Saturday 11 March 2017

सबको अाईना दिखाने वाला नतीजा



पिछले लोकसभा चुनाव के परिणामों ने जो नहीं किया, दिल्ली अौर बिहार के चुनाव परिणामों ने जो नहीं किया, उत्तरप्रदेश, पंजाब, मणिपुर, गोवा अौर उत्तराखंड के अाज ही अाए चुनावों परिणामों ने वह कर दिया. लोकसभा के चुनाव परिणाम ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ला बिठाया तो दिल्ली अौर बिहार के चुनाव परिणाम ने उन्हें इन राज्यों की कुर्सियों से दूर कर दिया. दिल्ली अरविंद केजरीवाल के करिश्मे के नाम कर दी गई अौर बिहार को नीतीश कुमार-लालू यादव के महागठबंधन के नाम कर दिया गया. अभी पांच राज्यों के जैसे परिणाम अाए हैं, उन्हें अाप किसके नाम करेंगे ? स्वाभाविक है कि भारतीय जनता पार्टी एक अावाज में इसे नरेंद्र मोदी के नाम करेगी; अौर यहां-वहां, दबी जबान से अमित शाह को भी श्रेय दिया जाएगा जबकि उनकी कारगुजारी बुलंब अावाज में बोलने लायक रही है. लेकिन जो भी, जहां भी ऐसा करेगा, उसे वहीं पंजाब, मणिपुर अौर गोवा के परिणामों से अांख चुरानी पड़ेगी. कोई भी पूछ लेगा कि क्या भारतीय जनता पार्टी ने यह स्वीकार कर लिया कि इन राज्यों में नरेंद्र मोदी का जादू चला ही नहीं ? ऐसे किसी जादूगर का खेल देखने जाना अाप चाहेंगे जो कभी तीर तो कभी तुक्का चलाता हो; कि जिसने रुमाल से कभी खरगोश निकलता हो अौर कभी कौआ ?  पंजाब, गोवा, मणिपुर की जीत का ताज कांग्रेसी यदि राहुल गांधी को पहनाना चाहेंगे तो उन्हें कबूल करना होगा कि उत्तरप्रदेश, जिसकी खिड़की से पूरा नेहरू-खानदान राजनीति में अाता है, उत्तराखंड, जिसे हरीश रावत ने जीत से पहले ही जीता हुअा करार दिया था, वहां राहुल गांधी किसी खेत की मूली भर हैसियत नहीं रखते हैं. अौर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी तथा अाम अादमी पार्टी के बारे में भी कुछ तो कहना पड़ेगा क्योंकि ये तीनों अपने बारे में अौर हम इनके बारे में बहुत कुछ कहते रहे हैं. 
अाप किसी भी एक पार्टी या व्यक्ति का नाम ले कर इन परिणामों को समझ नहीं सकते हैं, तो  मुझे लगता है कि यहीं इन परिणामों का असली मतलब छुपा हुअा है. यह किसी के करिश्मे से नहीं हुअा है. जहां तक संसाधनों को झोंकने का सवाल था, किसी भी दल ने कुछ भी उठा नहीं रखा था. किसी भी पार्टी के किसी भी नामचीन नेता ने मेहनत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. चुनावी राजनीति अब पूरी तरह दैनिक मजदूरों के बल पर चलती व चलाई जाती है. कार्यकर्ताअों वाली संस्कृति अपनी अंतिम सांसें गिन रही है. इसमें भारतीय जनता पार्टी दूसरों की तुलना में कुछ फायदे में रहती है क्योंकि उसके पास विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी जैसे-जैसे नामों वाली ताकतें है जो चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के लिए कुछ काम करती हैं. दैनिक मजदूरी वाली शैली सबको रास अाती है क्योंकि इसमें पैसे के अलावा कुछ भी लगाना नहीं पड़ता है, अौर अापका मजदूर अापसे राजनीतिक सवाल या राजनीतिक अवसर की मांग भी नहीं करता है. इसमें दोनों तरफ से पैसा ही काम करने अौर परिणाम पाने का अाधार होता है. 
अगर मेरी इन बातों में अापको सार नजर अाता हो तो हम अागे चलते हैं अौर इन परिणामों को समझने की कोशिश करते हैं. उत्तरप्रदेश में जाति अौर सांप्रदायिकता के पत्ते किसने नहीं खेले ? भारतीय जनता पार्टी ने सांप्रदायिकता का तो समाजवादी अौर बहुजन समाज ने जातीयता का पत्ता खुल कर खेला. चुनाव अायोग अौर न्यायपालिका ने यदि अपनी संवैधानिक नैतिक जिम्मेवारियों का पालन करने में उदासीनता न की होती तो उत्तरप्रदेश का चुनाव कदम-कदम पर रोका जाना चाहिए था. वहां चुनाव हो ही नहीं पाता अौर चुनाव अायोग अपनी फिसलती साख को थाम सकता था. लेकिन उसने वैसा नहीं किया. अदालत ने चुनाव में धर्म के इस्तेमाल पर रोक लगाई थी लेकिन वाराणसी में प्रधानमंत्री ने खुद मंदिरों अौर मठों का जैसा राजनीतिक इस्तेमाल किया, उस पर न्यायपालिका को अापत्ति ही नहीं उठानी चाहिए थी बल्कि उस पर रोक लगाने का अादेश जारी करना चाहिए था. ऐसा होता तो राहुल-अखिलेश का नवीनतम जोड़ा भी अपने कदम वापस खींचता. लेकिन वह नहीं हुअा.
लेकिन यह हुअा कि भारतीय जनता पार्टी को चुनाव के नये मुद्दे तलाशने पड़े. उसने विकास का सिक्का चलाना चाहा लेकिन वह तो सभी ने चलाया. भाजपा ने चलाया पिछली सरकारों के भ्रष्टाचार का सवाल अौर मुलायम-मायावती के भाई-भतीजावाद का सवाल. उसने सामाजिक असुरक्षा अौर गुंडाराज का सवाल उठाया. उसने गरीबों से जुड़े सवाल भी उठाए अौर नोटबंदी की मूर्खता को अमीरों पर हमले का जामा पहनाने में  सफल हुई. यह तेवर उतना ही खोखला व नकली है जितना इंदिरा गांधी का गरीबी हटाअो का तेवर था. लेकिन वह नारा भी जनमानस में काम कर गया अौर यह नारा भी. भारतीय जनता पार्टी जिन जातियों के लिए अपने दरवाजे नहीं खोलती थी, उसने उनके लिए अपनी कुर्सियां खाली कर दीं. उसने मुसलमानों को एक भी टिकट नहीं दिया, यह बात सही है लेकिन उसने मुसलमानों को निशाने पर नहीं लिया, देशद्रोह को अागे रखा. मैं अापसे कहना चाहता हूं कि यह नई भारतीय जनता पार्टी है जिसे चुनाव ने खासा घिस दिया है. इस नई पार्टी ने अखिलेश-मुलायम खानदान से अौर मायावती के कुनबे से उनके मुहावरे छीन लिए हैं. मुलायम अपने बेटे से चाहे जितने नाराज रहे हों अगर उन्हें जीत-गंध कहीं से भी मिलती होती तो वे चुनाव-प्रचार में कूदते जरूर लेकिन उनके पास उनकी पुरानी राजनीति के जो मुहावरे थे उनके बारे में वे समझ चुके थे कि ये रंग नहीं पकड़ रहे. इसलिए गुस्से का कंबल अोढ़ कर वे बेटे का खेल देखते रहे. बेटे ने पिता को हरा कर मोदी को हराने का भ्रम पाल लिया. लगातार चुनावी विफलताअों ने राहुल गांधी का अात्मविश्वास खा लिया है. इसलिए वे अखिलेश के सफरमैना बन गए, अपना कोई व्यक्तित्व नहीं बनाया. मायावती ने सामंती राजनीति की अपना वही शैली बरकरार रखी जो पिछले चुनावं में लगातार पिटती रही है - सारे देश में. वे करतीं भी क्या ?  दलित राजनीति का ऐसा निजी इस्तेमाल किया है उन्होंने कि अब उनके पास अपने अलावा कुछ बचा ही नहीं है. 
भारतीय जनता पार्टी उन सभी राज्यों में पिटी जहां वह सत्ता में थी. अकालियों के साथ मिली सत्ता हो या गोवा की छुल्लक राजनीति में अापादमस्तक डूबी सत्ता, वह नया कुछ नहीं कर सकी इसलिए नया कुछ हासिल भी नहीं कर सकी. पंजाब की जीत को कांग्रेस अपनी जीत मानेगी तो यह जीती बाजी भी हार जाएगी. अकाली-भाजपा की खुदगर्ज राजनीति की ऊब से छूटने की बेचैनी में यह जीत कैप्टेन साहब के हाथ लगी है. राहुल का इसमें धेला भर भी हाथ नहीं है. अब कैप्टेन के सामने समस्या बहुत बड़ी खड़ी होगी - क्या वे पंजाब को उससे अलग व नया कुछ दे सकते हैं जो अकाली-भाजपा दे रहे थे ? यह घी बांटने से बहुत अलग व गहरा काम है. 
ये चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि भारतीय मतदाता कुछ नया खोज रहा है. सभी दलों को पुराने कपड़े उतारने पड़ रहे हैं. यह नवाचार व नवसंस्करण का दौर है. उत्तरप्रदेश की जीत की चमक तुरंत खो जाएगी अगर भारतीय जनता पार्टी की सरकार रूटीन कामों में लग गई. यह चुनाव परिणाम बता रहा है कि चुनाव में उतरा देश का युवा मतदाता बहुत कुछ चाहता है लेकिन नया अौर परिणामकारी चाहता है. यह भारतीय राजनीति की अांखें खोलने का काल है. यह मतदाता की जीत है. इसलिए यह बहुत जरूरी है अौर भारतीय लोकतंत्र में भारत का विश्वास बनाए रखने का एकमात्र उपाय है कि जो जहां जीता है वहां मेहनत से ईमानदारी का काम करे. यह दलीय लोकतंत्र ही अाज कसौटी पर है. ( 11.03.2017) 

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