Tuesday 25 October 2016

ऐ दिल है मुश्किल…

कहने को लोग उन्हें पेज थ्री पर्सनैलिटी’ कहते हैंमैं उन्हें चूहों की जमात कहता हूं. अपने ही जेब के भार से बोझिल लेकिन व्यक्तित्वहीन इस जमात का यह सबसे बुरा दौर है जब वह एकदम नंगा हो गया है लेकिन न कह पा रहा हैन लड़ पा रहा हैन हंस पा रहा है और न रो पा रहा है ! इसे कहते हैं भई गति सांप-छछुंदर की ! और आप देखिए तो कि ऐसी गति को कौन लोग पहुंचे हैं : श्रीमान अमिताभ बच्चनकरण जौहरमुकेश भट्टमहाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीसदेश के गृहमंत्री राजनाथ सिंहमहाराष्ट्र की एक पिद्दी-सी राजनीतिक पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरेफिल्म उद्योग के तीन बड़े नाम सिद्धार्थराय कपूरसाजिद नडियाडवाला तथा फॉक्स स्टार स्टूडियो के कोई विजय सिंह. इन सबने मिल कर एक ऐसी सशक्त फिल्म बनाई है जिसने देश की राजनीतिकसामाजिक और सांस्कृतिक अवस्था का वैसा पर्दाफाश किया है जैसा कोई दूसरा कभी कर ही नहीं सका. फिल्म का नाम है ऐ दिल है मुश्किल ! जब कहीं जरा-सी भी आहट होती है तो तीसमारखां चूहों में कैसी खलबली मचती है और सभी कैसे अपने-अपने बिलों में जा समाते हैंइस पर बनी यह अब तक की सबसे सशक्त फिल्म है.  

करण जौहर हमारे सिनेमा के प्रतिनिधि नामों में नहीं हैं और उनकी फिल्में रुपये भले गिनती होंकिसी खास गिनती में नहीं आती हैं. लेकिन  अक्सर मूर्खता व शालीनता की हद पार कर जाने वाले करण जौहर ने अपनी एक बेबाक छवि जरूर गढ़ी थी जो आज अपमानित अवस्था मेंटूटी-फूटी पड़ी है और उनके पास रोने को एक आंसू या कहने को एक शब्द  नहीं हैं. आज वे और उनका पूरा मुंबइया फिल्म उद्योग किसी बंधुआ मजदूर की तरह दिखाई दे रहा है तो इसलिए कि राज ठाकरे की देशभक्ति की गाज उस पर गिरी है. राज ठाकरे की यह देशभक्ति उनकी अपनी आसन्न राजनीतिक मौत को टालने की अंतिम कोशिश में से पैदा हुई है. 

पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारतीय समाज और संविधान पर लगातार सर्जिकल स्ट्राइक हो रहे हैं. ऐसा करके और ऐसा करने की छूट दे कर केंद्र सरकार देशभक्ति का वह बुखार पैदा करना चाहती है जिसे वह चुनाव में भुना सके. राज ठाकरे ने इस मौके को पहचाना और बहती गंगा में हाथ धोने की चाल चली. उन्होंने यह फरमान जारी कर दिया कि मुंबइया फिल्मों मे काम कर रहे सारे पाकिस्तानी कलाकार भारत छोड़ कर चले जाएं - समय और तारीख उन्होंने तै कर दी ! न महाराष्ट्र सरकार ने न मोदी सरकार ने पलट कर पूछा कि भारतीय संविधान की स्वीकृति से भारत आए किसी भी विदेशी नागरिक को देश  से निकल जाने का आदेश राज ठाकरे कैसे दे रहे हैं यह अधिकार इन्हें किसने दिया ऐसा सवाल किसी ने नहीं पूछा तो क्यों इसका जवाब यह है कि महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार में शामिल हो कर भी रोज-ब-रोज उसकी ऐसी-तैसी कर रही शिव सेना को धूल चटाने का मानो ठेका राज ठाकरे को दिया गया है ! यह चूहों की राजनीति है ! 

राज ठाकरे की चुनौती ने पाकिस्तानी कलाकारों का जो भी किया होभारतीय फिल्मकारों को सीधे कठघरे में खड़ा कर दियाऔर वह भी किनकोतो करण जौहरशाहरुख खान और सलमान खान को ! ये सारे नाम मुंबइया फिल्म उद्योग की नाक समझे जाते हैं. शाहरुख अपनी पिछली  पिटाइयों से बेहोश-से हैं लेकिन सलमान खान और करण जौहर ने बड़े तेवर से राज ठाकरे को जवाब दिया कि कला और राजनीति की दुनिया अलग-अलग होती है. कलाकार देशी-विदेशी नहीं होताकलाकार होता हैउसकी स्वतंत्रता पर हाथ डालने की कोशिश हम कबूल नहीं करते ! सलमानकरण आदि जब बोलते हैं तो गूंज होती ही है ! बात गूंजी और फैलने लगी. राज ठाकरे ने इन सबकी सड़क पर पिटाई करने का एलान किया तो उनके छुटभैय्यों ने सिनेमाघरों पर हमला करने की बाजाप्ता सार्वजनिक घोषणा कर दी. कोई कुछ नहीं बोला - न महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पूछा राज ठाकरे से कि मुख्यमंत्र मैं हूं कि आपन महाराष्ट्र पुलिस के आला अधिकारियों ने राज ठाकरे से कहा कि सड़क की गुंडागर्दी का मुकाबला करना उसे आता है ! कोई बोला तो फिल्म उद्योग के कलाकार बोले और पते की बात बोले. फिल्मी लोगों को दूसरों के लिखे डायलॉग बोलने से अधिक भी कुछ बोलना आता हैयह पता चला. फिल्मी दुनिया की अपनी आवाज इस तरह बनने लगी कि पल भर को ठाकरे-फडणवीस खेमा सन्नाटे में आ गया. तभी इसकी हवा निकाली मुंबइया फिल्मों के सिरमौर माने जानेवाले अमिताभ बच्चन ने ! जब उनके हमपेशा लोगों को सड़क पर पीटने की धमकी दी जा रही थी तब उनके साथ आवाज उठाने की जगह अमिताभ बच्चन नेचोर दरवाजे से राज ठाकरे के पुत्र का अपने घर पर स्वागत किया. अवसर था अमिताभ के जन्मदिन का. उन्होंने राज ठाकरे के पुत्र का अपने घर पर धन्यभाग हमारे’ वाली शैली में स्वागत किया और राज ठाकरे द्वारा भेजा जन्मदिन का वह तोहफा कबूल किया जो राज ठाकरे की कलम से बने उनके ही कार्टूनों का फ्रेम था.  अमिताभ ने गदगद भाव से उसे कबूल ही नहीं किया बल्कि बेटे को अपना घर भी घुमाया और फिर राज ठाकरे के घर पर अपनी भी सौगात भेजी ताकि रिश्तों में कोई पेंच बाकी न रहे. उन्होंने गलती से यह नहीं कहा कि राज ठाकरे का भेजा जन्मदिन का निजी तोहफा मैं स्वीकार करता हूं लेकिन उनकी राजनीति को अस्वीकार करता हूं.   

हमेशा ऐसा ही होता है. अमिताभ हमेशा सावधान रहते हैं कि वे अपनी बारीक राजनीति चलाते रहें लेकिन किसी विवाद में न पड़ें. हर जगह से साफ बच निकलने में ही उन्हें अपनी चातुरी नजर आती है. राज ठाकरे के लिए यह संकेत था. चतुर राजनेता की तरह उन्होंने इसे पकड़ लिया. इस वक्त भी दूसरे फिल्मकारों का जमीर जागता तो ठाकरे मार्का राजनीति के कल-पुर्जे ढीले किए जा सकते थे लेकिन जिनके अपने कल-पुर्जे ही ढीले होंवे क्या करें ! सब अपने-अपने बिलों में जा घुसे ! राज ठाकरे ने फिर वह पत्ता चला जो हमेशा ही फिल्मवालों के होश ठिकाने ला देता है. उन्होंने फरमान जारी िकया कि जिन फिल्मों में पाकिस्तानी कलाकारों ने काम किया हैवे उनको रिलीज नहीं होने देंगे.  

इस गुंडागर्दी को केंद्र व महाराष्ट्र की सरकार ने मौन ने पूरा समर्थन दिया. उनका मौन खुली घोषणा कर रहा था कि देशभक्ति का जैसा उन्माद खड़ा करने में हम लगे हैं उसमें सहायक होने वाली हर शक्ति को अभी खुली छूट है. उनके लिए देश में न कोई कानून हैन पुलिसन सरकार ! जब सत्ता व वोट का सवाल हो तब लोकतंत्र और संविधानसम्मत स्वतंत्रताएं कोई मानी नहीं रखतीं. 

ऐसे ही मौकों पर नागरिक-शक्ति सत्ता को उसकी अौकात बताती है. यहीं व्यक्ति की परीक्षा होती है - उसकी आस्था कीउसके आत्मबल की. लेकिन फिल्म रिलीज नहीं हो सकेगीपैसे का नुकसान होगायह भय इतना बड़ा हुआ कि सारे फिल्मी शेर चूहे बनने लगे. सभी वही राग अलापने लगे जो सरकार चाहती थी. इस वक्त हिम्मत से आगे आ कर करण जौहर या सलमान खान या प्रोड्यूसर्स गिल्ड के मुकेश भट्ट ने कहा होता कि भले फिल्म रिलीज न  होहम किसी समझौते को तैयार नहीं हैंतो हवा बदल जाती ! यह कहने की जरूरत ही नहीं है कि करण जौहर या सलमान खान या इन जैसी दूसरी बड़ी फिल्मी हस्तियों के पास इतना पैसा है एक फिल्म के अंटक जाने से रोटी के लाले नहीं पड़ जाएंगे. लेकिन पैसा ही है जो आपको चूहा बना देता है. मुकेश भट्ट ने प्रोड्यूसर्स गिल्ड की तरफ से शरणागत होने का झंडा लहराया. कई फिल्मी हस्तियों के साथ वे गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिले और फिर उन्हें यह दिव्य ज्ञान हुआ कि देश  का लोकतंत्र नहींसत्ता और संपत्ति सबसे बड़ा सत्य होता है. 

गृहमंत्री ने उन्हें समझौता कर लेने की कड़ी सलाह दी. सभी मुंबई लौटे और मुख्यमंत्री फडणवीस ने अपने घर पर राज ठाकरे की अदालत सजाई. सभी अपराधी उसमें हाजिर हुए. अब राज ठाकरे भारतीय जनता पार्टी के वैसे मोहरे थे जैसे उनके चाचा कभी कांग्रेस के मोहरे थे. इतिहास दोहराया जा रहा था. कभी कांग्रेस ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को निबटाने के लिए बाल ठाकरे और शिव सेना को खड़ा किया थाकभी अकाली दल से निबटने के लिए इंदिरा गांधी की सहमति से ज्ञानी जैल सिंह ने भिंडरावाले को खड़ा किया था.उसी शिव सेना ने महाराष्ट्र में और भिंडरावाले ने पंजाब में जैसी आग लगाईवह इतिहास हम जानते हैं और उसमें देश कितना और कैसे जलायह भी इतिहास में दर्ज है. वही खेलज्यादा खतरनाक ढंग अब भारतीय जनता पार्टी खेल रही है. 

राज ठाकरे की अदालत में त्रिसूत्री फैसला हुआ: करण जौहर अपनी फिल्म की शुरुआत में फौज के शहीदों को सलाम करने वाली घोषणा दिखाएंगे ताकि देशद्रोह का उनका पाप कट सकेआगे कभी किसी पाकिस्तानी कोकिसी भी हैसियत में अपनी फिल्म से नहीं जोड़ेंगे ताकि उनकी देशभक्ति सदा दिखाई देती रहे तथा वे सेना कल्याण कोष में ५ करोड़ रुपयों का दान देंगे. सरकारसमेत सभी अपराधियों’ ने इस पर दस्तखत किए और तब कहीं जा कर करण जौहर अपनी फिल्म दर्शकों तक ला पाए हैं. इतना ही नहीं हुआइसके साथ कई दूसरी बातें भी हुईं. मतलब राजा ने यानी राज ने यह भी कहा कि प्रोड्यूसर्स गिल्ड किसी पाकिस्तानी को अपने यहां फिल्मों में कोई काम नहीं देने का लिखित प्रस्ताव करेगा और उसकी प्रति सरकारी मंत्रालयों कोअखबारों को भेजेगा. और यह भी कि उन सारी फिल्मों को भी सेना कल्याण कोष के लिए ५ करोड़ रुपये रक्षामंत्री को देने होंगे जिन्होंने पाकिस्तानी कलाकारों को लिया है. रक्षामंत्री को ५ करोड़ का चेक देते हुए वे अपना फोटो अखबारों में प्रकाशित करवाएंगे ताकि पक्का प्रमाण हो जाए. इस तरह सरकारों को अर्थहीन करते हुए और सारी संवैधानिक व्यवस्था को अपमानित करते हुए राज ठाकरे ने अपनी पार्टी के लिए थोड़ा अॉक्सीजन जुटा लिया. लेकिन ऐसा करते हुए इन लोगों के समाज में कितना जहर और अविश्वास भर दिया हैक्या इसका हिसाब किसी के पास है 

सवाल पाकिस्तानी कलाकारों का नहीं है. हमारी सारी फिल्में उनके बिना ही बनती हैं. एकाध अपवाद होती हैं. सरकार की अनुमति से विदेशी कलाकार यहां आते हैं जैसे खिलाड़ीवैज्ञानिकशिक्षक आदि आते हैं. सरकार जब चाहेइनका आना रोक सकती है. फिल्मकार जब चाहेंइन्हें काम देना बंद कर सकते हैं. सरकार को यह अधिकार संविधान ने दिया है और कोई भारतीय नागरिक इससे बाहर तो नहीं जा सकता ! सवाल एकदम सीधा है कि क्या कोई सरकार या कोई नागरिक संविधान के बाहर जा सकता है अपवादों की बात छोड़ दें तो संविधान के बाहर जाना देशद्रोह है. अब आप फैसला करें कि इस मामले में देशद्रोह का इल्जाम किस पर आता है.   

भयभीत करण जौहरमुकेश भट्ट जैसों ने टीवी पर आ करबड़ी संजीदगी से कहना शुरू कर दिया कि हम देशभक्त हैंहम सबसे पहले भारतीय हैंउसके बाद ही कुछ और ! इन्हें यह भी नहीं बताना चाहिए कि आज से पहले वे क्या थे अ-भारतीय थे क्या अपनी पसंद के कलाकारों के साथ अपने मन की फिल्म बनाना और देशभक्ति साथ-साथ नहीं चलती है क्या किसी दूसरे के आदेश और धमकी से देशभक्त बनना अंतत: देशद्रोह नहीं है और अंत में यह भी कि जिस देश में एक नहींएक साथ कई-कई स्वार्थों की सरकारें चलती हों और वे सब हिंदुस्तान में से अपने-अपने स्वार्थ का हिस्सा मांगती होंउस देश में देशभक्ति जैसा शब्द एक-दूसरे को दी गई गाली जैसा लगता है. ( 25.10.2016)                                                                                                                                                                                                                                                                   

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