Saturday 29 May 2021

काबे किस मुंह से जाओगे गालिब…

  

कोरोना सबकी कलई खोलता जा रहा है. 

हमारे शायर कृष्ण बिहारी नूर ने कहा है : सच घटे या बढ़े तो सच ना रहे/ झूठ की कोई इंतहा ही नहीं. कोरोना इसे सही साबित करने में लगा है. 

कोई है जो दस नहीं हजार मुख से चीख-चीख कर कह रहा है कि न अस्पतालों की कमी हैन बिस्तरों कीन वैक्सीन कहीं अनुपलब्ध हैन कहीं डॉक्टरों-नर्सों की कमी है. वह बार-बार कहरहा है कि ऑक्सीजन तो जितनी चाहो उतनी उपलब्ध है. दूसरी तरफ राज्य हैं कि जो कभी चीख करकभी याचक स्वर में कह रहे हैं कि हमारे पास कुछ भी बचा नहीं है. हमें वैक्सीन दोहमेंऑक्सीजन दोहमें बिस्तर और वेंटीलेटर लगाने-बढ़ाने के लिए संसाधन दो. हमारे लोग मर रहे हैं. लेकिन वह आवाज एक स्वर सेएक ही बात कह रही है : देश में कहीं कोई कमी नहीं. जिनराज्यों में कमल नहीं खिलता हैवे ही राज्य सारा माहौल खराब कर रहे हैं. 

हमारा शायर बेचारा कह रहा हैकहता जा रहा है  : झूठ की कोई इंतहा ही नहीं ! 

उच्च न्यायालय गुस्से में कह रहे हैं : लोग मर रहे हैं और आपकी नींद ही नहीं खुल रही है ! चाहे जैसे भी हो - छीन कर लाओ कि चुरा कर लाओ कि मांग कर लाओ लेकिनऑक्सीजन लाओवैक्सीन लाओ. यह तुम्हारा काम हैतुम करो. 

सर्वोच्च न्यायालय कह रहा है : यह राष्ट्रीय संकटकाल है. सब कुछ रोक दीजिए. बस एक ही काम:  लोगों का समुचित इलाज ! जान बचाई जाए. कारखानों व दूसरे कामों में ऑक्सीजनकी एक बूंद भी इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगा दीजिए. सारे संसाधन अस्पतालों को मुहैया कराइए. 

क्या इससे पहले भी इनमें से किसी ने ऐसा कहा था ?  

जिस प्रधानमंत्री ने रातो-रात लॉकडाउन लगा कर सारे देश की सांस बंद कर दी थी और अपनी पीठ थपथपा कहता ही रहा था कि समय पर लॉकडाउन लगा कर मैंने सारे देश को बचालिया वही प्रधानमंत्री अब कह रहा है कि तब लॉकडाउन इसलिए लगाया था कि हमारी तैयारी नहीं थीसंसाधन नहीं थेइस बीमारी का कोई इलाज पता नहीं था. हमने सब की सांस इसलिएबंद कर दी थी ताकि हमें सांस लेने का मौका मिलेताकि हम तैयारी पूरी कर सकें. वे कह रहे हैं कि आज ऐसा नहीं है. अब हम लॉकडाउन नहीं करेंगे.  राज्यों को भी इसे एकदम आखिरीविकल्प मानना चाहिएक्योंकि आज हम सारे संसाधनों के साथ तैयार भी हैं और हमें इस कोविड का इलाज भी पता है. 

देश अपनी टूटती सांसें संभालता हुआ कह रहा है : मैं तो तब भी सांस नहीं ले पा रहा थाअब भी नहीं ले पा रहा हूं. मेरे लोग तब भी बेहिसाब बीमार पड़ेतड़प रहे थेमर रहे थेआज भीतब से ज्यादा बीमार हैंतड़प रहे हैंमर रहे हैं. तुम लाशें गिन सकते होलाशें छिपा सकते हो लेकिन मेरा दर्द नापने वाला ऑक्सीमीटर बना ही कहां है ! 

जवाब में आंकड़े पेश किए जा रहे हैं : जंबो कोविड सेंटर यहां भी बन गया हैवहां भी बन गया है.  इतने बेड तैयार हैंइतने अगले माह तक तैयार हो जाएंगे. ऑक्सीजन प्लांट अपनीपूरी क्षमता से काम कर रहे हैं. वैक्सीन में तो हम सारी दुनिया में अव्वल हैं - विश्वगुरू ! वैक्सीन बर्बाद न होने दीजिएऑक्सीजन बर्बाद न कीजिए !  प्रधानमंत्री रात-दिन बैठकें कर रहे हैं. देश कीसबसे अ-सरकार सरकार राजधानी दिल्ली की है जिसका मुखिया नौजवानों से कह रहा है : हमने दिल्ली के अस्पताल चौबीस घंटे आपके लिए खोल दिए हैं. मुफ्त वैक्सीन लगाई जा रही है. आपघर से बाहर मत निकलिए तो कोई खतरा नहीं है. हम तब भी जीते थेअब भी जीतेंगे. वे कोविड से जीतने की बात कर रहे थेमुझे सुनाई दे रहा था - चुनाव !    

शायर गा रहा है : झूठ की कोई इंतहा ही नहीं ! 

विश्व स्वास्थ्य संगठन कह रहा है : हमने फरवरी में ही भारत सरकार को आगाह किया था कि यूरोप आदि में जैसा दिखाई दे रहा हैकोविड का वैसा ही विकराल स्वरूप आपके यहां भीलौटेगा. इसलिए अपने ऑक्सीजन का उत्पादन जितना बढ़ा सकेंबढ़ाइए. किसी के कान पर तब जूं क्यों नहीं रेंगी अखबारों में यह खबर सुर्खी क्यों नहीं बनी ?

पहले लॉकडाउन से इस लॉकडाउन के बीच ( आपको अंदाजा न हो शायद कि कोई 15 राज्यों में लॉकडाउन लगाया जा चुका है- हांउसका नाम बदल दिया गया है !) स्वास्थ्य सेवा मेंक्या-क्या सुधार किया गया हैकिस क्षेत्र में क्या-क्या क्षमता बढ़ाई गई हैकोई तो बताए ! अस्पताल में जब भी एक मरीज दाखिल होता है तो वह अपने साथ एक डॉक्टरएक नर्सएक निपुणजांचकर्ताऑक्सीजनवेंटिलेटर विशेषज्ञ से ले कर कितने ही स्वास्थ्यकर्मी की मांग करता हुआ दाखिल होता है. कोई तो बताए कि उस लॉकडाउन से इस लॉकडाउन के बीच इनकी संख्या मेंकितनी वृद्धि हुई ?

 कोई हमें यह न बताए कि डॉक्टरनर्सविशेषज्ञ आदि एक-दो-दस दिन में तैयार नहीं किए जा सकते. जब आपातकाल सामने होता है तब तर्क से अधिक संकल्प व ईमानदारी की याईमानदार संकल्प की जरूरत होती हैजुमलेबाजी की नहीं. किया यह जा सकता था कि कैसे उन सब डॉक्टरों कोजो समर्थ हैं लेकिन कानूनन रिटायर हो गए हैंवे जो नौकरी के अभाव मेंआजीविका के लिए प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे हैंवे जो फौजी स्वास्थ्य सेवाओं से निकले हैंवे जो डॉक्टरी के अंतिम वर्षों में पहुंचे हैं,  वे जो अलग-अलग पैथियों में इलाज करते हैं उन सबकोकोविड के खिलाफ सिपाही बना कर उतारने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाता. उनकी आर्थिक व्यवस्था की जाती और उन्हें चरमराते अस्पतालों मेंसमझ से कोरे घरों में फैला दियाजाता कि वे लड़ाई में देश की मदद करें. संक्रमण को परास्त करने का युद्ध तो छेड़ा जाता! लेकिन माहौल तो एक ही बनाया गया कि कहां चुनाव जीतना हैकहां कैसी संकीर्णता फैलानी हैकहांकौन-सा यज्ञ-अनुष्ठान आयोजित करवाना है. सत्ता जब ऐसा माहौल बनाती हैतब सारे सत्ताकांक्षी उसके पीछे-पीछे दौड़ते हैं. इसलिए नेताओं में कोई फर्क बचा है कहीं 

  हमें अपनी अदालतों से पूछना चाहिए कि आपने अपनी तरफ से संज्ञान ले कर कभी वह सब क्यों नहीं कहा जो अब कह रहे हैं आपने तो अदालतों को ही लॉकडाउन में रख दिया!  संविधान में लिखा है कहीं कि न्यायालय अपनी संवैधानिक दायित्वों से भी मुंह मोड़ ले सकते हैं आपातकाल में न्यायपालिका पर यही दाग तो लगा था जो आज भी दहकता है ! और चुनावआयोग से क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि क्या उसे कोविड का घनेरा दिखाई ही नहीं दे रहा था कि उसने चुनावों का ऐसा भारी-भरकम,लंबा आयोजन किया सत्ता की बेलगाम भूख को नियंत्रितकरने के लिए ही तो हमने चुनाव आयोग का सफेद हाथी  पाला है.  किसी गृहमंत्री ने ऐसी लंगड़ी दलील दी कि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि चुनाव से बचा जा सके. कितना बड़ापाखंड है यह ! चुनाव से बचने की अलोकतांत्रिक भ्रष्ट मानसिकता और अभूतपूर्व महामारी से देश को बचाने की संवैधानिक व्यवस्था में फर्क करने की तमीज नहीं है हमें हमारी न्यायपालिकाऔर चुनाव आयोग बताए कि क्या हमारा संविधान इतना बांझ है कि वह आपातकाल में रास्ते नहीं बताता है चुनाव आयोग कभी देश से यह कहने एक बार भी सामने आया  किकोविड का यह अंधेरा चुनाव के उपयुक्त नहीं है ?  सब दूर से आती किसी धुन पर नाच रहे हैं. सामान्य समझ व संवेदना का ऐसा असामान्य लॉकडाउन देश कैसे झेलेगा मर कर ही न ! वही वह कर रहा है. 

काबे किस मुंह से जाओगे गालिब/ शर्म तुमको मगर नहीं आती ! ( 23.04.2021) 

 

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