Sunday 25 August 2024

लड़की किसे चाहिए ?

             पूरा कोलकाता पहले गुस्से से लाल हुआ, फिर जल-भुन कर राख हुआ ! अस्पताल में ही नहीं, वह राख कोलकाता शहर में भी सब दूर फैली. जुलूस-धरना-प्रदर्शन चला तो लगातार चलता ही रहा. उसे भाजपा समेत विपक्षी दलों ने उकसाया-भड़काया जरूर लेकिन वह जल्दी ही कोलकाता के भद्रजनों के आक्रोश में बदल गया. ऐसा जब भी होता है, बंगाल से ज्यादा खतरनाक भद्रजन आपको खोजे नहीं मिलेंगे. ममता बनर्जी यह अच्छी तरह जानती हैं क्योंकि इसी भद्रजन के आक्रोश ने, उन्हें मार्क्सवादी साम्यवादियों का पुराना गढ़ तोड़ने में ऐसी मदद की थी कि वे तब से अब तक लगातार सत्ता में बनी हुई हैं. लेकिन सत्ता ऐसा नशा है एक जो जानते हुए भी आपको सच्चाई से अनजान बना देता है. ममता भी जल्दी ही बंगाल के भद्रजनों की इस ताकत से अनजान बनती गईं. 

   किसी भी अन्य मुख्यमंत्री की तरह सत्ता के तेवर तथा सत्ता की हनक से उन्होंने बलात्कार व घिनौनी क्रूरता के साथ लड़की रेजिंडेंट डॉक्टर की हत्या के मामले को निबटाना चाहा. लेकिन उस मृत डॉक्टर की अतृप्त आत्मा जैसे उत्प्रेरक बन कर काम करने लगी. जैसे हर प्रदर्शन-जुलूस-नारे-पोस्टर के आगे-आगे वह डॉक्टर खुद चल रही थी. ऐसी अमानवीय वारदातों को दबाने-छिपाने-खारिज करने की हर कोशिश को विफल होना ही था. वह हुई  और कोलकाता का आर.जी.कर अस्पतालममता की राजनीतिक साख व संवेदनशील छवि के लिए वाटर-लू साबित हुआ. अब ममता भी हैंउनकी सत्ता भी है लेकिन सब कुछ कंकाल मात्र है. 

   यह आग कोलकाता से निकल कर देश भर में फैल गई. मामला डॉक्टरों का था जो वैसे भी कई कारणों से सारे देश में हैरान-परेशान हैं. सो देश भर की सूखी लकड़ियों में आग पकड़ गई. आंच सुप्रीमकोर्ट तक पहुंच गई. नागरिक अधिकारोंसंवैधानिक व्यवस्थाप्रेस की आजादीअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से ले कर सत्ता के मर्यादाविहीन आचरण तक के सभी मामलों में देश में जैसी आग लगी हुई हैउसकी कोई लपट जिस तक नहीं पहुंचती हैउस अदालत को यह लपट अपने-आप कैसे दिखाई दे गईकहना कठिन है. मणिपुर की लड़कियों को जो नसीब नहीं हुआकोलकाता की उस डॉक्टरनी को वह नसीब हुआ- भले आन व जान देने के बाद!  सुप्रीम कोर्ट ने आनन-फ़ानन में अपनी अदालत बिठा दी और कड़े शब्दों में अपनी व्यवस्था भी दे दीएक निगरानी समिति भी बना दी जिसकी निगरानी वह स्वयं करेगी. मैं हैरान हूं कि हमारी न्यायपालिकाजो इसकी निगरानी भी नहीं कर पाती है कि उसके फैसलों का सरकारें कहां-कब व कितना पालन करती हैंवह डॉक्टरों पर हिंसा की जांच भी करेगी व उसकी निगरानी भी रखेगीयह कैसे होगा ! लेकिन अदालत कब सवाल सुनती है ! अगर वह सुनती तो उसे सुनायी दिया होता कि सत्ता की शह से जब समाज में व्यापक कानूनहीनता का माहौल बनाया जाता हैतब राजनीतिक ही नहींसामाजिक-नैतिक-आर्थिक एनार्की का बोलबाला बनता है. कानूनविहीनता का आलम देश में बने तो यह सीधा न्यायपालिका का मामला हैक्योंकि संविधान के जरिये देश ने यही जिम्मेवारी तो उसे सौंपी है. न्यायपालिका के होने का यहीऔर एकमात्र यही औचित्य है. 2014 से अब तक अदालतों को यह दिखाई नहीं दिया तो अंधेरा और किसे कहते हैं बताते हैं कि कोलकाता के अस्पताल में जब वह अनाचार हुआ तो वहां भी अंधेरा था.   

   कोलकाता की घटना के बाद यौनाचार व यौनिक हिंसा की कितनी ही वारदातों की खबरें देश भर से आने लगीं. लगा जैसे कोई बांध टूटा है ! पता नहींऐसा कहना भी कितना सही है. जब घर-घर में ऐसी वारदातें हो रही होंजब सब तरफ हिंसक उन्माद खड़ा किया जा रहा हो तब कोई कैसे कहे कि यह जो सामने हैयह पूरी तस्वीर है !  

   यह सब हुआहोना चाहिए था. आगे भी होता रहेगा. प्रधानमंत्री यूक्रेन की आग बुझा कर लौटेंगे तो चुनावी आग में इस मामले को होम करधू-धू जलाएंगे. लेकिन जो नहीं पूछा गया और जिसका जवाब नहीं मिला वह यह सवाल है कि लड़की किसे चाहिए आर.जी.कर अस्पताल में जो अनाचार व अत्याचार हुआवह डॉक्टर पर नहीं हुआलड़की पर हुआ. वह लड़की डॉक्टर थी और वह जगह अस्पताल थीयह संयोग है. महाराष्ट्र में जो हुआ वह स्कूल थाऔर जिनके साथ हुआ वे छोटी बच्चियां थीं. तो जो यौन हिंसा हो रही हैउसके केंद्र में लड़की है जिसका स्थानजिसकी उम्रजिसका पेशा आदि अर्थहीन है. तो सवाल वहीं खड़ा है कि लड़की किसे चाहिए जवाब यह है कि हर किसी को लड़की चाहिए : व्यक्तित्वविहीन लड़की ! शरीर चाहिए. वह स्त्री-पुरुष के बीच जो नैसर्गिक आकर्षण हैउस रास्ते मिले कि प्यार नाम की जो सबसे अनजानी-अदृश्य भावना हैउस रास्ते मिले या डरा-धमका करछीन-झपट करमार-पीट कर मिले. वह मिल जाएयह हवस हैमिल जाने के बाद हमारे मन में उसकी प्रतिष्ठा नहीं मिलती है. इसलिए घरजो लड़की के बिना न बनता हैन चलता हैलड़की के लिए सबसे भयानक जगह बन जाता है जहां उसकी हस्ती की मजार मिलती है. हर घर में लड़की होती है लेकिन मिलती किसी घर में नहीं है. इसकी अपवाद लड़कियां भी होंगी लेकिन वे नियम को साबित ही करती हैं.   

   इसलिए समस्या को इस छोर से देखने व समझने की जरूरत है. अंधी-कुसंस्कृति की नई-नई पराकाष्ठा छूती राजनीति व जाति-धर्म-पौरुष जैसे शक्ति-संतुलन का मामला यदि न होतो भी स्त्री के साथ अमानवीय व्यवहार होता है. ऐसी हर अमानवीय घटना हमें बेहद उद्वेलित कर जाती है. दिल्ली के निर्भया-कांड के बाद से हम देख रहे हैं कि ऐसा उद्वेलन बढ़ता जा रहा है. यह शुभ है. लेकिन यह भीड़ का नहींमन का उद्वेलन भी बने तो बात बने. स्त्री-पुरुष के बीच का नैसर्गिक आकर्षण और उसमें से पैदा होने वाला प्यार का गहरा व मजबूत भाव हमारे अस्तित्व का आधार है. वह बहुत पवित्र हैबहुत कोमल हैबहुत सर्जक है. लेकिन इसके उन्माद में बदल जाने का खतरा हमेशा बना रहता है. यह नदी की बाढ़ की तरह है. नदी भी चाहिएउसमें बहता-छलकता पानी भी चाहिएबारिश भी चाहिएवह धुआंधार भी चाहिए लेकिन बाढ़ नहीं चाहिए. तो बांध मजबूत चाहिए. कई सारे बांध प्रकृति ने बना रखे हैं. दूसरे कई सारे सांस्कृतिक बांध समाज को विकसित करने पड़ते हैं. समाज जीवंत होप्रबुद्ध हो व गतिशील साझेदारी से अनुप्राणित हो तो वह अपने बांध बनाता रहता है. 

   परिवार में स्त्री का बराबर का सम्मान व स्थानपरिवार के पुरुष को सांस्कृतिक अनुशासन के पालन की सावधान हिदायतसमाज में यौनिक विचलन की कड़ी वर्जनाकानून का स्पष्ट निर्देश व उसकी कठोर पालना से ऐसा बांध बनता है जिसे तोड़ने आसान नहीं होगा. प्यार की ताकत समर्पण में ही नहींउसके अपमान की वर्जना में भी प्रकट होनी चाहिए. नहीं देखता-पढ़ता या सुनता हूं कि किसी प्रेमिका ने अपने प्रेमी कोकिसी पत्नी ने अपने पति कोकिसी मां ने अपने बेटे कोकिसी बहन ने अपने भाई को यानी किसी स्त्री ने अपने दायरे में आने वाले किसी भी पुरुष-संबंध को रिश्ते सेपरिवार से बाहर कर दिया हो क्योंकि उससे यौनिक अपराध हुआ है. बलात्कारी को यदि यह अहसास होउसके आसपास ऐसे उदाहरण हों कि यौनिक हिंसा के साथ ही वह समाज व परिवार से हमेशा-हमेशा के लिए वंचित हो जाएगातो यह एक मजबूत बांध बना सकता है. मनुष्य सामाजिक प्राणी है. वह समाज को तब तक ही ठेंगे पर रखता है जब तक उसे विश्वास होता है कि वह समाज को हांक ले जाएगा. ऐसा इसलिए होता है कि आज अधिकांशत: समाज जीवंतसंवेदनशील मनुष्यों की जमात नहींभीड़ भर है. भीड़ में से मनुष्य को निकाल लाना बड़ी दुर्धर्ष मनुष्यता का काम है. लेकिन बांध बनाना कब आसान रहा है ! 

   यह हमारी खुद से लड़ाई है. लड़का डराएगा नहींलड़की लुभाएगी नहींतभी दोनों एक-दूसरे के प्रति सहज-स्वस्थ-सुंदर रिश़्ता बना व निभा पाएंगे. फिर बच जाएंगी दुर्घटनाएं जिन्हें संभालने-सुधारने-स्वस्थ बनाने का काम घर-समाज-कानून मिल कर करेंगे. अगर ऐसा कुछ बोध समाज को हुआ तो कोलकाता के उस अस्पताल की वह डॉक्टर सच में हम सबकी डॉक्टर बन जाएगी. ( 26.08.2024) 

                                                                                                                                     

Saturday 10 August 2024

राहुल गांधी की जाति क्या है

   तो भरी संसद में, लोकसभा के अध्यक्ष की उपस्थिति में सत्ता पक्ष के एक सांसद ने दूसरे को भद्दी ( सामान्य सामाजिक सभ्यता के नाते भी और संविधान के नाते भी भद्दी ! ) गाली दी. फिर क्या हुआ ? अध्यक्ष ने इसे सामान्य मामले की तरह लिया और कहा कि वे गाली को फिर से सुनेंगे और फिर जो जरूरी होगा, वह करेंगे. सत्ता पक्ष के दूसरे सांसदों ने क्या किया ? कई खिलखिला कर बेशर्मी से हंसे; कई प्रतिशोध की जहरीली मुद्रा में उछल पड़े कि चलो, किसी ने तो इस आदमी का उस तरह अपमान किया जिस तरह हम भी करना चाहते तो थे लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी ! कुछ थे शायद जो असमंजस में चुप रहे लेकिन उनके चेहरे पर भाव ऐसा था मानो बात तो गलत है लेकिन अपनी पार्टी की तरफ से कही गई है, तो क्या बोलें और कैसे बोलें ! 

   आप समझ ही गए होंगे कि प्रसंग उस दिन का है जिस दिन भारतीय जनता पार्टी के सुप्रसिद्ध विवेकहीन सांसद अनुराग ठाकुर नेकांग्रेस के सांसद व प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी के लिए कहा कि “ जिसकी जाति का पता नहींवह जाति गणना की मांग कर रहा है !” वे समझ रहे थे कि वे जो बोलने जा रहे हैं उसकी चोट भी लगेगी और उसकी गूंज भी उठेगी. इसलिएगला साफ़ करअध्यक्ष का ध्यान खींचते उन्होंने पूरी तैयारी सेसमां बांध कर यह गाली दी.

    राहुल गांधी की दिक्कत यह है कि महाभारत में जैसे अर्जुन को मछली की आंख मात्र दिखाई दी थीदूसरा कुछ नहींवैसे ही उन्हें जातीय गणना का सवाल दिखाई देता हैउससे आगे-पीछे कुछ नहीं. यह उपमा उनकी ही दी हुई है. भारतीय जनता पार्टी का हाल भी ऐसा ही है. उसे इस मांग को एकदम सिरे से खारिज करने के आगे या पीछे दूसरा कुछ दीखता नहीं है. ( उसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जरूर दीखते हैं लेकिन वे जानते हैं कि नीतीश कुमार की आवाज जब तक गुम हैतब तक वे उन्हें देख कर भीअनदेखा कर ही सकते हैं ! )  

   हम कहते हैं : राहुल गांधी-अनुराग ठाकुर में दोनों सही या दोनों गलत हो सकते हैंया कोई एक गलत व दूसरा सही हो सकता है. लेकिन दोनों को अपनी-अपनी सही या गलत राय रखने का और उसे जाहिर करने का भी पूरा अधिकार है. यह अधिकार हम सबको जन्मसिद्ध मिला है जैसा कि बालगंगाधर तिलक ने स्वराज्य के लिए कहा था. लेकिन बालगंगाधर तिलक को तब जो अधिकार नहीं मिला था लेकिन हमें मिला हैवह यह है कि हमें अपनी राय रखने व उसे जाहिर करने का जन्मजात अधिकार तो है हीसंवैधानिक अधिकार भी है. तो हमारे तरकस में तिलक महाराज से एक वाण अधिक है. राहुल गांधी जातीय गणना की मांग करें और अनुराग ठाकुर उसका विरोध करेंइसमें आपत्ति जैसी कोई बात नहीं है. इन दो के बीच लोकसभा अध्यक्ष की कोई भूमिका है ही नहीं. लेकिन अनुराग ठाकुर अपनी राय भी न कहेंजातीय गणना के सवाल पर अपनी पार्टी का रुख भी स्पष्ट न करें लेकिन राहुल गांधी को भद्दी गाली देंतो फिर लोकसभा के अध्यक्ष की भी सीधी भूमिका बन जाती हैअनुराग ठाकुर सीधे कठघरे में खड़े हो जाते हैं. इसलिए जो सवाल अखिलेश यादव ने पर्याप्त गंभीरता व जरूरी तेवर के साथ लोकसभा में पूछावही सवाल देश का हर साबित दिमाग आदमी अनुराग ठाकुर सेलोकसभा अध्यक्ष सेभारतीय जनता पार्टी से तथा ईश्वरीय प्रधानमंत्री’ नरेंद्र मोदी से पूछ रहा है कि भाईआप किसी से उसकी जाति कैसे पूछ सकते हैं यह हमारे तरकश का वह तीर है जो संविधान ने हमको दिया है. आप किस को जातिसूचक गाली नहीं दे सकतेआप संस्थानों में जातीय भेद-भाव नहीं कर सकतेआप जातीय टिप्पणियां कर किसी का अपमान नहीं कर सकते. मुख्तसर में यह कि आप किसी से उसकी जाति नहीं पूछ सकते. 

   जब अनुराग ठाकुर की बीमारगंदी मानसिकता पकड़ी गई और उनके शातिर दिमाग ने हिसाब लगा लिया कि जातीय श्रेष्ठता का उनका तीर जहां पहुंचना थापहुंच गयातब उन्होंने उसी कायरता का परिचय दिया जैसी कायरता जातीय श्रेष्ठता का छूंछा भाव ओढ़ने वालों की पहचान है. जिससे कायरता भी शर्मिंदा होने लगे ऐसी कायरता से वे कहने लगे कि मैंने नाम तो नहीं लियामैंने कोई गाली तो नहीं दीमैंने जाति तो नहीं पूछी. किया उन्होंने यह सब लेकिन इसे कबूल करने का साहस उनमें नहीं था. होता भी कहां सेक्योंकि साहस नैतिक धरोहर हैकुर्सी-पार्टी-मंत्रीपद की इजारेदारी नहीं. 

   अनुराग ठाकुर ने पूरी तैयारी सेसोच-विचार कर राहुल गांधी को गाली दी क्योंकि राहुल गांधी की बात कातर्क का उनके पास कोई जवाब नहीं था. जब आपकी बौद्धिक औकात होती नहीं है तब आप गालियों का सहारा लेते हैं. बेचारे अनुराग ठाकुर पर दया ही की जा सकती है ! वे अपने सर के नाप से बड़ा जूता पहन कर चलते हैं और बार-बार उस जूते की मार खा कर चारो खाने चित्त गिरते हैं. जब वे किसी आमसभा में,  सार्वजनिक रूप से चिल्ला-चिल्ला कर सामूहिक गालियां दे करगोली मारने का नारा लगवा रहे थेतब भी उनका पतन देख कर उबकाई आती थीसदन में भी उस रोज़ वे ऐसी ही पतनावस्था में थे. “ जिसकी जात का पता नहीं” कहने के पीछे वही गंदी मानसिकता थी जिस गंदी मानसिकता से कोई कहता है, “ तेरे बाप का ठिकाना नहीं…!” यह गंदी गाली किसी औरत को छिनाल या रखैल या कुलटा कहनेकिसी पुरुष को चरित्रहीन या स्त्रीबाज कहनेकिसी बच्चे को एक बाप का नहीं या अवैध कहने जैसी गंदी बात है. यह सांस्कृतिक हीनता है जो श्रेष्टता बन कर चीखती है और अंतत: आपको ही नंगा  कर जाती है. 

   राहुल गांधी के पिता राजीव गांधीराजीव गांधी के पिता फीरोज गांधीराहुल गांधी की मां इंदिरा गांधीराहुल गांधी के नाना जवाहरलाल नेहरूउनके पिता मोतीलाल नेहरू और उनकी मां स्वरूप रानी देवीजवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू व जवाहरलाल नेहरू की बहनें आदि सब-की-सब हमारे स्वतंत्रता संग्राम की मान्य हस्तियां हैं. इन सबने अपनी तरह से वह इतिहास बनाया है जिसके एक छोटे कोने में भी उन सबकी उपस्थिति नहीं मिलती है जो आज सत्ता की कुर्सियों पर बैठे हैं. हम नेहरू खानदान के हर सदस्य से असहमत हो सकते हैं लेकिन उन्हें जाति या धर्म की गाली देने जैसी हीनतर मानसिकता का प्रदर्शन नहीं कर सकते. जातिवादियों को पता होना चाहिए कि संविधान ने उनसे यह हक़ छीन लिया है. 

   राहुल गांधी ने ठीक ही कहा कि उन्हें न अनुराग ठाकुर की माफी चाहिएन उन्होंने इसकी मांग ही की है. उन्होंने यह भी कहा कि वे जो लड़ाई लड़ रहे हैंजाति का सवाल उठा रहे हैंउसके जवाब में गालियां मिलनी ही हैं. हम को भी मालूम हैराहुल गांधी को भी मालूम है कि भारतीय समाज में सदियों से जातीय-न्याय की मांग करने वालों को कम-से-कम जो मिला हैवह गाली ही है. लेकिन अब अब हमारे और उनके बीच एक संविधान भी है जो इसे वर्जित करता है. लोकसभा में संविधान द्वारा वर्जित काम अनुराग ठाकुर ने किया हैतो उनकी संवैधानिक सदस्यता कैसे बरकरार रह सकती है अध्यक्ष ने इसे तब अनसुना कर दिया. सुना कि बाद में इस टिप्पणी को काररवाई से बाहर निकाल दिया. 

   अध्यक्ष ने जिस गुगली से अनुराग ठाकुर को बोल्ड होने से बचायाउसी गुगली से ईश्वरीय प्रधानमंत्री’ क्लीनबोल्ड हो सकते हैं. अध्यक्ष ने जिस टिप्पणी को काररवाई से बाहर निकाल दियाउसे ही अपनी जोरदार अनुशंसा के साथ प्रधानमंत्री ने सारे देश को भेज दिया. यह भी तो संविधान का उल्लंघन है ! संविधान बदलने की घोषित मंशा से चुनाव लड़ कर परास्त हुए ईश्वरीय प्रधानमंत्री” को संसद में संविधान को धूल करने का विशेषाधिकार तो प्राप्त है नहीं. तो अब लोकसभा के बिरले अध्यक्ष बिरला क्या करेंगे वे विपक्ष को सदन से निलंबित करने तथा विपक्ष को आंखें दिखाने के अलावा कुछ करने की हैसियत रखते हैं क्या और फिर यह सवाल भी बन ही जाता है कि अनुराग ठाकुर ने जो किया व कहा उसकी योजना प्रधानमंत्री की स्वीकृति व सहमति से पहले ही बन गई थी तभी तो प्रधानमंत्री नेजो तब लोकसभा में अनुपस्थित थेअनुराग ठाकुर भाषण के तुरंत  बाद उस पूरे भाषण को रि-ट्विट’ किया !     

   अनुराग ठाकुर की बात इतनी मासूम नहीं थी. जाति-व्यवस्था से बीमार इस समाज में जाति को आदमी होने की हमारी हैसियत से जोड़ दिया गया है. कहते ही हैं न कि जो जाती नहीं है वह जाति है. अनुराग ठाकुर उसी बीमार-समाज के प्रतिनिधि हैं. संघवादी सोच ही इस बीमारी से ग्रसित है. इसलिए राहुल गांधी की जाति क्या हैइसका जवाब वही है जो राहुल गांधी ने उस दिन लोकसभा में दिया : उन्होंने पलट कर अनुराग ठाकुर से उनकी जाति नहीं पूछी. ( 04.08.2024)