Friday 29 January 2021

यह अमरीका : वह अमरीका

                    राजनीतिक रूप से अत्यंत अप्रभावीसामाजिक रूप से बेहद विछिन्न और आर्थिक रूप से लड़खड़ाते अमरीका के 46 वें राष्ट्रपति बनने के बाद कैपिटल हिल की ऐतिहासिक सीढ़ियों पर खड़े हो कर जो बाइडेन ने जो कुछ कहा वह ऐतिहासिक महत्व का है. क्यों ? इसलिए कि अमरीका के इतिहास का ट्रंप-काल बीतने के बाद बाइडन को जो कुछ भी कहना था वह अपने अमरीका से ही कहना थाऔर ऐसे में वे जो भी कहते वह ऐतिहासिक ही हो सकता था. जब इतिहास अपने काले पन्ने पलटता है तब सामने खुला नया पन्ना अधिकांशत: उजला व चांदनी समान दिखाई देता है. इसलिए तब खूब तालियां बजीं जब बाइडेन के कहा कि यह अमरीका का दिन हैयह लोकतंत्र का दिन है. यह एकदम सामान्य-सा वाक्य था जो ऐतिहासिक लगने लगा क्योंकि पिछले पांच सालों से अमरीका ऐसे वाक्य सुनना और गुनना भूल ही गया था. यह वाक्य घायल अमरीकी मन पर मरहम की तरह लगा. उनके ही नहीं जिन्होंने बाइडेन को वोट दिया था बल्कि उनके लिए भी यह मरहम था जो पिछले पांच सालों से चुप थे याकि वह सब बोल रहे थे जो उन्हें बोलना नहीं थाजिसका मतलब भी वे नहीं जानते थे. जिन लोगों को उन्मत्त कर ट्रंप ने अमरीकी संसद में घुसा दिया था और जिन्हें लगा था कि एक दिन की इस बादशाहत का मजा लूट लें उन्हें भी नई हवा में सांस लेने का संतोष मिल रहा होगा. लोकतंत्र है ही ऐसी दोधारी तलवार जो कलुष को काटती हैशुभ को चालना देती है. यह अलग बात है कि तमाम दुनिया में लोकतंत्र की आत्मा पर सत्ता के भूख की ऐसी गर्द पड़ी है कि वह खुली सांस नहीं ले पा रहा है. तंत्र ने उसका गला दबोच रखा है.   

         हम पहले से जानते थे कि जो बाइडेन ‘अपने राष्ट्रपति’ बराक ओबाका की तरह मंत्रमुग्ध कर देने वाले वक्ता नहीं हैंन वे उस दर्जे के बौद्धिक हैं. वे एक मेहनती राजनेता हैं जो कई कोशिशों के बाद अमरीकी राष्ट्रपति का मुकाम छू पाया हैवह भी शायद इसलिए कि अमरीका को ट्रंप से मुक्ति चाहिए थी. इतिहास ने इस भूमिका के लिए बाइडेन का कंधा चुना. ट्रंप का पूरा काल एक शैतान आत्मा का शापित काल रहा. उन्होंने एक प्रबुद्ध राष्ट्र के रूप में अमरीका की जैसी किरकिरी करवाई वैसा उदाहरण अमरीका के इतिहास में दूसरा नहीं है. तो दूसरा कोई राष्ट्रपति भी तो नहीं है जिस पर दो-दो बार माहाभियोग का मामला चलाया गया हो. ट्रंप बौद्धिक रूप से इतने सक्षम थे ही नहीं कि यह समझ सकें कि जैसे हर राष्ट्रपति का अधिकार होता है कि वह अपनी तरह से अपने देश की नीतियां बनाए वैसे ही उस पर यह स्वाभाविक व पदसिद्ध जिम्मेवारी भी होती है कि वे अपने देश की सांस्कृतिक विरासत व राजनीति शील का पालन करेउसे समुन्नत करे. इन दोनों को समझने व उनका रक्षण करने में विफल कितने ही महानुभाव हमें इतिहास के कूड़ाघर में मिलते हैं. डंपिंग ग्राउंड केवल नगरपालिकाओं के पास नहीं होता हैइतिहास के पास भी होता है. 

         बाइडेन ने दुनिया से कुछ भी नहीं कहा. यह उनके शपथ-ग्रहण भाषण का सबसे विवेकपूर्ण हिस्सा था. इसके लिए अमरीका को भारतीय मूल के विनय रेड्डी और उनकी टीम को धन्यवाद देना चाहिए जो ओबामा से बाइडेन-कमला हैरिस तक के भाषणों का खाका बनाते रहे हैं. शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद राष्ट्र को संबोधित करने की यह परंपरा अमरीका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंग्टन ने 30 अप्रैल 1789 को शुरू की थी और ‘स्वतंत्रता की पवित्र अग्नि’ की सौगंध खाकर ‘एक नई व आजादख्याल सरकार’ का वादा किया था. अपने दूसरे कार्यकाल में उन्होंने राष्ट्रपतियों द्वारा दिया गया अब तक का सबसे छोटा भाषण दिया था - मात्र 135 शब्दों का. सबसे लंबा उद्घाटन भाषण राष्ट्रपति वीलियम हेनरी हैरिसन ने दिया था - 8455 शब्दों का दो घंटे चला भाषण. यह राजनीतिक परंपरा आज अमरीका की सांस्कृतिक परंपरा में बदल गई है. अमरीका आज भी याद करता है राष्ट्रपति केनेडी का वह भाषण जब उन्होंने अमरीका की आत्मा को छूते हुए कहा था : “ मेरे अमरीकन साथियोयह मत पूछिए कि अमरीका आपके लिए क्या करेगा बल्कि यह बताइए कि आप अमरीका के लिए क्या करेंगे?” 1933 में भयंकर आर्थिक मंदी में डूबे अमरीका से राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने कहा था : “ आज हमें एक ही चीज से भयभीत रहना चाहिए और वह है भय !” 1861 में गृहयुद्ध से जर्जर अमरीका से कहा था राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने : “ मेरे असंतुष्ट देशवासियोमेरी एक ही इल्तजा है आपसे कि दोस्त बनिएदुश्मन नहीं !” 2009 में ओबामा ने अपने अमरीका से कहा था : “ यह नई जिम्मेवारियों को कबूल करने का दौर है - हमें अपने प्रति अपना कर्तव्य निभाना हैदेश और दुनिया के प्रति अपना कर्तव्य निभाना है और यह सब नाक-भौं सिकोड़ते हुए नहीं बल्कि आल्हादित हो कर करना है.” यह सब दूसरा कुछ नहींराष्ट्र-मन को छूने और उसे उद्दात्त बनाने की कोशिश है. बाइडेन जब कहते हैं कि हम एक महान राष्ट्र हैंहम अच्छे लोग हैं तब वे अमरीका के मन को ट्रंप के दौर की संकीर्णता से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं. जब उन्होंने कहा कि मैं सभी अमरीकियों का राष्ट्रपति हूं- सारे अमरीकियों काहमें एक-दूसरे की इज्जत करनी होगी और यह सावधानी रखनी होगी कि सियासत ऐसी आग न बन जाए जो सबको जलाकर राख कर दे तो वे गहरे बंटे हुए अपने समाज के बीच पुल भी बना रहे थे और अमरीकियों को सत्ता व राजनीति की मर्यादा भी समझा रहे थे. उन्होंने अमरीकी सीमा के बाहर के लोगों से यानी दुनिया से सिर्फ इतना ही कहा कि हमें भविष्य की चुनौतियों से ही नहींआज की चुनौतियों से भी निबटना है. ट्रंप ने आज को ही तो इतना विद्रूप कर दिया है कि भविष्य की बातों का बहुत संदर्भ नहीं रह गया है. 

         बाइडेन के इस सामान्य भाषण में असामान्य था अनुभव की लकीरों से भरे उनके आयुवृद्ध चेहरे से झलकती ईमानदारी. वे जो कह रहे थे मन से कह रहे थे और अपने मन को अमरीका का मन बनाना चाहते थे. वहां शांतिधीरज व जिम्मेवारी के अहसास से भरा माहौल था. उन्होंने गलती से भी ट्रंप का नाम नहीं लिया जैसे उस पूरे दौर को पोंछ डालना चाहते हों. चुनावी उथलापनखोखली बयानबाजीअपनी पीठ ठोकने और अपना सीना दिखाने की कोई छिछोरी हरकत उन्होंने नहीं की. यह सब हमारे यहां से कितना अलग था ! गीत-संगीत व संस्कृति का मोहक मेल था लेकिन कहीं चापलूसी और क्षुद्रता का लेश भी नहीं था. यह एक अच्छी शुरुआत थी. लेकिन बाइडेन न भूल सकते हैं न अमरीका उन्हें भूलने देगा कि भाषण का मंच समेटा जा चुका है. अब वे हैं और कठोर सच्चाइयों के सामने खुला उनका सीना है. इनका मुकाबला वे कैसे करते हैं और अमरीका का मानवीय चेहरा दीपित करते हैंयह हम भी और दुनिया भी देखना चाहती है. हम भी बाइडेन की आवाज में आवाज मिला कर कहते हैं : ईश्वर हमें राह दिखाए और हमारे लोगों को बचाए. ( 20.01.2021)

 

No comments:

Post a Comment