाएगा तो कबूलकरेंगे,नहीं तो खारिज करेंगे. 

 अदालत के फैसले में अंतर्विरोध भी हैं अौर कई मामलों में भटकाव भी है. इन पंक्तियों के लेखक ने भी फैसले की विसंगतियों को उजागर किया है अौर अदालत का भी अौर समाज का भी ध्यानउधर खींचा है. ऐसी कई दूसरी अावाजें भी उठी हैं. लेकिन मुझ समेत सबने यह तो कहा ही है कि हम फैसले को अमान्य नहीं करते हैं.  उसकी विसंगतियां सबके सामने रखना उसका मजाक उड़ाना याउससे इंकार करना नहीं है बल्कि मानवीय प्रयासों की सीमा बताना है. यही भूमिका अॉल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भी लेनी चाहिए. दूसरे सभी पक्षकारों की तरह उसने भी अदालत में मुख्तसरअपनी बातअपनी दलीलें रखी ही थीं. अदालत को उनमें सार कम लगा अौर उसने विपरीत फैसला दियातो यह हार या अपमान नहीं हैअसहमति है. 

 अदालत ने अपनी असहमति जाहिर कर दी है अौर हम जिस संवैधानिक व्यवस्था के तहत रहते अौर अपना देश चलाते हैं उसमें हमारी सर्वोच्च अदालत सहमति-असहमति का अाखिरी दरवाजा है. हमने ही स्वीकार किया है कि यहां से अागे सहमति-असहमति नहींनिर्णय होगा अौर सभी उसे मान कर चलेंगे. हम यहां से अाया निर्णय कबूल न करें या अंत-अंत तक कबूल न करने का तेवर दिखाते रहेंतो यह पराजित मानसिकता को अधिक ही तीखा बनाएगा,अौर दूसरे पक्ष को भी कटुता पर उतरने के लिए मजबूर करेगा. मैं जानता हूं कि मंदिर बनाने की अनुमति पा जाने के कारण ही हिंदुत्व धड़ा इतनासंयम दिखा रहा है लेकिन अदालती न्याय में ऐसा तो हरदम ही होता है. सारे मुस्लिम समाज को यह बात समझनी चाहिए कि मस्जिद के विवाद को पीछे छोड़ कर हम जितनी जल्दी अागे निकल जाएंगेहिंदुत्व का विषदंत उतनी ही जल्दी भोथरा हो जाएगा. वहां भी ऐसे तत्व हैं कि जो चाहते हैं कि चिंगारी छिटकेकि जहरीली हवा चले कि अाग भड़के ! हमें उनके हाथ खेलना नहीं हैउनको बेअसर करनाहै. 

 राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अायोग के वर्तमान अध्यक्ष घैरुल हसन रिजवी ने भी बयान दे कर मुस्लिम समाज को अागाह किया है कि पुनर्विचार याचिका का विचार प्रतिकूल परिणाम लाएगा. हमारीसंवैधानिक व्यवस्था में पुनर्विचार याचिकाएं मुकदमा फिर से खोलने का उपकरण नहीं हैं. सामान्य प्रक्रिया तो यही है कि न्यायाधीश महोदय अपने चैंबर में ही वादी-प्रतिवादी दोनों की बातें सुन लते हैं,उस रोशनी में अपने ही फैसले की समीक्षा कर लेते हैं अौर फिर याचिका को स्वीकृत या अस्वीकृत करते हैं. क्या अभी-अभी जिस विवाद की इतनी लंबी सुनवाई हुई हैउस संदर्भ में अॉल इंडिया मुस्लिमपर्सनल लॉ बोर्ड ऐसा कोई एकदम नया साक्ष्य ले कर अाया है कि जिससे इस फैसले की बुनियाद ही बदल जाए मेरा ख्याल नहीं है कि ऐसा कोई साक्ष्य किसी के हाथ लगा है. तब सारा मामलासाक्ष्यों के अाधार पर बनने वाली मनोभूमिका का है. तो 5 जजों की विशेष संविधान पीठ के सामने हमने जो कुछ कहादिखायाबताया उन सबके अाधार पर ही अदालत ने गहरे विमर्श अौर हर तरह कीसंभावनाअों को तौलते हुए एक मनोभूमिका बनाई अौर वही फैसले के रूप में हमारे समक्ष रखा है. एक पक्ष को मंदिर बनाने के लिए संगठन खड़ा करने की अनुमति मिली तो दूसरे पक्ष को 5 एकड़ जमीनमिली जिसका वे मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं. अभी तो वह जमीन का टुकड़ा भर हैपूरा मुस्लिम समाज जमीन के उस टुकड़े को जमीर की राष्ट्रीय अावाज में बदल दे सकता है - जमीरजो हिंदू यामुसलमान नहीं होता है,खालिस इंसान होता है. एक बड़ी लकीर खींचने का ऐसा वक्त हमारे हाथ में अा गया है कि जिसके अागे फिर कोई दूसरी मस्जिद या मंदिर या चर्च या गुरुद्वारे का सवाल न खड़ानहीं कर सकेगा. जड़ कटे अौर कोई एक नया पौधा उगेऐसी कोई सलाहियत हमें खोजनी है. 

  पराजय या डर की मनोभूमिका होगी तो हम यह काम नहीं कर सकेंगे. अात्मविश्वास से भरा अौर पुरानी सारी शंकाअों-कुशंकाअों को पीछे रख करपुरानी लिखावटें मिटा करभारतीय समाज काएक बड़ा घटक सारे समाज को संबोधित करते हुएसाथ लेते हुए कुछ नया लिखने की कोशिश करे,  यह वैसा अवसर है. अदालत ने चाहा हो या न चाहा होउसके इसी फैसल को हम ऐसे अवसर मेंबदल सकते हैं. अभी समाज में ऐसी ग्रहणशीलता बनी है. इसे पुनर्विचार याचिका वगैरह डाल कर हमें खोना नहीं चाहिए. इससे मुस्लिम समाज का अहित तो होगा हीपूरा भारतीय समाज इससे अाहतहोगा. 

  गांधी ने एक अाजाद मुल्क में धर्मों की जिस भूमिका को रेखांकित करने की कोशिश की थीउस भूमिका को समझने अौर उस दिशा में मजबूती से बढ़ने का यह समय है. अाज गति नहींदिशामहत्वपूर्ण हैउन्माद नहींविवेकप्रतिक्रिया नहींप्रक्रिया महत्वपूर्ण है. क्या मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कोई ऐसी पहल कर सकेगा कि 5 एकड़ जमीन का वह टुकड़ा भारतीय समाज के स्वस्थ तत्वों कीसाझेदारी का नमूना खड़ा करे जिन्हें अाकाश चूमता मंदिर बनाना हो वे बनाएंजमाना तो अापके पांव किस कीचड़ में सने हैंयह भी देखेगा. हमारे पांवों में भारतीय समाज के नये साझा स्वरूप का बलहो अौर हमारे निर्माण में भारतीय समाज के साझा अस्तित्व की तस्वीर होतो यह संकट स्वर्णिक अवसर बन सकता है. बकौल फैज’ : 


यूं ही हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से ख़ल्क,
 उनकी रस्म नई है अपनी रीत नई
यूं ही हमेशा खिलाये हैं हमने आग में फूल
 उनकी हार नई है अपनी जीत नई
( 26.11.2019) 

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