Saturday 21 October 2017

एक अौर गौरी

नाम की बात करूं तो दोनों के नाम ‘ग’ से शुरू होते थे, अौर ‘ग’ से ही हमारे यहां ‘गणपति’ का नाम शुरू होता है. गणपति कहूं तो हमारी परंपरा के प्रथम स्टेनोग्राफर यानी कलमधारी भगवान ! कथा है कि वेद व्यास महाभारत की कथा कहते चले गए अौर गणपति उसे लिपिबद्ध करते गये. तो ये तीनों कलम की परंपरा के लोग थे - गणपति, गौरी अौर गालिजिया ! 

अपनी गालिजिया को अभी-अभी माल्टा के लोगों ने बम से उड़ा दिया - ठीक वैसे ही जैसे हमने अपनी गौरी लंकेश को गोलियों से भुन दिया था ! अाप समझ सकते हैं कि जिस कलम को खरीदना अौर बेचना इतना अासान है कि बस एक अात्मा का सौदा करके, इस सौदे को निबटाया जा सकता है, उसी एक कलम को चुप कराना इतना कठिन हो जाता है कि अापको बम-बंदूक तक पहुंचना पड़ता है ! गालिजिया माल्टा की एक खोजी पत्रकार थी जिसने उन सबका जीना मुहाल कर रखा था जिन्होंने राजनीतिक सत्ता को धन कमाने की मशीन में बदल रखा है. दुनिया के तमाम सत्ताधारी यही एक काम समान कुशलता से, लगातार करते रहते हैं - तब तक, जब तक किसी गौरी या गालिजिया की कलम की जद में नहीं अा जाते. माल्टा के राजनीतिज्ञ इसके अपवाद नहीं हैं. इसलिए गालिजिया का ‘रनिंग कॉमेंट्री’ नाम का ब्लौग सबकी जान सांसत में डाले हुए था. धुअांधार लिखा जाने वाला अौर धुअांधार पढ़ा जाने वाला यह ब्लौग माल्टा की राजनीति में जलजला रच रहा था. 

पनामा पेपर भंडाफोड़ के बाद से राजनीतिज्ञों के अार्थिक भ्रष्टाचार का जैसा स्वरूप उजागर हुअा है, वह सबको हैरानी में डाल गया है. उसकी धमक अब अपने देश तक भी पहुंच रही है. कागजी कंपनियां बना कर, उन देशों में, जिन्हें ‘टैक्स हैवन’ कहा जाता है, खरीद-फरोख्त का फर्जी कारोबार चलता है अौर अरबों-खरबों के वारे-न्यारे किए जाते हैं. अाज की हमारी सरकार विदेशों में जमा जिस अकूत काले धन के खिलाफ जबानी जंग छेड़े रहती है, वह इसी रास्ते सफर करता है. यह बात दूसरी है कि नोटबंदी के शेखचिल्लीपने के बाद इस बात की अौर इस दावे की हवा निकल गई है लेकिन यह सच किसी से छुपा नहीं है कि धंधा बदस्तूर जारी है. 

५३ साल की डाफ्ने कारुअाना गालिजिया ने इस धंधे से अपने देश के शासकों का सीधा रिश्ता खोज निकाला अौर देश को बताया कि प्रधानमंत्री जोसेफ मस्कत की पत्नी एक कागजी कंपनी बना कर, अजरबेजान के शासक परिवार से मिल कर बेहिसाब पैसा बना रही हैं जो बाहरी बैंकों में जमा किया जा रहा है. इस भंडाफोड़ ने माल्टा की राजनीति में भूचाल ला दिया अौर लाचार हो कर प्रधानमंत्री मस्कत को नये चुनाव की घोषणा करनी पड़ी. वे जैसे-तैसे चुनाव तो जीत गये लेकिन न वह ताकत बची अौर न वह चेहरा ! चुनावी जीत अौर नैतिक हार में कितना कम फासला होता है, यह हमने अपने देश में बारहा देखा है. यही माल्टा में हुअा. प्रधानमंत्री मस्कत चुनाव तो जीत गये लेकिन लड़ाई हार गए अौर गलिजिया रोज-रोज अपने ब्लौग पर नये-नये खुलासे करने लगी. 

गलिजिया की रट यही थी कि हमारे छोटे-से द्वीप-देश का सारा राजनीतिक-सामाजिक जीवन भ्रष्टाचार से बजबजा रहा है. हमारा व्यापार-तंत्र धन की हेरा-फेरी अौर घूस खाने-खिलाने में लिप्त है अौर अपराधियों से सांठ-गांठ कर चल रहा न्यायतंत्र या तो नाकारा हो गया है या चाहता ही नहीं है कि अपराधियों तक कोई पहुंचे. माल्टा को अपराधियों ने अपना गढ़ बना लिया है अौर हमारा छोटा-सा द्वीप-देश माफिया-प्रदेश में बदल दिया गया है. वह बार-बार याद दिलाती थी कि पिछले १० सालों में माल्टा में माफिया ने १५ हत्याएं की हैं जिनमें कार को बम से उड़ा देने के मामले भी हैं. कभी कोई पकड़ा नहीं गया है, तो पकड़ने वाले कहां हैं ? कि पकड़ने वाले ही अपराधियों के साथ हैं ? जब वह ऐसे सवाल पूछ रही थी तब उसे कहां पता था कि उसकी कार में लगाया गया बम फटने पर ही है. 

अपने अंतिम ब्लौग में उसने प्रधानमंत्री के मुख्य अधिकारी के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की बात प्रमाण के साथ लिखी थी. उसने कुछ कागजातों का भी जिक्र किया था. यह सब लिख कर उसने  अपना वह अंतिम ब्लौग बंद किया था - उसके कार में रखा बम इसके अाधे घंटे के बाद फटा था अौर कार समेत गालिजिया की धज्जियां उड़ गई थीं. अपने अंतिम ब्लौग का अंत करते हुए उसने लिखा था “ : जिधर देखिए उधर शैतानों के झुंड हैं ! स्थिति बहुत नाजुक है !!” 

अब शैतानों का झुंड खामोश है. वह राजतंत्र, वह व्यापार-तंत्र अौर वह न्यायतंत्र, जिसकी बात गालिजिया ने की थी, अभी खामोश है. अाप याद करें कि गौरी की हत्या के बाद भी सारा तंत्र इसी तरह खामोश था अौर अगर कहीं कोई अावाज थी तो यही बताने के लिए थी कि ‘ हमने नहीं किया, हमसे कोई नाता नहीं !’ गालिजिया के साथ भी ऐसा ही  हुअा. प्रधानमंत्री मस्कत ने कहा: “ इस हत्या से मैं स्तब्ध हूं ! सभी जानते हैं कि करुअाना गालिजिया मेरी सबसे कटु राजनीतिक व निजी अालोचक थी जैसी वह दूसरों के लिए भी थी. फिर भी मैं कभी भी, किसी भी तरह इस बात की अाड़ ले कर उस बर्बर कृत्य का समर्थन नहीं करूंगा जो किसी भी तरह की सभ्यता व प्रतिष्ठा के खिलाफ जाता है.” 

लेकिन जिस सच को कहने की हिम्मत प्रधानमंत्री नहीं जुटा सके, वह कहा गालिजिया के बेटे मैथ्यूज ने : “ मेरी मां की हत्या कर दी गई क्योंकि वह कानून के शासन व उसका उल्लंघन करने वालों के बीच खड़ी थी… अौर वे ऐसा कर सके क्योंकि वह इस लड़ाई में अकेली थी.” 

तो अपना समाज बचाने अौर बनाने के लिए एक नहीं, कई गालिजिया की जरूरत है जिसके हाथ में कलम हो. 
( 19.10.2017) 

           

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