Saturday 18 November 2023

नीतीश कुमार का अपराध : नीतीश कुमार की माफी

 यह अपने-आप में अनोखा था. कभी देखा नहीं था कि कोई मुख्यमंत्री सदन में और सदन के बाहर भी अपनी कही किसी बात के लिए बार-बार इस तरह माफी मांग रहा हो कि उसे अपनी कही बात की सच में ग्लानि हो. जुमलेबाजी पर टिकी आज की राजनीतिक संस्कृति में, जुमलेवाली माफी और सच्ची माफी में जो फर्क होता है, वह पहचानने का विवेक अभी जिंदा है. इसलिए कह सकता हूं कि नीतीश कुमार को माफी मिल ही जानी चाहिए. जुमले उछालना, झूठ बोलना, गलत बोलना और अनगढ़ ढंग से बोलना, दो सर्वथा भिन्न बातें हैं. 

बोलने का सच यह है कि जब कभी हम बोलते हैं तो अपनी तरह से ही बोलते हैं लेकिन बोलते हमेशा दूसरे के लिए हैं. यदि सुनने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दूसरा कोई न होतो हम बोलें ही नहीं. बोलना बड़ी जिम्मेवारी है. बार-बार दोहराई लेकिन फिर भी ताजा-के-ताजा वह बात सौ टंच खरी है कि वाण से छूटा तीर व जुबान से निकली बात वापस नहीं आती है. इसलिए तो वाक्-संयम को गीता ने स्थितप्रज्ञ्य के लक्षणों में एक माना है.  राजनीति में स्थितप्रज्ञ्यता की न जगह मानी जाती हैन गुंजाइश !

नीतीश कुमार को उस रोज अपनी तरह से वह बात कहनी थी जो उन्होंने पहले कभी कही ही नहीं थीउन्हें अपनी सरकार की सफलता के झंडे भी लहराने थे जैसे हर राजनीतिज्ञ लहराता हैउन्हें विपक्ष पर गहरा कटाक्ष कर उसे व्यर्थ के बकवासी भी साबित करना था. इस नट-लीला में वे फंस गए. तनी हुई रस्सी पर संतुलन साधता नट संतुलन खो कर गिरता भी तो है न ! गिरना खेल के गलत होने का प्रमाण नहीं हैखिलाड़ी के चूकने का प्रमाण है. 

बोलना तीन तरह का होता है : गलत बोलना,  असभ्यता से बोलना तथा सर्वथा झूठ बोलना ! लोकतंत्र के संदर्भ में एक तीसरा प्रकार भी है : असंवैधानिक बोलना ! नीतीश कुमार ने उस रोज जो कहा व जिस तरह कहा वह दूसरी श्रेणी में रखा जा सकता है. भाषा की यह दिक्कत जगजाहिर है. वह यदि लोक-व्यवहार से गढ़ते-गढ़ते तराश न दी गई हो तो भोंढी लगती है और अपना अर्थ संप्रेषित करने में विफल होती है. कितनी तो आलोचना गांधीजी की हुईहोती रहती है कि उन्होंने संसदीय लोकतंत्र को बांझ व वेश्या’ कह कर स्त्री-जाति को हीन बताया. गांधीजी की तरफ से ऐसे अभद्र’ शब्द आएंकई लोगों को तो यही नहीं पचा. किसी को इसमें गांधीजी की पुरुष मानसिकता के दर्शन हुए. गांधीजी ने कहा : मैं जो कहना चाहता हूं उसके लिए इससे अधिक मौजूं शब्द मिला नहीं मुझे ! मिल जाएगा तो बदल दूंगा ! यहां मेरी तरफ से नीतीश कुमार व गांधीजी की तुलना या साम्यता का मतलब न निकालें पाठक बल्कि भाषा की मर्यादा का एक उदाहरण मात्र समझें. 

नीतीश कुमार को साबित यह करना था कि उनकी सरकार के प्रयासों से जनसंख्या नियंत्रण का प्रयास सफल हुआ है. वे आंकड़ों से उसका प्रमाण भी देते रहे. विपक्ष उनका दावा मानने को तैयार नहीं था. इसलिए उन्हें विपक्ष को धूल-धूल कर देना थाउसे उसकी सही जगह दिखला देनी थी तो उनकी आक्रामकता बढ़ने लगी. वे बताने लगे कि जनसंख्या नियंत्रण में दिक्कत क्या-क्या आती है. पति या पुरुष कामुक हुआ जाता है और स्त्री उसके सामने बेबस हो जाती है. यह सब बताने में समर्थ भाषा हमने विकसित ही नहीं की हैक्योंकि यह सब गुप्त ज्ञान’ के भीतर आता है. हमारे समाज में यौन-शिक्षा का जैसा हाल है वह नीतीश कुमार की देन नहीं है बल्कि हम सबकी तरह नीतीश कुमार भी उसके शिकार हैं. हमारे यहां यौनिक संदर्भ की भाषा विकसित ही नहीं हुई है क्योंकि उसे हमने हमेशा अत्यंत निजीकिसी हद तक गुप्त विषय ( गुप्त रोग ! ) माना है. इसमें अंग्रेजी का हमारा अत्यंत सीमित  (व विकृत !) ज्ञान हमारा सहारा बनता है. अंग्रेजी का हमारा अज्ञान हमें वैसा कुछ कह कर निकल जाने की सुविधा देता है जिसे हम ठीक से समझते भी नहीं है. चुम्मा’ कहो तो अशिष्ट लगता है, ‘चुंबन’ कहो तो कालिदासीय क्लिष्टता लगती हैतो हम किस’ कहकर निकल जाते हैं जिसमें न मिठास मिलती हैन अपना कोई संदर्भ मिलता है लेकिन अंग्रेजी में है तो भद्र ही होगाऐसा जमाना मानता हैतो हम भी मानते हैं.  

नीतीश कुमार को कहना यह था कि लड़की पढ़ी-लिखीजानकार होगीजैसाकि हमारी सरकार उसे बनाने में लगी हैतो वह अपने पति की कामुकता को नियंत्रित कर सकेगीउसे गर्भ न रहने के प्रति सचेत कर सकेगी. इसे आप भदेशपन से कहेंगे तो नीतीश कुमार का हाल होगा आपकाअंग्रेजी में विद्ड्रॉल’ कहेंगे तो भद्रता मान कर आपको बरी कर दिया जाएगा. जब नीतीश कुमार आक्रामक हास्य की मुद्रा में यह सब कह रहे थे तो वे समझ रहे थे कि वे कुछ अटपटा कह रहे हैं लेकिन यही तो राजनीति हैऔर राजनीति ऐसी सावधानी कब रखती है ! वह तो हमेशा कह देने की बाद की प्रतिक्रिया सेअपने कहे की सार्थकता या निरर्थकता आंकती है और अपना अगला कदम चुनती है.  यही नीतीश कुमार ने भी किया. 

उनकी खुली सार्वजनिक माफी ही यह बताती है कि जो कुछ कहा उन्होंने वह इरादतन महिलाओं का अपमान करनेयौनिकता को राजनीतिक हथियार बनाने या अपनी यौन कुंठा को तुष्ट करने का जायका लेने जैसा नहीं था. वे इस नाहक के विवाद और अपनी रौ में बह जाने के परिणाम से त्रस्त व्यक्ति की ईमानदार माफी थी. स्त्री-वर्ग के रूप में बिहार की महिलाओं को नीतीश कुमार ने सशक्त ही किया हैउनमें उत्साह भरा हैउनकी उमंगों को अपनी व्यवस्था का आधार भी दिया है. मुझे अंदाजा नहीं है कि उनके मंत्रिपरिषद में यौन अपराधियों को कितनी जगह मिली हुई है याकि ऐसे अपराधियों के प्रति उनका रवैया कैसा है.  यदि यह आंकना हो तो प्रधानमंत्री समेत केंद्रीय मंत्रिमंडल का चेहरा अच्छा नजर नहीं आएगा. लेकिन इस आधार पर नीतीश कुमार से इस्तीफे की मांग याकि दूसरे किसी को सरकार की बागडोर सौंप देने की मांग अतिवादी मांग है. मांगने करने वालों को यह समझना चाहिए कि  यह अपराध से कहीं बड़ी सजा देने की अविवेकी भूल होगी. व्यापक सार्वजनिक भर्त्सना के रूप में उन्हें अनगढ़ अभिव्यक्ति की वह सजा मिल चुकी है जो किसी राजनेता के लिए सबसे बड़ी सजा होती है. अब आगे की नितीश कुमार जानें. लेकिन कुछ तो हम भी जानें. हम सब बड़ी सावधान सावधानी बरतें कि किसी भी हाल मेंकैसी भी परिस्थिति में हमारी सार्वजनिक अभिव्यक्ति यौनिक गालियों या प्रतीकों का सहारा न ले. ऐसी हर अभिव्यक्ति औरत का अपमान करती हैऐसी हर अभिव्यक्ति यह भूल जाती है कि यौनिकता स्त्री-पुरुष दोनों की साझा विरासत है. हम जब ऐसे अपशब्दों में बात करते हैं तो खुद को भीअपनी महिला को भी और सारी महिला साथियों को भी क्षुद्रतर साबित करते हैं. नीतीश-प्रसंग यदि हमें इतना सचेत कर दे तो हमें उन्हें माफ तो कर ही देना चाहिए.  ( 17.11.2023) 

1 comment:

  1. कोई माफी नहीं है इनके अनगिनत कृत्यों के लिए,यह बहुत महत्वपूर्ण और विचारनिये हो जाता है कि कौन बोल रहा है यानी उसकी हैसियत सामाजिक स्तर पर क्या है?
    किस परिस्थिति को लेकर बोल रहा है और उसके भाष्य समाज के युवा, महिला और जागरूक लोगों पर क्या प्रभाव डालेगा, यह वक्तव्य नीतीश कुमार नहीं बल्कि राज्य का मुख्य मंत्री बोल रहा था, बिहार की व्यवस्था के लिए उसकी परिस्थितियों को लेकर जिसकी ज़िम्मेदारी है वह सेक्स एजुकेशन पर ज्ञान बाँट रहा है,
    यह वक्तव्य किसका मार्गदर्शन कर रहा है नशे में धूत बिहारी युवा के लिए जिसके पास कोई रोज़गार नहीं सिर्फ़ रोज़गार के लिए श्रमजीवी जैसी ट्रेन है और कोई नियम व व्यवस्था नहीं, या उन महिलाओं को लेकर मु. मंत्री का वक्तव्य था जो आज घर के पुरुष पलायन के बाद घर से लेकर खेतों में बोआई पटवन सोहनी से लेकर कटाई तक खुद को पल-पल घाशिट रही है,
    सिर्फ़ सुनी बात पर-जो perceive की उसे perception बना narrative गढ़ने बालो को बिहार की ज़मीनी हक़ीक़त और उदाहरण जिसमें सर्व जन हिताए की बात हो उसे देखना होगा, बिहार का युवा आज देश के अन्य राज्यों से ज़्यादा यंग है यानी युवाओं की संख्या आज बिहार में सबसे ज़्यादा है,

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