Saturday 20 August 2022

हम एक हैं !

     पता नहीं कब से, कलेजे का पूरा जोर लगा कर हम चिल्लाते रहे : आवाज दो, हम एक हैं; लेकिन हम एक नहीं हुए ! वे कोई आवाज नहीं लगाते, जुलूस नहीं निकालते लेकिन समय पड़ने पर इस तरह एक होते हैं कि समय भी हक्का-बक्का रह जाता है.                 

   श्रीलंका के अपराधीअपदस्थअपमानित व भगोड़े राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे तब अपना देश छोड़ भागे जब सारा देश जल रहा था और उनकी बनाई सारी व्यवस्था ध्वस्त पड़ी थी. यह वैसा दौर था जिसमें कोई देशभक्त देश छोड़ कर भाग नहीं सकता है. उसका भागना ही प्रमाणित करता है कि वह और कुछ भी होदेशभक्त तो नहीं है. देशभक्त होगा तो अपने मन-प्राणों का पूरा बल जोड़ कर हालात को संभालने की कोशिश करेगा और इस कोशिश में होम होना ही बदा हो तो वही स्वीकार करेगा. लेकिन गोटबाया की देशभक्ति ने उसे भागने का रास्ता दिखाया. भागने से पहले वह गायब हो गया था क्योंकि श्रीलंका की सड़कों परसरकारी इमारतों परराष्ट्रपति भवन पर नागरिकों का कब्जा हो गया था. नागरिक यानी लोक जिनसे श्रीलंका का ही नहींसारी दुनिया का लोकतंत्र बनता है. लोकतंत्र की शोकांतिका यह है कि वह बनता लोक से हैचलता तंत्र से है. चलाने वाले वेतनभोगी बड़े-छोटे हर कर्मचारी को अक्सर यह भ्रम हो जाता है कि वे हैं तो राष्ट्र है. इसलिए जब कभी लोक अपनी हैसियत बताने सामने आता हैतंत्र के होश उड़ जाते हैं वह फौज-पुलिसलाठी-गोलीअश्रुगैस-पानी की तलवारें ले कर मुकाबले को उतर आता है. यही गोटाबाया ने भी कियाऔर जब कोई बस नहीं चला तो भय से कहीं जा छुपा. कहां ?

   यही कहानी मुझे आज आपको सुनानी है. जब श्रीलंका के सागर में उत्ताल लोक लहरें उठ रही थीं और सेना ऐसा दिखा रही थी कि वह लोक से सहानुभूति रखती हैठीक उसी वक्तवही सेना लोकद्रोही गोटाबाया को पनाह भी दे रही थी. इतना ही नहींवह बयान दे रही थी कि हमने गोटाबाया को न तो छुपा रखा हैन छुपने में मदद ही की है. गोटाबाया में थोड़ा भी नैतिक बल होता तो वह तभी-के-तभी इस्तीफा दे देता. सभी गोटाबाया ने ऐसा ही तो किया था. 

   यह भयानक हकीकत हममें से कम लोग ही जानते होंगे कि श्रीलंका की राष्ट्रीय सरकार में गोटाबायों’ की उपस्थिति कैसी व कितनी थी. प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने अपने भाई गोटाबाया राजपक्षे को राष्ट्रपति बनाया थाअपने दूसरे भाई बासिल राजपक्षे को वित्त मंत्रीअपने भतीजे नामाल को खेल व युवा मंत्रीदूसरे भाई चामाल को सिंचाई मंत्रीऔर चामाल के बेटे शाशींद्र को कृषि मंत्री बनाया था. महिंदा ने अपने बेटे योशिथा को प्रधानमंत्री कार्यालय का प्रमुख नियुक्त किया था तो दामाद निशांता विक्रमसिंघे को लंकन एयरलाइंस का प्रमुख बनाया था. ऐसा राष्ट्रीय परिवारवाद क्रूरता व आतंक के सहारे ही टिकाया जा सकता हैयह जानते हुए महिंदा और गोटाबाया ने तमिल लंकाइयों से युद्ध छेड़ दिया और दुश्मनों की तरह उनका खात्मा करवाया. इसके लिए जरूरी था कि लंकाई समाज में चरम घृणा फैलाई जाए ताकि सभी एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाएं. इसलिए तमिल बनाम सिंघली का खूनी दौर चलाबौद्ध पंडे-पुजारी राजा के समर्थन में धर्म-ध्वजा ले कर उतर पड़े. सत्ता प्रायोजित इस सामाजिक तांडव में कमजोर व भ्रष्ट विपक्ष बिखर कर रह गया. 

   जब जन असंतोष उभरने लगा तो उस पर पानी डालने के लिए राष्ट्रपति गोटाबाया ने अपने भाई प्रधानमंत्री महिंदा का इस्तीफा ले लिया और सरकार की पूरी कमान खुद  संभाल ली. जनता को संदेश गया: देखोकैसा राजा हैअपने भाई को भी नहीं छोड़ता है ! हमारे यहां इन दिनों इसे जीरो टॉलरेंस’ कहा जाता है. इस्तीफा देने के बाद प्रधानमंत्री महिंदा कहीं गुम हो गए और ऐसे हुए कि आज तक किसी को पता नहीं है कि वे कहां हैं. इसे हम चाहें तो अज्ञातवास’ की साधना कह सकते हैं. महिंदा के बाद गोटाबाया अज्ञातवासी’ हुए. जनता से द्रोह करने वाले गोटाबाया को फ़ौज ने छुपा कर रखा और फिर मौका पाते ही फौजी विमान से, 5 परिवारजनों के साथ 3सरकारी अधिकारियों की देख-रेख में मालदीव भेज दिया. 

   मालदीव का सत्तापक्ष समझता था कि लंका के सत्तापक्ष का प्रतिनिधि अपना आदमी है. इसलिए उसने श्रीलंका की जनता के द्रोही गोटाबाया को पनाह दी. वहां सरकारी सुरक्षा में बैठ कर गोटाबाया ने अपनी गोटियां बिठायीं और फिर उड़ कर पहुंचा सिंगापुर. सिंगापुर के सत्तापक्ष ने भी स्वधर्म निभाया और एक राजनीतिक भगोड़े के लिए अपना द्वार खोल दिया. कैसा मासूम बयान दिया वहां के सत्तापक्ष ने : न हमने शरण दी हैन उन्होंने शरण मांगी है ! अपने देश से चोरी से भाग निकला कोई साधारण अपराधी  इस तरह घोषणा कर के सिंगापुर आए तो क्या उसे सिंगापुर में प्रवेश व पनाह मिल जाएगी सरकार जवाब नहीं देती हैधमकी देती है : किसी कोकिसी प्रकार का विरोध जताने की सिंगापुर में अनुमति नहीं है ! खबर गर्म है कि गोटाबाया सिंगापुर में जमा व निवेश की गई अपनी अरबों की दौलत को ठिकाने लगाने की व्यवस्था करने में जुटे हैं. सिंगापुर सत्तापक्ष को पता है कि उनकी अर्थ-व्यवस्था ऐसे ही गोटाबायों के दम पर जिंदा हैसो उसे उनका साथ देना ही है. 

   यह है सत्ता प्रतिष्ठान का हम एक हैं! इसमें सत्तापक्ष व विपक्ष जैसा भेद नहीं हैदेश-विदेश का फर्क नहीं है. आप देखिएगोटाबाया की हत्यालूटदमनधोखा और फिर देश की आंखों में धूल झोंक कर भाग निकलने की किसी महाशक्ति ने निंदा की किसी ने मालदीव या सिंगापुर से पूछा कि एक अपराधी को उसने कैसे पनाह दी नहींसभी चुप हैं क्योंकि सभी जानते हैं कि कल अपनी जनता से बचने का ऐसा रास्ता उन्हें भी पकड़ना पड़ सकता है. इसलिए ये सभी मिल कर ऐसा सत्ता प्रतिष्ठान बनाते हैं जिसमें समय-समय पर कारपोरेटन्यायपालिकाकार्यपालिकापुलिस-फौजबैंकिग आदि अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं. 

   गांधी ने बहुत पहलेबहुत गहराई से इसे पहचाना था. न्यायालय के बारे में उन्होंने कहा था कि निर्णायक घड़ी में यह अंतत: सत्ता प्रतिष्ठान के साथ जाएगा और इसलिए लोक को अपने अधिकार के संघर्ष में न्यायालय पर आधार नहीं रखना चाहिए. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अकेले गांधी ही थे कि जिन्होंने फासिज्म के खिलाफ लोकतंत्र का नाम ले कर युद्ध करने वाले मित्र राष्ट्रों से पूछा था कि भारत जैसे महादेश को गुलाम रखकर आप लोकतांत्रिक लड़ाई का नाम भी कैसे ले सकते हैं तब जवाब किसी तरफ से नहीं आया था और गांधी ने भारत छोड़ो’ आंदोलन का ऐसा बिगुल फूंका कि साम्राज्यवाद को भारत छोड़ कर निकलना पड़ा था. तब गांधी ने भी हम एक हैं’ का हाथ बढ़ाया था और  धर्म-जाति-भाषा-वर्ग आदि का भेद पार कर लोगों ने उनका हाथ थामा था. सामने आज़ादी खड़ी थी. 

   ऐसी एकता साधे बिना श्रीलंका को भी और हमें भी थामने वाला कोई नहीं होगा. ( 19.07.2022)   

                                                                                                                                     

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