Saturday, 19 February 2022

लता मंगेशकर - भारत की आत्मा की आवाज

    नये साल ने आने की बड़ी कीमत ली है - लता मंगेशकर को ही मांग लिया है. हम खाली भी हो गए हैंहतप्रभ भी और किसी हद तक अवाक भी ! वे 92 साल की थीं और पिछले कुछ वर्षों से नहीं-सी थीं. 

   वे थीं क्या फिल्मों की पार्श्वगायिका ! फिर इतना शोक क्यों है कि कोई भी सहज नहीं रह  पा रहा है इतना शोर क्यों हइतना गहन क्या घटा है कि हम भी और पाकिस्तान भीऔर बांग्लादेश भीऔर जहां-जहां कानसेन हैं वहां-वहां अफसोस का सन्नाटा पसरा है ?  यह रहस्य कभी सुलझेगा नहींक्योंकि कला ऐसे ही सार्वजनिक रहस्य का नाम है. न पिकासो केगुएर्निका का रहस्य हम सुलझा सकेंगेन विंसी की मोनालीसा कान नंदलाल बोस के गांधी कान लता मंगेशकर का.  

   लता के बारे में हम जो कुछ भी कह-लिख रहे हैंवह पर्याप्त नहीं हो रहा है. लगता है कि कुछ ऐसा था जो हम कह-लिख-समझ कर भी न लिख पा रहे हैंन कह पा रहे हैं और न समझ पारहे हैं. दिनकर’ ने गांधी पर लिखी अपनी कविता में लिखा है : कितना कुछ कहूं/ मगर कहने को शेष बहुत रह जाता है. ऐसा ही आज लता के लिए भी सच में महसूस हो रहा है. 

   13 साल की उम्र से जिस लड़की ने हमारे मन को छूना शुरू किया थाउसने कब हमारा मन गढ़ना शुरू कर दियापता ही नहीं चला. सितार के हर तार को झंकृत करने से रविशंकर जैसीलहर पैदा करते थे लताजी ने वैसे ही हमारे मन-प्राणों के हर तार को झंकृत कर हमें संपूर्ण किया. हमारे राग-विरागहर्ष-शोकचंचलता-गांभीर्यभक्ति-समर्पणईर्ष्या-द्वेष सबको आवाज सेजैसा आकार दिया उन्होंने वैसा कोई दूसरा नहीं कर सका. इसमें जादू उनकी गायकी भर का नहीं था बल्कि उस पूरे वक्त का भी था जहां से उनके बनने का भी और आजाद भारत को बनाने कासफर भी शुरू हुआ था. वे स्वतंत्र देश की पहली स्वतंत्र आवाज थीं. 

   हमने जैसी रक्तरंजित आजादी पाईवह तो अकल्पनीय थी. हमें खून में लिथड़ाटूटा हुआ देश मिला. देश मिला लेकिन गांधी नहीं मिले. देश मिला लेकिन सहगलनूरजहां जैसे कितनों कासाथ छूटा. आसमान से जैसे धरती पर गिरे हमकि आसमान ही धरती पर गिरा ! बिखर जानेघुटनों के बल बैठ जाने का खतरा सामने था. लेकिन जवाहरलाल ने अपने राजनीतिक साथियोंकोदेश की हर प्रतिभा को समेट करउस तमाम तिमिर को काटते हुए भारत को गढ़ने की जो उमंग जगाईभारतीय मन को झकझोर कर नया बनाने की जैसी हवा बहाईआज उसको आंकनाहमारे लिए कठिन हैक्योंकि इतिहास हम पढ़ तो सकते हैंउसमें लौट नहीं सकते. वास्तविकता की कठोर जमीन पर पांव धर कर आसमान को छूने व उसे भारत की धरती पर उतारने का वह दौरथा और तभी लता ने अपनी आवाज खोली थी. कला स्वतंत्र तो होती है लेकिन देश-काल की गूंज उसे भी गढ़ती व संवारती है. इसलिए तो कहते हैं कि कला की अपनी आंख भी होती हैकान भी और हृदय भी. लता की आवाज ने इन तीनों को एक कर दिया.  

   वह खास तौर पर हिंदी फिल्मों की दुनिया का स्वर्णकाल था- 1940-60. यह आजाद भारत का भी स्वर्णकाल था. धर्म-जाति-प्रांत-भाषा जैसी सारी दीवारों को गिराता हुआ यह भारतसर उठा रहा था. जैसे प्रतिभा के सागर में सारी हस्तियां खुद को उड़ेल रही थीं. देश बन रहा था. वह दिलीप-राज-देव-मीना कुमारी-नर्गिस-मधुबाला-नूतन-वहीदा का काल थावह लता-रफी-मुकेश-तलत-मन्नाडे-हेमंत कुमार से चलता हुआ किशोर कुमार का काल थावह प्रदीप-साहिर-शैलेंद्र-शकील-कैफी का काल थावह नौशाद-सचिनदेव बर्मन-मदन मोहन-शंकर-जयकिशन-रवि-खैय्याम का काल थावह विमल राय-महबूब-के.आसिफ-राज कपूर का काल था. सभी आजाद देश में अपना आजाद मुकाम खोज रहे थे. इसलिए सब अपना सर्वोत्तम ले कर आ रहे थे. लता का जाना सर्वोत्तम की उस दीवानगी का जाना हैउसकी स्मृति का पुंछ जाना है.  

   साहिर की कलम से निकले फिल्मी मुहावरों से अनजान गीत की धुन बनानाउसे किसी दिलीप या मीना कुमारी के लिए गाना जितनी बड़ी चुनौती थीउतनी ही बड़ी चुनौती थी किसीनर्गिस या नूतन के लिए लता की आवाज को साकार करना. सभी जानते थे कि कहीं कम पड़े तो फजीहत होगी. लता की खास ताकत थी शास्त्रीय गायनजिसकी जमीन मराठी कला-संसार कीमशहूर हस्ती उनके संगीतकार पिता दीनानाथ मंगेशकर ने ही तैयार कर दी थी भले वह तैयारी कभी पूर्णता तक नहीं पहुंच सकी. 13 साल की लड़की जब परिवार के लिए रोटी जुटाने उतरी तो वहसाधना अधूरी ही रह गई जैसे शताब्दियों पुरानी गुलामी की मानसिकता से छूटने की कोशिश करता हुआ नवजात देश भी अधूरा ही छूटता गया. लेकिन लता ने जो पूंजी थी उनके पासउसे इतनामांजा कि वह अपनी जगह पर सौ टंच सोना बन गया. मैंने अमीर खान साहब के गायन मेंउनके करीब बैठी लता को देखा है जो जैसे सब कुछ घोल कर पी रही हों. मैंने देखा है उनकी हथेली कोअपनी आंखों से लगा कर लंबे समय तक सांस भरती लता को. यह वह खाद-पानी था जिससे लता ने खुद को सींचा था. इस कदर सींचा था कि बड़े गुलाम अली खान साहब ने नेह बरसातेहुए कहा था : “ जबसे इन लड़की का यमन कान में पड़ा हैमैं अपना वाला यमन भूल गया हूं !… कमबख्त कभी बेसुरी ही नहीं होती !!”  फिल्मी बाजार में ऐसी साधना कम ही की जाती है.

   एकाग्रतापवित्रतामाधुर्य और सादगी के मेल से लता की वह हस्ती बनी थी जो कुछ भी नकली या घटिया नहीं गाती थी. इसलिए संगीतकार हों कि अभिनेत्रियां सब दांत भींच कर लताके साथ काम करते थे. उस आवाज व उसकी नजाकत से बराबरी करने की चुनौती आसान नहीं होती थी. और इन तीनों के मेल से छन कर जो हमारे पास पहुंचता था वह कभी अल्ला तेरोनामईश्वर तेरो नाम बन जाता थाकभी दिल हूम हूम करेघबराएकभी फैली हुई हैं सपनों की बाहेंकभी प्यार किया तो डरना क्याकभी आज फिर जीने की तमन्ना है बन जाता था. यह गानोंकी चुनी हुई सूची नहीं है क्योंकि वैसी कोशिश का अर्थ नहीं है. मानव-मन की कोई भी भावनाउमंगविकलता और वेदना व आकांक्षा ऐसी नहीं है जिसे लता ने साकार न किया हो. आपअपने भीतर उन सबकी गूंज सुनेंगे जब लता को सुनेंगे. बलिदान की उन्मत्तता नहीं पवित्रतापछतावा नहीं विकलताऔर राष्ट्रभक्ति का उन्माद नहीं निखालिस राष्ट्रीयता का जैसा गान प्रदीपजीने ऐ मेरे वतन के लोगो में लिखालता ने उसे आंसुओं का हार पहना कर हमारे सामने धर दिया. वह पराजय का शोक नहींसंकल्प व एकता का गान बन गया. लता की गायकी का यहजादू उनके उन गीतों से भी छलकता है जो फिल्मों से बाहर के हैं. 18 भाषाओं में गाए हजारों गानों का उनका संसार हमें वैसे ही तप्रोत करता जाता है जैसे घनघोर बारिश में आप खुद जाकर आसमान के नीचे खड़े हो जाएं. 

   वे नहीं हैंऔर जैसा मैंने शुरू में लिखावे काफी वर्षों से नहीं थीं. लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ कि वे नहीं थींकभी ऐसा नहीं होगा कि वे नहीं होंगी ! वे भारत की आत्मा की आवाजथीं. भारत कभी गूंगा या बहरा नहीं होगा. ( 10.02.2022) 

 

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