Wednesday 21 March 2018

अापकी खामोशी !


             
         
उर्जित पटेल बोले ! … इस साल की सबसे बड़ी सुर्खी !!…उत्तरप्रदेश व बिहार के उप-चुनाव में ‘नशा’ जोड़ी की अात्ममुग्धता को जो ठोकर लगी है, उससे भी कहीं बड़ी खबर यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के मुंह में जबान है अौर वह काटती भी है. 
       
देश की बैंकिंग-व्यवस्था की यह सिरमौर संस्था ने कभी ऐसी अपमानजनक भूमिका स्वीकार नहीं की थी जैसी उर्जित पटेल ने इसे स्वीकार करने पर विवश कर दिया. यह चुप्पी अौर भी घुटन भरी इसलिए लग रही थी कि उर्जित पटेल ने उस जूते में पांव डाला था जिसे रघुराम राजन ने उतारा था. रघुराम कैसे अर्थशास्त्री या गवर्नर थे इस बारे में जुदा-जुदा राय हो सकती है लेकिन इस बारे में शायद ही कोई मतभेद हो कि अपने छोटे लेकिन अत्यंत नाजुक दौर की गवर्नरी में उन्होंने रिजर्व बैंक को एक अस्तित्व व हैसियत दिला दी थी. रघुराम राजन रिजर्व बैंक के टी.एन.शेषन थे. बैंकिंग अौर रिजर्व बैंक जैसी व्यवस्था को कभी समझने की जहमत न उठाने वाले अाम भारतीय के लिए भी रघुराम राजन का मतलब हो गया था.  

फिर अचानक ही वे बेमतलब हो गये ! हटाये गये. फिर हमने उर्जित पटेल का नाम सुना, अौर फिर हमने कुछ भी नहीं सुना. रघुराम राजन के जाते ही इस सरकार ने देश की अार्थिक व्यवस्था पर जैसे हमला ही बोल दिया. ऐसा लगा कि जैसे रिजर्व बैक अौर सरकार के बीच रघुराम किसी चट्टान की तरह थे कि जिसके हटते ही सब तलवार भांजने लगे. भारतीय बैंकिंग व्यवस्था को अपमानित करने का ऐसा दौर कभी देखा नहीं था जैसा उर्जित पटेल ने देखा व सहा. बैंकिंग व्यवस्था जैसे देशद्रोहियों का अड्डा घोषित कर दी गई अौर नोटबंदी कर उसकी सांस बंद कर दी गई. हर बैंक अौर बैंकिंग व्यवस्था से जुड़ा हर बड़ा-छोटा अादमी चोर, कालाबाजारी घोषित कर दिया गया अौर फिर उससे ही कहा गया कि वह खुद को ‘ जी हुजूर’ साबित करे. अौर उर्जित पटेल से ले कर नीचे तक सब यही साबित करने में लग गये. 

इतना ही नहीं हुअा, यह पूरी बैंकिंग व्यवस्था जिस खाताधारक की जेब के भरोसे चलती है उस खाताधारक को सरेअाम सारे देश में एक साथ सड़कों पर, चौराहों पर, गलियों में जिस तरह अपमानित किया गया, उसकी कोई मिसाल दुनिया में है या नहीं, मुझे नहीं मालूम. वह खाताधारक एक व्यक्ति की एक घोषणा के साथ, रातोरात चोर-कालाबाजारी-अार्थिक अपराधी-देशद्रोही बना कर सड़कों पर ठेल दिया गया. उसके ही पैसों पर पलने वाली सरकार ने उसे ही एक-एक पैसे के लिए मोहताज बना दिया. जलती धूप में गंदी नालियों के किनारे, सड़कों की धूल फांकते, घंटों भूखे-प्यासे एक पांव पर खड़े लोगों की वैसी कतारें शायद ही दुनिया में कभी, कहीं देखी गई होंगी. अौर ये वे लोग थे जिनका पैसा पसीने से पैदा होता है, सत्ता-संपत्ति-कुर्सी के पेड़ में फलता नहीं है. करोड़ों-करोड़ खाताधारक भिखमंगे बना दिए गये. सरकार की इस (कु)नीति से बैंकिंग व्यवस्था के किसी भी अधिकारी ने विरोध प्रकट किया ? क्या रिजर्व बैंक ने कभी यह सवाल उठाया कि भारतीय मुद्रा का नियमन उसका क्षेत्र है, तो सरकार ने उसे विश्वास में ले कर अौर उसे साथ में ले कर काम क्यों नहीं किया? इब्ने इंसा के किसी जासूसी उपन्यास के नायक की तरह बरत रहे प्रधानमंत्री को बैंकिंग व्यवस्था के लोगों ने अर्थ-तंत्र के मैदान में उतार लाने की कोशिश क्यों नहीं की, यह सवाल मैं पूछ नहीं रहा हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि कुर्सी के बहादुरों का बहादुरी से कैसा व कितना नाता होता है. मैं उर्जित पटेल से यह भी नहीं पूछ रहा हूं कि जब नोटबंदी की घोषणा से पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपने अौर अपनों के नोटों का इंतजाम किया-करवाया था, तब अापकी अावाज क्यों गुम थी ?  लेकिन यह पूछे बिना कोई कैसे रहे कि उस दौर में किसी ने क्यों नहीं बैंकों को इतना निर्देश दिया कि नोटबंदी के मारे लोगों के साथ इज्जत व सहानुभूति का व्यवहार हो; नोट जमा करवाने या बदलवाने के वक्त उन्हें सम्मानजनक जरूरी सुविधाएं की जाएं; नौकरशाही के फरमानों का शैतानी पालन न किया जाए अादि-अादि. सरकार ने उन्हें अपमानित किया तो बैंकिंग व्यवस्था ने उन्हें हर कदम पर जलील किया. 

उर्जित पटेल तब भी कुछ नहीं बोले. जब नोटबंदी की मियाद के बारे में, नोटों की उपलब्धता के बारे में, एटीएम मशीनों के नाम पर लोगों को पल-पल छला जा रहा था; उर्जित पटेल तब भी नहीं बोले जब लोगों को डराया जा रहा था; उर्जित पटेल तब भी कुछ नहीं बोले जब बैंकिंग व्यवस्था से जुड़े लोगों को कामचोर, चोर, भ्रष्ट अादि कहा जा रहा था; उर्जित पटेल तब भी नहीं बोले जब यह बात सड़कों तक फैल रही थी कि उनकी बैकिंग व्यवस्था के बड़े-छोटे लोग पुराने नोटों की अदला-बदली का नाजायज धंधा कर रहे हैं. उस पूरे दौर में देश में रिजर्व बैंक नाम की कोई संस्था है यह पता करना भी मुश्किल था अौर यह खोजना भी मुश्किल था कि उर्जित पटेल नाम का अादमी कहां है. 


अब उर्जित पटेल नरेंद्र मोदी के गुजरात की राजधानी गांधीनगर में, गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के समारोह में बोल रहे हैं कि जहां तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों का सवाल है रिजर्व बैंक की हैसियत इस कदर कमजोर कर दी गई है कि वह कोई प्रभावी भूमिका अदा ही नहीं कर सकता है. वे यह भी कह रहे हैं कि पंजाब नेशनल बैंक के नीरव मोदी अौर ‘अपने’ मोहित भाई जब सारा घपला कर रहे थे तब रिजर्व बैंक ने सरकार को सावधान किया था लेकिन उसने अनसुनी कर दी. उन्होंने वह तक कहा जिसे सरकार अपने खिलाफ बयान मान ले सकती है अौर जिसे एकजुट होता विपक्ष हथियार बना सकता है. लेकिन मैं दूसरी बात पूछूंगा : अगर रिजर्व बैंक को इतना अप्रभावी बना जा रहा था तब अापने क्या किया अौर क्या कहा ? अाप जिस पद पर थे अौर हैं, उर्जित बाबू, उसका तकाजा है कि रीढ़ की हड्डी सीधी रहे. रीढ़ सीधी हो तो हिम्मत अाप-से-अाप अा जाती है. यह वक्ती साहस टिकेगा नहीं उर्जित पटेल बाबू ! अगर रिजर्व बैंक अौर उसके गवर्नर को ऐसा लगा हो कि अब तक जो हुअा सो हुअा लेकिन अब अर्थ-तंत्र के मामले में वह अपनी जिम्मेवारी को प्रतिबद्धता से निभाएगा तब तो इस साहस का कोई मतलब है अन्यथा बातें हैं बातों का क्या !! ( 16.03.2018)

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